बबूला ३३८६ चम खुले स्थान पर पड़ी रहे तो प्रायः लोहे के समान हो जाती जैसे कि देवनागरी धमनी कहलाती थी।-प्रेमघन॰, भा० है। इसकी लकड़ी ऊपर से सफेद और अंदर से कुछ कालापन २, पृ० ३६२। लिए हुए लाल रंग की होती है। इससे खेती के सामान, बभूत-संज्ञा स्त्री० [सं० विभूति ] दे० 'भभूत' या 'विभूति' । नावें, गाड़ियों और एक्कों के धुरे तथा पहिए प्रादि अधिकता बभ्रवी-संज्ञा सी० [सं०] दुर्गा का एक नाम [को०) । से बनाए जाते हैं। जलाने के लिये भी यह लकड़ी बहुत बभ्रि-उज्ञा पुं० [सं०] वज्र । विद्युत् [को०] । अच्छी होती है, क्योंकि इसकी पांच बहुत तेज होती है और इसलिये इसके कोयले भी बनाए जाते हैं। इसकी पतली चभ्रु'-वि० [सं०] १. लालिमायुक्त भूरे रंग का | गहरे पिंगल वणं का । २. गंजा । खल्वाट [को०] । पतनी टहनिपो, इस देश में, दातुन के काम में पाती हैं पौर दांतो के लिये बहुत पच्छी मानी जाती है। इसकी बभ्रु-संज्ञा पुं० १. पग्नि । २. नेवला। ३. भूरा या पिंगल वर्ण । जड़, छाल, सूखे घीष और पत्तियां पोषधि के काम में भी ४. भूरे वणं के शवाना व्यक्ति । ५. शिव । ६. विष्णु । पाती है। छास का प्रयोग चमड़ा सिझाने पौर रंगने में ७. चातक । ८. भूरे रंग की कोई वस्तु | ६. सफाई करने- भी होता है । पत्तियां और फच्ची फलियां पशुयों के लिये वाला व्यक्ति [को०] । पारे का काम देती हैं पौर सूखी टहनियों से लोग खेतों यौ०-घभुकेश, बभ्र लोमा = भूरे या पिंगल केशवाला। पादि में वार पगाते हैं। सूखी फलियों से पक्की स्याही भी बभ्रुक-संज्ञा पु० [सं० एक नक्षत्र का नाम । २ नेवला [को०] । बनती है और फूलों से पाहद की मक्खियाँ शहद भी निकालती बभ्रुधातु-मंश पुं० [सं०] १. स्वसी। सोना। २. गैरिक । है। इसमे गोद भी होता है जो और गौदों से बहुत पच्छा गेरू । [को०] । समझा जाता है । कुछ प्रांतों में इसपर लाख के कीड़े रखकर पभ्रुव-संज्ञा पुं० [सं० बभ्रु ] नेवला । उ०-वभ्र व बाल पालिए लाख भी पैदा की जाती है । रामबबूल, खैर, फुलाई, करील, प्राखू । इतने जीव दुर्ग महँ राखु ।-५० रासो, पृ. १८ । धनरीठा, सोनकीकर मादि इसी की जाति के वृक्ष हैं । बभ्रुवाहन-संशा पुं० [सं०] अर्जुन का एक पुत्र जिसकी माता बबूला'--संज्ञा पुं० [हिं०] १. दे० 'बगूला' । २. दे० 'बुलबुला'। चित्रांगदा थी। यह मणिपुर का नरेश था। ३. दे० 'पस्सी बवूख' । बम'-संशा पुं० [पं० बॉम्ब ] विस्फोटक पदार्थों से भरा हुआ लोहे बबूला-संज्ञा पुं० [ देश० ] हाथियों के पांव में होनेवाला एक का बना हुमा वह गोला जो शत्रुषों की सेना प्रथवा किले एक प्रकार का फोड़ा। प्रादि पर फेंकने के लिसे बनाया जाता है मौर गिरते ही बबेक@f-संशा पुं० [सं० विवेक ] यथार्थ ज्ञान । उ.-साषि जोग फटकर पास पास के मनुष्यों पौर पदार्थों को मारी हानि अरु भक्ति पुनि सबद ब्रह्म संयुक्ति है । कहि बालकराम पहुँचाता है। घवेक विधि देखै बीपन मुक्ति है। सुदर० प्र० (जी०), क्रि० प्र०-गिरना ।-गिराना ।-चलना 1-चलाना । भा०,पु०११०॥ -फेंकना।-मारना। बब्बर'-संज्ञा पुं० [फा० वषर ] शेर । फैसरी। उ०-बाहे यौ०-बमवर्षक = एक प्रकार का हवाई जहाज । वह वायुयान बब्बर बीच ह, दटक निनारे ।-पृ० रा०, २४।३४६ । जो बम गिराता है। बमबारी = बम की वर्षा। विस्फोटक बमों का लगातार गिरना। बब्बर-वि० [सं० बर्बर, प्रा० बब्बर ] बलशाली। क्रूरकर्मा । उ०-घबर दौरहि बीर तुरंत कर गिर भूम भयानक बम-संज्ञा पुं० [अनुध्व.] १. शिव के उपासकों का वह 'बम, रंत ।-५० रासो, पृ० १४३ । घम' शब्द जिसके विषय में यह माना जाता है कि इसके उच्चारण से शिव जी प्रसन्न होते हैं। चन्यू-संज्ञा पुं० [हिं० ] दे० 'बाबू' । विशेष-कहा पाता है, शिव जी ने कुपित होकर जब दक्ष का घबू-संवा पुं० [ देश० ] एक प्रकार का उल्लू । सिर काठ लिया तव बकरे का सिर जोड़ा गया जिससे वे बभना-संज्ञा पुं० [सं० ब्राह्मण, प्रा० बंभन, हिं० बाभन] ब्राह्मण । बकरे की तरह बोलने लगे। इससे जब लोग गाल बजाते हुए द्विज | उ.-पाकी पर बभना, मैं काकी लागों तोर रे।- 'बम, बम' करते हैं तब शिव जी प्रसन्न होते हैं । प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ० ३४० । मुहा०-बम बोलना या घोल जाना = शक्ति, धन, मादि की बभनी-संज्ञा स्त्री॰ [स० ब्राह्मणी ] १. एक प्रकार का कीड़ा । समाप्ति हो जाना । कुछ न रह जाना। खाली हो जाना । एक सरीसृप । दिवाला हो जाना। विशेष-यह कीड़ा बनावठ में छिपकली के समान पर जोंक २. शहनाई बजानेवालों का वह छोटा नगाड़ा जो वजाते समय सा पतला होता है। इसके शरीर पर लंबी सुंदर धारियाँ बाई मोर रहता है । मादा नगाड़ा । नगड़िया । होती हैं जिनके कारण वह बहुत सुदर जान पड़ता है । वम-संज्ञा पुं० [कनाड़ी बंदू बॉस] १. वगी, फिटन आदि में पागे २. कुश की जाति का एक तृण जिसे बनकुस भी कहते हैं। ३. की ओर लगा हुमा वह लंवा बांस जिसके दोनों मोर घोड़े ब्राह्मणों से संबद्ध या ब्राह्मणों की लिपि । देवनागरी। उ०- जोते जाते हैं । २. एक्के, पाड़ियों प्रादि में प्रागे-की मोर
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/१४७
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।