बाथर बादर भरी हवा । अकवार। उ०—ग मिहचत मृगलोचनी भरयो उलटि बाद-संज्ञा पुं॰ [फा० बाद, तुल० सं० वात] वायु । पवन । उ०- भुजबाथ । जानि गई तिय नाथ के हाथ परस ही हाथ । (क) है दिल में दिलदार सही, अँखियाँ उलटी करि ताहि -बिहारी (शब्द०)। चितइए। प्राब में, खाक में, बाद में प्रातस, जान में सुंदर मुहा०-बाथ भरना-लिपटना । प्रालिंगन करना। उ०- जानि जनइए।-सुदर० ग्रं॰, भा॰ २, पृ० ६१५। (ख) बिन हाथन सब बाथ भरि, तन मन लीए जाय । बज० थे जल्दी में घोड़े से जियाद । थे दौड़ में वह मानिंद बाद ।-दक्खिनी०, पृ० २२० । ग्र०, पृ०५१ । २. दोनों भुजामों का घेरा। करपाश । उ०-इत सामंतन नाथ यौ०-बादगोर । बादनुमा । बादेवहारी = वासंती वायु । मस्ती बाथ बड़वानल घल्लन ।-पृ० रा०, ७.२० । ३. छाती। वक्ष । ४. भुजा । बाहु। कर । उ०-और भमरेस गहे बादकाकुल-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] ताल के मुख्य ६० भेदों में से एक भेद । आसमान बाथू।-रा०6०, पृ० १२० । विशेप-संगीत दामोदर मे इसका लक्षण निम्नाकित है- घाथ-सज्ञा ॰ [अं॰] स्नान । नहाना । प्लुतो लघु चतुष्कच मोनो दूत युगं लघुः । लघु चतुक बिना यौ०-बाथरूम स्नानगृह । नहाने का स्थान । उ०—कानजी शब्द तालस्याद्वादकाकुलः। कंबल ओढ़े बाथरूम मे पाकर उन दोनो का निरीक्षण करने बादगीर-सञ्ज्ञा पु० [फा० ] झरोखा। वातायन [को॰] । लगे थे।-तारिका, पृ० १६६ । बादना@-कि० अ० [सं० वाद+हिं० ना (प्रत्य॰)] १. बकवाद बाथू-संज्ञा पुं॰ [ सं० वास्तुक, प्रा० वात्थुप्र] वथुप्रा नाम का साग । करना। तर्क वितर्क करना। २. झगड़ा करना । हुज्जत बाद'-सञ्ज्ञा पुं० [सं० वाद ] १. बहस तर्क। खंडन मंडन की करना । उ०—(क) बादहिं सूद्र द्विजन्ह सन हम तुम्ह तं कछु बातचीत । उ०-सजल कठौता भरि जल कहत निषाद । घाटि । -तुलसी (शब्द०)। (ख) बादति है बिन काज चढ़ह नाव पग घोइ करहु जनि बाद ।—तुलसी (शब्द॰) । ही वृथा बढ़ावति रार ।-सूर (शब्द०)। ३. बोलना। २. विवाद । झगड़ा । हुज्जत । उ०-गौतम की घरनी ज्यो ललकारना । उ०-बादत बड़े सूर की नाई अबहिं लेत ही तरनी तरेगी मेरी, प्रभु सौ विवाद के के बाद न बढ़ायही। प्रान तुम्हारे । —सूर (शब्द०)। -तुलसी (शब्द०)। बादनुमा-सञ्ज्ञा पु० [फा०] वायु की दिशा सुचित करनेवाला मुहा०-बाद बढ़ाना=झगड़ा बढ़ाना । उ०-जे अबूझ ते यंत्र । हवा किस ओर से बहती है, यह बतानेवाली कल । बाद बढ़ावै ।-विश्राम (शब्द०)। पवनप्रकाश । पवनप्रचार । ३, नाना प्रकार के तर्क वित के द्वारा बात का विस्तार । झक बादफरोश-वि० [FI० बादफ़रोश ] इधर उधर की बात करने- झक । तूलकलामी। उ०-त्यों पदमाकर वेद पुरान पढ्यो वाला । खुशामदी। चापलुस । बातफरोश । पढ़ि के बहु बाद बढ़ायो। -पद्माकर (शब्द०)। ४. वादबान-संज्ञा पुं० [फा० | पाल । उ०—बादवान तानी पलकों ने, प्रतिज्ञा । शर्त । बाजी। होड़ाहोड़ी। उ०-कूदत करि हा ! यह क्या व्यापार ?-हिम कि०, पृ० २३ । रघुनाथ सपथ उपरा उपरी करि बाद ।-तुलसी (शब्द०)। बादबानी-संज्ञा स्त्री॰ [फा० ] पाल से चलनेवाली नाव [को०] । मुहा०-वाद मेलनाशर्त बदना। बाजी लगाना उ०-वाद मेलि के खेल पसारा। हार देय जो खेलत हारा।-जायसी बादरी'-संज्ञा पुं० [सं० वारिद, वर्णविपर्यय द्वारा वादरि ] बादल । मेघ । उ०—(क) देति पांवड़े अरघ चली लै सादर । ( शब्द०)। उमगि चल्यो प्रानंद भुवन भुईं बादर । —तुलसी (शब्द०)। बाद-संज्ञा पुं० [सं० वाद्य ] दे० 'वाद्य' । उ॰—गुरु गोत बाद (ख) लाल बिन कैसे लाल चादर रहैगी, हाय ! कादर करत बाजिन नृत्य ।-पृ० रा०, ११३७१ । मोहिं वादर नए नए ।-श्रीपति (शब्द॰) । बाद-अव्य० [सं० वाद; हिं० वादि ( = वाद करके, हठ करके, बादर-वि० [सं०] १. बदर या वेर नामक फल का। उससे व्यर्थ)] व्यर्थ । निष्प्रयोजन । फिजूल । बिना मतलव । उत्पन्न या संबंध रखनेवाला । २. कपास का । कपास या उ०-भए बटाऊ नेह तजि वाद बकति बेकाज । अब अलि रुई का बना हुआ। ३. मोटा या खद्दड़ । 'सूक्ष्म' का उलटा देत उराहनो उर उपजति प्रति लाज।-बिहारी (शब्द०)। ( कपड़ा)। बाद -अव्य [अ० ] पश्चात् । अनंतर । पीछे । बादर-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] १. बदरी या बेर का पेड़ । २. कपास का बाद-वि० १. मलग किया हुआ । छोड़ा हुमा । जैसे,—खर्चा बाद पौधा । ३. कपास की रूई का बना हुआ सूत या वस्त्र । ४. देकर तुम्हारा कितना रुपया निकलता है। जल । पानी । ५. रेशम । ६. दक्षिणावर्त शंख । ७. वृहत्सं- क्रि० प्र०-करना।-देना। हिता के अनुसार नैऋत्य कोण मे एक देश । २. दस्तूरी या कमीशन जो दाम में से काटा जाय । ३. अति वाद-वि[ देश० ] आनंदित । प्रसन्न । पाह्लादित । उ०-- रिक्त। सिवाय। ४. पसल से पधिक दाम जो व्यापारी सादर सखो के साथ वादर बदन हूँ के भूपति पधारे महारानी. लिख देते और दाम बताते समय घटा देते हैं। के महल को। (शब्द०)।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/२१२
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