बतचल ३३६७ बंतासा - . होता है, इससे यह न तेज दौड़ सकती है, न उड सकती है। संयो॰ क्रि०-देना। तालों और जलाशयों में यह मछली मादि पकडकर खाती ३. किसी प्रकार सूचित कराना । जताना । निर्देश करना। है । शहरों मे भी इसे लोग पालते हैं। वहाँ नालियों के कीड़े दिखाना । प्रदर्शित करना । जैसे,—(क) उगनी से बताना, प्रादि चुगती यह प्रायः दिखाई पड़ती है । हाथ उठाकर रास्ता बताना । (ख) सूखा नाला यह बता बतंचल-वि० [हिं० बात+चलाना] वकवादी। बक्की । उ०-जानी रहा है कि पानी इधर नहीं बरसा है। जात सूर हम इनकी बतचल चंचल लोल ।-सूर शब्द०) । संयो० कि०-देना। बतछुटा-वि० [हिं० बात+छूटना] १. बकबादी। अपने को समझ ४. कोई काम करने के लिये कहना। किसी कार्य में नियुक्त कर बोलनेवाला । २. अविश्वसनीय । विश्वास के प्रयोग्य । करना । कोई कार्य निर्दिष्ट करना । कोई काम, धघा बतबढ़ाव-संज्ञा पुं० [हिं० वात+बढ़ाव ] बात का विस्तार । व्यर्थ निकालना । जैसे,—मुझे भी कोई काम बताओ, अाजकल बात वढाना । झगड़ा बखेडा बढ़ाना। विवाद । उ०-प्रव खाली बैठा हूँ। ५ नाचने गाने में हाथ उठाकर भाव प्रकट जनि बतबढ़ाव खल करई। सुनि मम वचन मान परि करना। भाव बनाना। उ०-कभी नाचना और गाना कभी। हरई । —तुलसी (शब्द०)। रिझाना कभी और बताना कभी ।-मीर हसन (शब्द॰) । बतर-वि० [अ० बद + तर ] दे० वदतर' । ६. दड देकर ठोक रास्ते पर लाना। ठीक करना । मार पीट- बतरस-सज्ञा पुं० [ स० वार्ता+रस, हिं० वात+ रस ] बातचीत का कर दुरुस्त करना । जैसे,-बड़ी नटखटी कर रहे हो आता मानंद । बातों का मजा। उ०-(क) वतरस लालच लाल हूँ तो बताता हूँ। उ०-कोई बराबर का मर्द होता तो इस वक्त बना देता ।-पैर०, पृ० १४ । की बसी घरी लुकाह । सौह करै भौहन हस दैन कहै नटि जाइ-बिहारी २०, दो० ४७२ । (ख) कनरस वत रस और मुहा०-भत्र बतायो = (१) अब कहो, क्या करोगे ? अब क्या सबै रस झूठहि मूड डोले है ।-रै० बानी, पु० ७० । उपाय है ? जैसे,—पानी तो पा गपा, प्रब वायो ? (२) अब तो मेरे वश में हो, अब क्या कर सकते हो ? अब तो बतराना-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं० बतराना ] बातचीत । फंस गए हो, अब क्या कर सकते हो? जैसे,-वहाँ तो बहुत बवराना-क्रि० अ० [हिं० बात + श्राना (प्रत्य॰)] बातचीत वढ़ बढकर बोलते थे, प्रब बतायो। करना । उ०-छिनक छवीले लाल वह जो लगि नहिं बताना-सञ्ज्ञा पुं० [सं० वत्तक (= एक धातु) ] हाथ का कड़ा। बतराय । ऊख महूख पियूख की तो लगि भूख न जाय।- बिहारी ( शब्द०)। कड़े का ढांचा। वतराना-क्रि० स० बतलाना । वताना । बताना3-सज्ञा पु० [हिं० बरतना ] फटी पुरानी पगड़ी जो नीचे बतरावना -क्रि० अ० [हिं० ] दे० 'बतराना' । उ० -सुरति न रहती है और जिसके ऊपर अच्छी पगड़ी बांधी जाती है । टरे वतरावत सबसे ।-धर्म० श०, पृ०७४ । बताशा-संज्ञा पु० [हिं० ] दे० 'बतासा' । वतरौहाँल-वि० [हि बात, बतर+ौहाँ (प्रत्य॰)] [ सी. दतास-मज्ञा स्त्री॰ [ म० वातसह ] १. वात का रोग । गठिया । पतरौहों ] वातचीत की अोर प्रवृत्त । वार्तालाप का इच्छुक । क्रि० प्र०-धरना ।-पकड़ना । बतलाना'-क्रि० स० [हि० ] दे० 'वताना' । २. वायु । हवा । उ०-केवल प्राह को बतास मात्र भर गई। वतलाना २-क्रि० प्र० बातचीत करना । -श्यामा०, पृ० १३७ । बतवन्हा-सज्ञा पुं० [ देश० ] एक प्रकार की नाव । इस नाव मे बतासफेनी --सज्ञा स्त्री० [हिं० बतासा + फेनी ] टिकिया के प्राकार लोहे के काटे नही लगाए जाते। यह केवल बेत से वाधी को एक मिठाई। जाती है । यह नाव चटगांव की ओर चलाई जाती है । बतासा-पञ्चा पुं० [हिं० बतास(हवा)] १. एक प्रकार की मिठाई । बताओ-संज्ञा पु० [सं० वार्ताक, वृन्ताक, गुज० वताक] वैगन । उ.-कच्चे घड़े ज्यों नीर, पानी के बीच बतासा । -पलटु० भटा। बानी, भा० १, पृ० २२ । बताना'-क्रि० स० [हि० वात+ना (प्रत्य०) या स० वदन विशेष-यह चीनी की चाशनी को टपकाकर बनाई जाती है। (= कहना) ] १. कहना। कहकर जानकार करना । टपकने पर पानी के वायुमरे बुलबुले से बन जाते हैं जो जमने जानकारी कराना। अभिज्ञ करना। जताना। कथन द्वारा पर खोखले और हलके होते हैं और पानी में बहुत जल्दी सूचित करना । जैसे,—(क) रखी हुई वस्तु वताना, भेद घुलते हैं। बताना, युक्ति वताना, कोई बात बताना । (ख) बतायो तो मुहा०-बतासे सा घुलना = (१) शीघ्र नष्ट होना। (शाप)। मेरे हाथ में क्या है। (२) क्षीण और दुबला होना । संयोक्रि०-देना। २. एक प्रकार की प्रातशबाजी जो पनार की तरह छूटती है २. किसी की बुद्धि में लाना। समझाना । बुझाना। हृदयंगम और जिसमें बड़े बड़े फूल से गिरते हैं। ३. बुलबुला । वुद्- फंराना। जैसे, अर्थ वताना, हिसाव बताना, अक्षर बताना । बुद । बुल्ला।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/१२८
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