पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/२९९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बुर्गका बुलेटिन बुर्शक -संज्ञा पुं० [अ० खुराक ] मुसलमानों के मतानुसार वह पोढ़ा पदार्थ या जल में बुट्युद स्ठाना । ८०-उनका जीवन जिसपर सवार होकर उनकी रसूल हजरत मुहम्मद जरूसलम उत्साह से वैसे ही बुलबुला रहा था जैसे नदी को पतली, से स्वर्ग गए थे । उ०-पागे चलकर वह वर्शक अश्व भी क्षीण परंतु सजीव धारा अपने कोत पर चुलबलाती है।- रह गया। कबीर मं०, पृ० ८६ । अभिशप्त, पृ०५६ । बुर्राकर-वि० [फा० बुर्रा (= तीक्ष्ण)? ] धारदार । तीक्षण । बलवन@f-संशा पु० [हिं०] १० 'बुलावा'। उ०-साग ननद चमकदार । जैसे, वुर्राक सफेद । के बुलवन उत्तर का देह हो।-फावीर० १०, मा० ४, बुरी-संज्ञा स्त्री० [हिं० बुरकना ] बोने का वह ढंग जिसमें बीज पृ०२। हल की जोत मे डाल दिए जाते हैं और उसमे मे पापसे बुलवाना-नि० म० [हिं० बुलाना का प्रेम्प] बुलाने का प्राप गिरते चलते हैं। फाम दूसरे से कराना । पूमरे को बुलाने में प्रवृत्त करना । बुर्श-संज्ञा पुं० [हिं० बुरश ] दे० 'पुरुश' । तुलहवस-वि० [अ०] लोभी। उ०-गुजर है तुम तरफ हर बुलंद-वि० [ फा० बलंद, बुलंद ] १. भारी। उत्तुग । जैसे, बुलंद घलहवस का । हुमा धाया मिठाई पर मगन का ।-फविता प्रावाज, बुलंद हौसला। २. जिसकी ऊंचाई प्रधिक हो । फो०, भा० ४, पृ०४। वहुत ऊँचा वुलाक-गंगा पुं॰ [ तु० बुलाक] १. वह नंबोतग या सुगीदार वुलंदी-संज्ञा म्सी० [फा० चलंदी ] १. बुलंद होने का भाव । २. मोती जिसे प्रिया प्रायः नप में या दोनों नयनों के बीच के उच्चता। ऊंचाई। परदे में पहनती हैं। उ०-शाम ममप में गेहै बुलाक ससी बुलडाग-संज्ञा पु० [पं०] मझले आकार का एक प्रकार का मत भाव मोहाग जो लीजै ।-नेम०, पृ० १३ । २. नयनों को बीच या परदा। नाफ फे बीच पी सीधी विलायती कुत्ता जो बहुत बलवान, पुष्ट और देखने में भयंकर होता है। ही (को०)। बुलना-क्रि० स० [ प्रा० पुल्त] दे॰ 'बोलना' । ७०-वलंत बुलाकी-गंश ० [ तु० गुला] घोगे गी एक जाति । ३०- वाणि कोकिला, विपचकी सुरं मिला।-४० रासो, पृ० २४ । मुश्की प्रौर हिरमंजि इरानी । तुरफी फगी भुयोर दलाली । -जायसी (पन्द०)। बुलबुत-संज्ञा सी० [५०, फा०] एक प्रसिद्ध गानेवाली छोटी मक० रूप] १. पावाज चिडिया जो कई प्रकार की होती है और एशिया, यूरोप वुलाना-क्रि० स० [हिं० बोलना का तथा अमेरिका में पाई जाती है। देना । पुगरना । २. अपने पास पाने के लिये व्हना। ३. किसी को बोलने में प्रवृत्त करना। बोलने में पूमरे को विशेष—इसका रंग ऊपर की प्रोर काला, पेट के पास भूरा और गले के पास कुछ सफेद होता है। जब इसकी दुम कुछ बुलावा-सा पुं० [हिं० बुलाना+प्रावा (प्रत्य॰)] १. दुनाने लाल रंग की होती है तब से 'गुलदुम' कहते हैं । यह प्राय: की क्रिया या भाव । २. निमंत्रण। एक वालिश्त लंबी होती है और झाड़ियों या जंगलों प्रादि में जमीन पर या उससे कुछ ही ऊंचाई पर घोसला बनाकर क्रि० प्र०-याना|-जाना।-भेजना। रहती है और ४, ५ अंडे देती है। यह महतु के अनुसार स्थान बुलाह-संश पुं० [सं० वोल्लाह ] वह पोड़ा जिमकी गर्दन भोर पूंछ का परिवर्तन करती है। इसका स्वर बहुत हो मधुर होता के बाल पीते हों। -प्रश्ववैद्यक (जन्द०)। है और इसीलिये लोग इसे पालते भी हैं। कही कही लोग बुलि-संज्ञा स्त्री० [सं०] १. योनि । भग (हिं० ) । २. भय । इसको लहाते भी हैं । जंगलों प्रादि में यह दिखाई तो बहुत भोति (को०] । कम पड़ती है, पर इसका मनोहर शब्द प्रायः सुनाई पड़ता है। बुलिन-संज्ञा स्त्री० [सं० युलियन ] एक विशेष प्रकार का रस्सा जो फारसी और उर्दू के कवि इसे फूलो के प्रेमी नायक के स्थान मे मानते हैं । (उर्दू वाले इस शब्द को पुं० मानते हैं)। चौकोर पाल के लग्घे में बाधा जाता है । (लश०)। बुलबुलचश्म-संज्ञा सी० [फा०] एक प्रकार की सहिली (पक्षी) । बुलेट-सज्ञा स्त्री॰ [अं० ] बंदूक, राइफल प्रादि को गोली । वुलबुलबाज-संज्ञा पुं॰ [ फ़ा० बुलबुलबाज़ ] वह जो बुलवल पालता बुलेटिन-संज्ञा पुं० [अ०] १. किसी सार्वजनिक विषय पर सरकारी या लड़ाता हो । बुलवुल का खिलाड़ी या शोकीन । या किसी अधिकारी व्यक्ति का वक्तव्य या विवरण । जैसे,—सत्याग्रह कमिटी के प्रचार मंत्रो ने एक बुलेटिन बुलबलबाजो-सज्ञा स्त्री॰ [फा०] बुलबुल पालने या लड़ाने का निकाला है जिसमें लोगो से कहा गया है कि वे ऐसे समाचारो काम | बुलबुलबाज का काम । पर विश्वास न करें। २. किसी राजा, महाराज, राजपुरुष बुलबुला-संज्ञा पु० [सं० बुबुद या देशी] पानी का बुल्ला। या देश के प्रमुख नेता के स्वास्थ्य के संबंध मे सरकारी या बुदबुदा। किसी अधिकारी व्यक्ति की रिपोर्ट या विवरण । जैसे,- बुलबुलाना-क्रि० प्र० [ff बुलबुला+ना (प्रत्य॰)] तरल राज्य के प्रधान डाक्टर के हस्ताक्षर से सवेरे ७ बजे एक लगाना।