पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/१६८

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बलबूता ३४०७ बलसील गोपद की भीर ।-सूर (शब्द०)। (ख) ए री ! बल करते थे ! इनका अस्त्र हल और मूसल था। सूत पौराणिक वीर के अहीरन की भीरन मे सिमिटि समीरन घबीर को की धृष्टता पर क्रुद्ध होकर इन्होंने उन्हें मार डाला था। अटा भयो ।-पद्माकर (शब्द॰) । पलल-संज्ञा पुं० [सं०] १. इंद्र । २. बलराम [को०] । बलवृता-संज्ञा पुं॰ [सं० बल+वित्त ] शक्ति। सामर्थ्य । ताकत । बलवंड-वि० [सं० बलवन्त ] बली । पराक्रमवाला। उ०- उ०-सम्राट अपने ही बलबूते पर यह दुस्साहस कर बैठे।- आगर इक लोह जटित लीनों बलवंड दुई करनि असुर हयो वै० न०, पृ० २६५। भयो मांस पिंह ।-सूर (शब्द०)। बलभ --संज्ञा पुं० [सं० ] एक दिर्षला कीडा। बलवंत-वि० [सं० बलवन्त ] बलवान् । वली। उ०--प्रभु माया बलभद्र-संज्ञा पु० [सं०] १. ६लदेव जी का एक नाम । २. लोध बलवंत भवानी । जाहि न मोह कवन अस ज्ञानी । का पेड़ । ३. नील गाय । ४. भागवत के अनुसार एक पर्वत -मानस ७५६२। का नाम । ५. बलशाली पुरुष (को०)। ६. एक प्रकार का बलवत्ता-संञ्चा स्त्री॰ [सं०] १ शक्तिसंपन्नता। उत्कृष्टता। बैल (को०) । ७. अनंत का एक नाम (को॰) । श्रेष्ठता [को०] । बलभद्रा-सञ्ज्ञा सी० [सं०] १. कुमारी । २. प्रायमाण नाम की बलवर्जित-वि० [ स०] कमजोर । दुर्बल । बलरहित [को०] । लता। ३. नील गाय । ४. जंगली गाय । बलवर्द्धक-वि० [सं०] बल बढ़ानेवाला (को०] । वलभिद्--संहा पुं० [स०] इंद्र [को०] । बलवर्धी-वि० [सं० बलवर्थिन् ] [ स्त्री० बलवर्धिनी ] दे० 'बल- वलभी-संज्ञा स्त्री० [सं० वलभि ] वह कोठरी जो मकान के सबसे वर्धक' । ऊपरवाली छत पर बनी हो। ऊपर का खंड। चौबारो। बलवा-मज्ञा पुं० [फा० बलवह ] १. दंगा। हुल्लड़ । खलबली । उ०-कंचन कलित नग लालन वलित सौष, द्वारिका ललित विप्लव । २. बगावत । विद्रोह । जाकी दिपित अपार है। ता ऊपर बलभी, विचित्र प्रति क्रि० प्र०-मचाना ।-करना होना। ऊंची, जासो निपटे नजीक सुरपति को प्रगार है।- दास बलवाई-संज्ञा पुं॰ [फा० बलवा+ई (प्रत्य॰)] १. बलवा करने- (शब्द०)। वाला । विद्रोही। बागी । २. उपद्रवी । फसादी। वनभृत्-वि० [स०] बली । ताकतवर [को०) । बलवान् -वि० [सं० क्लबत् ] [स्त्री० बलवती ] १. बलिष्ठ । बलम-ज्ञा पुं॰ [स० वल्लभ ] प्रियतम । पति । नायक । उ०- मजबूत । ताकतवर । जिसके शरीर में बल हो । २. सामर्थ्य- ताकि रहत छिन और तिय, लेत और को नाउ। ए मलि वान् । शक्तिमान । ३. दृढ़ । मजबूत । ४. घना। गहरा। ऐसे बलम की विविध भाँति बलि जाउँ।-पद्माकर जैसे, अंधकार (को०) । ५. अधिक महत्व का। अधिक वजन (शब्द०)। का (को०)। ६. सेनायुक्त (को०)। ७. पाठवें मुहूर्त का बलमा -संज्ञा पु० [सं० वल्लभ ] दे॰ 'बलम' । नाम (ज्यो०)। वलमीक-संज्ञा पुं० [सं० वल्मीक ] दे० 'बाँबी' । बलवार-वि० [हिं० बल+वार (= वाला) ] बली । बलवान् । वलमुख्य-संज्ञा पु० [सं० ] सेना का प्रधान । सेनापति (को० । बलकर्णिका-संज्ञा स्त्री॰ [ स०] दुर्गा का एक नाम । वलय-संज्ञा पुं० [सं० वलय ] दे० 'वलय' । उ०-जनु इह बलय बलविन्यास-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] सेना का व्यूहाकार संयोजन । सेनाओं नाडिका लहै । जियति हो किधी मरि गई है।-नंद ग्रं०, का व्यूह विन्यास करना [को० । पृ० १५०1 बलवीर-संज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'बलबीर' । वलयाल-संज्ञा स्त्री० [सं० वलय ] कंगन । वलय । उ०—सरकी बलव्यसन-संज्ञा पुं० [सं०] सेना को हराना या तितर बितर सारी सीस तें सुनतहिं पागम नाह । तरकी बलया फंचुकी करना। दरकी फरकी वाह।-स० सपफ, पृ० २४८ । बलव्यूह-संज्ञा पुं॰ [ सं०] एक प्रकार की समाधि । वलय्या-संज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'वलैया' 30-जी करता है तुझे बलशाली-वि० [सं० बलशालिन् ] [स्त्री० बलशालिनी] बलवान् । चूम लू, ले लू मधुर वलय्या ।-हिल्लोल, पृ० १०१ । चलराइ-संज्ञः पुं० [ स. बलराम ] कृष्ण के अग्रज । बलराम । बलशील-वि० [सं०] बली । शक्तिशाली । शक्तिवाला। उ०-ताल रस के पान ते अति मत भे बलराइ ।-पोद्दार बलसाली@-वि० [सं० बलशाली ] दे० 'वलशाली' । उ०--राम अभि० ग्रं॰, पृ० २५७ । सेन निज पाछे घाली। चले सकोप महा बलशाली ।-मानस, बलराम-संज्ञा पुं० [सं०] कृष्णचंद्र के भाई जो रोहिणी से उत्पन्न ६।६६। हुए थे। बलसील-वि० [स० बलशील ] उ०-अंगद मपंद नल नील विशेष-कृष्ण के साथ ये गोकुल में रहे और उनके साथ ही वलसील महावालपी फिरावै मुख नाना गति लेत हैं।- मथुरा में पाए । ये स्वभाव के बड़े उदंड थे और मद्य पिया तुलसी (शब्द०)। बसी।