पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/२७५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३५९४ बिसायध विसवासी संपत्ति का विस्तार । प्रोकात । जैसे,—मेरी विसात नहीं है विसवासो-वि० [सं० अविश्वासिन् ] १. जिसपर विश्वास न न किया जा सके। वेएतबार | विश्वासघाती। २. जिसका कि मैं यह मकान मोल लू । २. जमा । पूजी। उ०- कुछ ठीक न हो कि कब क्या करे करावेगा। जैसे,-विस मन धन हती बिसात जो सो तोहिं दियो बताय । वाकी बाकी वासी पेट के कारण परदेश में पड़े हैं (बोलचाल )। विरह की प्रोतम भरी न जाय ।-रसनिधि (शब्द०) । (ख) हे रघुनाथ कहा कहिए पिय की तिय पूरन पुन्य बिसात सी। विससनाg-क्रि० स० [स० विश्वसन विश्वास करना । एतबार -रघुनाथ (शब्द०)। २. सामथ्यं । हकीकत । स्थिति । करना । भरोसा करना। उ०-न ये बिससिए अति नए गणना । उ०—(क) मेदिनि मेरु प्रजादि सुर सो इक दिन दुरजन दुसह स्वभाव । प्रोटे परि प्रानन हरत कांटे लौ लगि मसि जात । गजश्रुति सम नर आयु घर ताकी कौन पाव ।-बिहारी (शब्द०)। विसात |-विश्राम (शब्द०)। (ख ) स्त्री की बिसात है घिससनारे-क्रि० स० [सं० विशसन ] १. वध करना । मारना । कितनो, बड़े बड़े योगियो के ध्यान इस वरसात में छूट जाते घात करना । उ०-पुनि तुरग को विससि तह कौसल्या कर हैं। हरिश्चंद्र (शब्द०)। (ग) समय की अनादि अनंत दीन । कियो होम करि घ्राण वप दसरथ नृपति प्रवीन । धारा के प्रवाह मे १६ वर्ष के जीवन की विसात ही क्या ।- -रघुराज (शब्द॰) । २. शरीर काटना । चीरना फाड़ना । बालकृष्ण (शब्द०)। ४. शतरंज या चौपड यादि खेलने निसह -सञ्ज्ञा पुं॰ [ सं० वृषभ ] बैल । उ०-रहट विसह एह का कपड़ा या बिछौना जिसपर खाने बने होते हैं। उ०- मढ मन, दिएं अधौटा नैन । कहा जो होक्यो जनम भरि हित बिसात धर मन नरद, चलि के देह न दाव । यासों चलेहु न एको कैन ।-चित्रा०, पृ० १७५ । प्रीतम की रजा, बाजू खेलत चाव ।-रसनिधि (शब्द०)। बिसहना-क्रि० स० [हिं० विसाह] १. मोल लेना । खरीदना । ५. दरी। फर्श पर बिछाई जानेवाजी कोई वस्तु । विछावन । दाम देकर कोई वस्तु लेना । क्रय करना । २. जान बूझकर बिसाती-संज्ञा पुं० [अ०] १. विस्तर बिछाकर उसपर सोदा अपने साथ लगाना । उ०-जो पै.हरि जन के प्रोगुण गहते । रखकर बेचनेवाला । २. छोटी चीजों का दुकानदार । सुई, तो सुरपति कुरुराज बालि सों कत हठ बैर विसहते । तागा, लैप, रंग, चूडी, गोली तथा खिलौने हत्यादि छोटी छोटी -तुलसी (शब्द०)। वस्तुपों का बेचनेवाला। उ०-बढ़ई संगतरास विसाती बिसहना-सचा पुं० [बिसाह] [स्त्री० यिसहनी] सौदा । बिसाहना। सिकलीगर कहार की पाती। -जायसी (शब्द०)। बिसहर-संज्ञा पुं० [सं० विषधर, प्रा. बिसहर ] सपं। उ० घिसान@-सज्ञा पुं० [सं० विपाण ] विषाण । सींग। उ.- (क) ए अप्पन गनिएं नही. वैरी बिसहर घाव ।-पृ० रा०, (क) बरु जामहि सस सोस बिसाना। -मानस, । (ख) ७१६४ । (ख) बिसहर सी लट सों लपटि, मो मन हठि तुम्हरे सीस बिसान कोऊ ना संग तुम्हारी ।-पलटु०, लपटात । कियो । प्रापनो पाइहै तू तिय फहा सकात । भा० पृ० २४ । -मुबारक (शब्द०)। बिसाना'-क्रि० प्र० [सं० वश ] वश चलना। बल चलना । विसहरू-सज्ञा पु० [हिं० विसहना+रू (प्रत्य०) ] मोल कावू चलना। उ०—(क) जो सिर परे प्राय सो सहै। लेनेवाला। खरीददार । कछु न बिसाय काह सों कहै-जायसी (शब्द०) । (ख) बिसहिनी-संज्ञा स्त्री॰ [ देश० ] एक प्रकार की चिड़िया । जानि बूझि के परे पापसे भाड़ में। तासे काह बिसाय बिर्सायँध'-वि० [सं० वसा (= मज्जा, चरबी)+गंध] सड़ी मछली खुसी जो मार में। -पलटू० वानी, पृ० १०० । सी गघवाला । जिससे सड़ी मछली की सी गंध आती हो। बिसाना-कि० अ० [सं० विष हिं० थिस+ना (प्रत्य॰)] विष विसायधर-संज्ञा स्त्री० मछली की सी गंध । सड़े मांस की सी गंध । का प्रभाव करना । जहर का असर करना । जहरीला होना । उ०-जो अन्हवाय भरे अरगजा। तोह बिसायध प्रोहि जैसे, कुत्ते का काटा बिसाता है । नहिं तजा ।—जायसी (शब्द॰) । बिसाना-क्रि० प्र० [ /विश (वेशन = उपवेशन,)] बैठना मुहा०-विसायध थाना = सड़ी मछली सी दुर्गध पाना । ठहरना । लदना | उ०-करे हाकिमी गोरा जाय । खर्चा विसा-संज्ञा पुं॰ [देश०] दे० 'विस्वा' । उ०-वोस बिसे व्रत भंग भारत सीस बिसाय ।-प्रेमघन०भा०१, पृ० १८६ । भयो सु कहो अब केशव को धनु ताने । केशव (शब्द०)। बिसामण-संज्ञा पुं० [सं० विश्रमण ] भय | शंका। संशय । विसाध-वि०, संज्ञा स्त्री० [ देश० ] दे० 'विसायध' । — रुकावट | उ०-घागम मो पै जान्यून जाई। इहै विसामण विसाइता-संज्ञा स्त्री॰ [प० बिसाती] विसातवाना । फुटकर । ज० जियरे माहि ।-दादूवानी, पृ० ६६४ । किसी पर सस्ती विसाइत की चीजें हैं तो किसी पर बासी बिसायँध-संज्ञा स्त्री॰ [सं० विष+गन्ध ] १. दुगंध । बदबू । साग और भाजी और चुचके फल रखे हैं।-त्याग०, पृ०६२। २. मांस की दुर्गध । गोश्त की बदबू । उ०-मोटि मासु विसाख-सज्ञा स्त्री० [सं० विशाखा ] दे० 'विशाखा' । रुचि भोजन तासू । मो मुख माय बिसायंष बासू।-जायसी पिसात-संज्ञा स्त्री० [अ०] १. हैसियत । समाई। वित्त । धन । (शब्द०)। so .