बदतर ३३७० पदयात 1 वदतर-वि० [फा०] और भी बुग। किसी की अपेक्षा वुग। मैसे,—यह तो उससे भी बदतर है। बददुआ-सज्ञा स्त्री॰ [ फ० पद+प्र० दुधा ] पाप । अहित कामना जो शब्दों द्वारा प्रकट की जाय । क्रि० प्र०-देना। बदन-रात पु० [फा०] शरीर । देह । यो०-तन बदन । महा०-तन बदन की सुध न रहना = (१) प्रनेत रहना । बेहोश रहना । (२) किसी ध्यान में इतना लीन होना कि किसी बात की खबर न रहे । यदन टूटना = शरीर की हड्डियों में पीड़ा होना। जोडो में दर्द होना जिससे अंगो को तानने और खोपने की इच्छा हो। बदन तोड़ना= पीड़ा के कारण अंगो को तानना और खींचना । वदन-सज्ञा पुं॰ [ स० वदन ] मुख । चेहरा । ३० वदन'। बदनसीव-वि० [फा०] प्रभागा । जिसका भाग्य बुरा हो । बदनसीबी-राज्ञा स्त्री० [फा०] दुर्भाग्य । बदनतौल-संज्ञा स्त्री० [फा० वदन + हिं० तौल ] मलखंभ की एक कसन्त जिसमे हत्थी करते समय मलखंभ को एक हाथ से लपेटकर उसी के सहारे सारा बदन ठहराते या तोलते हैं । इसमें सिर नीचे प्रौर पर सीधे ऊपर की ओर रहते हैं। वदननिकाल-संशा पु० [ फ़ा० बदन + हिं. निकालना ] मलखंभ की एक कसरत जिसमें मलखंभ के पास खड़े होकर दोनो हाथो की कैची बांधते हैं। इसमें खेलाड़ी का मुंह नीचे, कमर मलखम से सटी हुई पोर पैर ऊपर को होता है। वदना@-क्रि० स० [सं०/घद् (= कहना ) ] कहना। वर्णन करना। उ०-(क) विष्णु शिवलोक सोपान सम सर्वदा दास तुलसी बदत विमल बानी।-तुलसी (शब्द०) । (ख) पानि जोरि फैमास वदै तब राज प्रति । उर अवलोकित उलसत सामंत पति । -पृ० रा०, ६२४० । २. मान लेना। स्वीकार करना। सकारना । जैसे, किसी को साखी बदना, गवाह बदना। उ०-हाथ छुड़ाए जात हो निवल जानि के मोहि । हिरदय मे से जाइयो मर्द बदौगी तोहि ।-(शब्द०)। ३. नियत करना । ठहराना । पहले से स्थिर करना । ठीक करना। निश्चित करना। कहकर पक्का कर लेना। जैसे, कुश्ती का मुकाम बदना, दाँव वदना । उ०--(क) श्याम गए वदि अवधि सखी री।-सूर (शब्द॰) । (ख) दूती सों संकेत बदि लेन पठाई पाप । केशव (शब्द०)। मुहा०-बदा होना = भाग्य में बदा होना । भाग्य में लिखा होना। प्रारब्ध मे होना । जैसे.-अब तो चलते हैं, जो घदा होगा सो होगा । घदकर (कोई काम करना ) = जान वूझकर। पूरी दृढ़ता के साप। पूरे हठ के साथ । टेक पकड़कर । जैसे,—जिस काम को मना करते हैं वह घदकर करता है। (२) बेधड़क । ललकारकर। छेड़कर । पाप अग्रसर होकर । जैसे, न जाने क्यों वह मुझसे बदकर मगहा करता है। पदकर कहना = ददना के साथ कहना । पूरे निश्चय के साथ पहना । जैसे-हम वदफर कहते हैं कि तुम्हारा यह काम हो जायगा । ४. सफलता पर जीत भौर प्रगफलता पर हार मानने की प्रतं पर कोई बात ठहराना । बाजी नगाना । होट लगाना । शतं लगाना। जमे,-पाज उस मैदान में दोनों पहलवानों की कुश्ती बदी है। (ग) हम उसमे फुस्ती बदेंगे । ५. गिनती में लाना । ले मे लाना । गुछ समझना । फुल ग्याल फरना । बटा या महस्य का मानना । जैसे,—यह राड़का इतना वृष्ट हो गया है कि किसी को कुछ नहीं वदना । उ०-(फ) बदन काह नही निघाफ निदरि मोहिं न गनत । चार बार बुझाय हागे भौंह मो पै तनत ।- मू' (पन्द०)। (स ) जोवन दान लेङगो तुम सों। जाके चल तुम बदनि न पाहहि कहा दुगवति माँ सो।-सूर (शब्द०)। (ग) तो बदिहों जो रासिहौ हाधनि लखि मन हाथ |-बिहारी (शब्द०)। घदनाम-वि० [फा० ] जिसका युग नाम फैला हो। जिसकी कुस्याति फैनी हो। जिसकी निंदा हो रही हो। वलफिन । जैसे,-बद प्रन्छ।, बदनाम दुरा। बदनामी-सशा गरी [फा०] अपकीति । लोकनिंदा । कलंक । क्रि० प्र०-करना।-होना। बदनीयत-वि० [फा० बद+५० नीयत ] १. जिसकी नीयत बुरी हो । जिसका अभिप्राय दुष्ट हो। नीचाशय । २. जिसके मन में धोखा मादि देने की इच्छा हो । बेईमान । बदनीयती-संग ही० [फा०] वेईमानी । दगाबाजी। बदनुमा-वि० [फा०] जो देखने में बुग लगे। कुरूप । भद्दा । भोंडा। वदपरहेज-वि० [फा० यदपरहेज ] कुपथ्य करनेवाला । जो साने पीने प्रादि का संयम न रखना हो। वदपरहेजी-शा री० [फा० वदपरहेजी ] कुपथ्य । खाने पीने मादि में असंयम। बदफैल'-संज्ञा पुं० [फा० बदल ] बुग काम । कुकर्म । उ०-- (क) उसे करोगे वदफैल बुरी होयगी नवकल |-दक्खिनी०, पृ० ४७ । (ख) वरि बदफैल सो गए बदी में सभ मिलि बदन निहारा |-संत० दरिया. पृ० १५३ । वदफैलो-संज्ञा स्त्री० [फा० पदफ़ली ] कुकर्म । बुरा काम । उ०- जोवन धन मित्त न पाखीए बदफैली क्या हाल ।-प्राण, पृ० २५५। घदवखत-वि० [फा० बदबस्त ] पभागा। उ०-वेपदव बदबखत बोरा बेअकल बदकार । -२० पानी, पृ० २० । बदरख्त-वि० [फा० पदबस्त ] [ सज्ञा स्त्री. बदवरती ] बदकिस्मत । प्रभागा। उ०-दरवाजे से प्राज ये बदवस्त मायूस होकर जायगी।-श्रीनिवास न०, पृ० ४७ ।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/१३१
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