बलीयस् ३४१२ बल्कि बलवान् । उ०—विडंबना है विधि की बलीयसी।-प्रिय. यह कुंभर कौन था, इसका पता नहीं। ईसा की पाठवीं प्र०, पृ० १७३ । २. अधिक प्रभावपूर्ण या आकर्षक (को०) । शताब्दी में घरवों का प्राक्रमण इस देश पर हुप्रा और यही ३. अधिक महत्व का (को०) । के निवासी मुसलमान हुए । अाजकल बलूच और ब्रहुई दोनों वलीयम्-फि० वि० पूरी तरह से । अत्यधिक को०] । सुन्नी शाखा के मुसलमान हैं। वनीयान्-वि० [ स० बलीयस् ] बलवान् । सवल । सशक्त । जैसे,- बलूची-संज्ञा पुं॰ [ देश० ] बलूचिस्तान का निवासी । प्रजा के बल से बलीयान होने के वे प्रजा पर तो अनियंत्रित वलूत-सज्ञा पुं० [अ०] माजूफल की जाति का एक पेड़ जो अधिकतर शासन करते रहना चाहते हैं। ठढे देशों में होता है। बलीश-संज्ञा पुं० [सं०] १. कौवा । काक । २. धूतं या चालबाज विशेष-योरोप में यह बहुत होता है। इसके पनेक भेद ते व्यक्ति [को०] | हैं जिनमें से कुछ हिमालय पर भी, विशेषतः पूरबी भाग बलु'-संज्ञा पुं० [हिं० ] दे॰ 'बल' । उ०-जामवंत हनुमंत वलु (सिक्किम प्रादि ) में होते हैं। हिंदुस्तानी बलूत बज, मारू कहा पचारि पचारि ।-तुलसी ग्रं०, पृ०५५। या सीतासुपारी, सफेद (कश्मीर) के नाम से प्रसिद्ध है जो बलुल-अव्य. हिं० ] दे० 'वरु' उ-प्यास न एक वुझाई हिमालय में सिंधु नद के किनारे से लेकर नेपाल तक होता है। शिमला नैनीताल, मसूरी प्रादि में इसके पेड़ बहुत मिलते वुझ त्रैताप बलु । -शव (शब्द॰) । हैं। लकड़ी इसकी अच्छी नहीं होती, जल्दी टूट जाती है। बलुआ'-वि० [हिं० बालू ] [स्त्री० चलुई ] रेतीला । जिसमें वालू अधिकतर इंधन और कोयले के काम में प्राती है। घरो में अधिक मिला हो । जैसे, बलुमा खेत, बलुई मिट्टो । भी कुछ लगती है। पर दार्जिलिंग मोर मनीपुर की घोर बलुआ-सज्ञा पुं० वह मिट्टी या जमीन जिसमें बालू अधिक हो । जो वूक नाम का बलूत होता है उसकी लकड़ी मजबूत होती बलुआह, वलुआहा-सज्ञा पु० [हिं० घालू ] वालू का मैदान । है। योरप मे बलूत का प्रादर बहुत प्राचीन काल से है। वह मैदान जिधर बालू पसता हो। उ०—दिशा फरावत के इंगलैड के साहित्य में इस तरुराज का वही स्थान है जो लिये लोटा लेकर बलुआहा की ओर निकल गए।-रति०, भारतीय साहित्य में वट या प्राम का है। यूरोप का बलुत पृ० १४१ । मजबूत और टिकाऊ होता है। बलूच-संज्ञा पु० [ देश० ? ] एक जाति जिसके नाम पर देश का बलूल-वि० [सं०] बलयुक्त । शक्तिशाली। नाम पड़ा। बलूला-संज्ञा पुं० [अनु० ] वुल्ला। बुद्बुद् । उ०-(क) देखत ही विशेष-यह जाति कब बलूचिस्तान में आकर बसी इसका ही देखत बलूला सौ बिलाइहै ।-सुदर प्र०, भा० २, ठीक पता नहीं है। वलूचिस्तान मे व्रहुई और बलूची दो पृ० ४१६ । (ख) बहु सितभानु भानु उस वारिधि के हैं जातियां निवास करती हैं। इनमे से वहुई जाति अधिक विविध बलुले । पारिजात, पृ० १८ । उन्नत और सभ्य है और उसका अधिकार भी बलूचों से बलैया–संज्ञा स्त्री० [अ० बला, हिं० बलाय ] वला । वलाय | पुराना है। बलूच पीछे पाए। बलूचों में ऐसा प्रवाद है कि मुहा०-(किसी की ) बलया लेना=(अर्थात् किसी का रोग, उनके पूर्वज पलिपो नगर से घरवों की चढ़ाई के साथ दुःख ऊपर लेना ) मंगलकामना करते हुए प्यार करना । पाए । अरबों की चढ़ाई बलूचिस्तान पर ईसा की द० 'बलाय लेना' । बलैया लेता हूँ = बलिहारी है ! इस बात पाठवीं शताब्दी में हुई थी। वलूच सुन्नी शाखा के पर निछावर होता हूँ ! क्या कहना है ! पराकाष्ठा है ! बहुत मुसलमान हैं। ही बढ़ चढ़ कर है ! (सुदरता, रूप, गुण, कर्म, आदि बलूचिस्तान-संज्ञा पु० [ फ़ा० ] एक राज्य जो हिंदुस्तान के पश्चि देख सुन कर इसका प्रयोग करते हैं। यद्यपि 'बलि जाना मोत्तर कोण में है। इसके उत्तर में अफगानिस्तान, पूर्व मे और 'बलैया लेना' व्युत्पत्ति के विचार से भिन्न हैं पर सिंधु प्रदेश, दक्षिण मे अरव का समुद्र और पश्चिम मे मुहाविरे हिलमिल से गए हैं)। उ०-लाज बांह गहे की, फारस है। देवाजे की संभार सार, साहब न रोम सो, वलैया लीज विशेष-बहुई और बलूची इस देश के प्रधान निवासी हैं । सील की।-तुलसी (शब्द०)। इनमें ब्रहुई पुराने हैं। दे० 'बलूच'। इस देश के प्राचीन बल्कल-संज्ञा पुं० [सं० वल्कल ] दे० 'वल्कल'। इतिहास के संवध में अनेक दंतकथाएं प्रचलित हैं। गंधार बल्कस-संज्ञा पुं० [सं० ] वह तलछट या मैल जो पासव सते..! और काबोज के समान यह देश भी हिंदुप्रो का ही था, इसमें में नीचे बैठ जाती है। तो कोई सदेह नहीं। ऐसी कथा है कि यहां पहले शिव नाम बल्कि-प्रव्य० [फा०] १. अन्यथा । इसके विरुद्ध । प्रत्युत । का कोई राजा था जिसने सिंधु देशवालों के आक्रमण से जैसे,—उसे मैंने नही उभारा बल्कि मैंने तो बहुत रोका। अपनी रक्षा के लिये कुछ पहाड़ी लोगों को बुलाया । अंत में २. ऐसा न होकर ऐसा हो तो मोर अच्छा । बेहतर है। पहाड़ियो के सरदार कुभर ने आकर सिंघवालों को हटाया जैसे,—बल्कि तुम्ही चले जामो, यह सब बसेड़ा ही दूर हो और क्रमशः उस हिंदू राजा को भी अधिकारच्युत कर दिया। जाय। से
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/१७३
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।