पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/११४

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बचाव ३३५३ बछ 'वच्चा'। झाडी। घने घेरे छवि छावै । महाराज को शुत्रुवात से सजग बचावै । यो०-बच्चे कच्चे-बाल बच्चे । बड़े छोटे लड़के लड़कियाँ । -गोपाल (शब्द०)। २. प्रभावित न होने देना। अलग बच्चेवाज = समलैगिक मैथुन करनेवाला। रखना । ३. व्यय न होने देना । खर्च न होने देना । खर्च बच्चा-वि० अज्ञान । अनजान । जैसे.-अभी तुम इस कार्य में करके कुछ रख छोड़ना। ४. छिपाना | चुराना । जैसे, आँख बच्चे हो। बचाना । उ०-पीठि दै लुगाइन की डोठहि वचाय, ठकुराइन वच्चाकश-वि० [ फा० बच्चह कश ] ( स्त्री ) बहुत बच्चे जनने- सुनाइन के पायन परति है । -व्यंग्यार्थ०, पृ० १० । ५. किसी वानी। ( विनोद में ) । बुरी बान से पलग रखना । दूर रखना । जैसे,-बच्चों को बच्चादान-सज्ञा पुं० [ फा० बच्चह दान ] गर्भाशय । कोस्त । सिगरेट, तंबाकू आदि से बचाना चाहिए । ६. ऐसे रोग से बच्चो-शा स्त्री० [हिं० वच्चा+ई (प्रत्य०) १. वह छोटी घोडिया मुक्त करना जिसमें मरने की आशंका हो । ७. पीछे करना। जो छत या छाजन में बड़ी घोडिया के नीचे लगाई जाती है । हटाना। २. वह बाल जो होंठ के नीचे बीच में जमता है। ३. दे० बचाव-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० बचाना ] १. बचने या बचाने का भाव । २. रक्षा । प्राण। उ०—कहा कहति तू भई वावरी। ऐसे बच्चेदानी-शा स्त्री० [हिं० वच्चादान ] गर्भाशय । कैसे होय सखी री घर पुनि मेरो है बचाव री।-सूर बच्छ-सज्ञा पुं॰ [ मं० वत्स, प्रा० बच्छ 1 [सशा स्त्री० बच्छी ] १. (शब्द०) । ३. बाद मे सफाई । सफाई पक्ष । बच्चा। बेटा। उ०-बहुरि बच्छ कहि लाल कहि रघुपति घचिया--सज्ञा स्त्री० [हिं० बच्चा (= छोटा)] कसीदे के काम में रघुबर तात । कहिं बोलाइ लगाइ हिय हरषि निरखिहऊँ छोटी छोटी बूटियाँ। गात ।-तुलसी (शब्द०)। २. गाय का वच्चा। बछडा । बचीता-सञ्ज्ञा पुं॰ [देश॰] दो तीन हाय ऊची एक प्रकार की उ०-(क) राम जननि जब आइहि धाई। सुमिरि वच्छ जिमि धेनु लवाई।-तुलसी (शब्द०)। (ख) बच्छ पुच्छ ले दियो हाथ पर मंगल गीत गवायो। जसुमति रानी कोख विशेष-इसके तने और टहनियों पर बहुत अधिक रोएं होते सिरानी मोहन गोद खेलायो ।—सूर (शब्द॰) । हैं । यह गरम प्रदेशों की पड़ती भूमि में अधिकता से पाई जाती है। इसमें चमकीले पीले रंग के छोटे छोटे फूल लगते बच्छनाग-जज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'वथनाग' । हैं जो बीच में काले होते हैं। इसके तने से एक प्रकार का वच्छल@-वि॰ [ स० वत्सल, प्रा० बच्छत ] माता पिता के समान मजबून रेशा निकलता है। प्यार करनेवाला। वत्सल । उ०-सुनि प्रभु वचन हरखि बचुभा-संज्ञा पु० [ देश०] ए 6 प्रकार की मछली । हनुमाना । सरनागत वच्छल भगवाना।—तुलसी (शब्द०)। विशेष-यह पिंध, उडीसा, बगाल और प्रासाम की नदियों बच्छलता-संज्ञा सी० [सं० वत्सलता] वात्सल्य भाव । उ०- में होती है। साधारणतः यह बालिश्त भर लबी होती है पर निपट श्रमित जननी कई जानि । निरवधि बच्छलता पहि- इस जाति की कोई कोई बड़ी मछली हाथ डेढ हाथ तक भी चानि ।-नंद० ०, पृ० २५० । लवो होती है। वच्छस- ज्ञा पुं० [सं० वक्षम् ] छाती । वक्षस्यल । उ०-जानत बचूना-सज्ञा पुं० [हिं० बच्चा ] भालू का बच्चा । (कलंदर)। सुभाव ना प्रभाव मुजदडन को, खंडन को छत्रिन के वच्छस बचो-सज्ञा सं० [ देश० ] एक बारहमासी लता । कपाट को।-तुलसी (शब्द॰) । विशेष-यह लता काशमीर, सिंघ और काबुल में होती है । बच्छा-चा पु० [सं० दत्सक, प्रा० बच्छ [ स्त्री० बछिया ] १. इसकी जड़ से मजीठ की तरह का रग निकलता है । यह वीज गाय का बच्चा। बछड़ा। बछवा । २. किसी जानवर का पोर जड़ दोनो से उत्पन्न होती है। तीन वर्ष से लेकर पांच बच्चा । (क्व०)। वर्ष तक मे इसकी जड पककर तैयार होती है। इसकी पत्तियां पशु और विशेषतः केट बड़े चाव से खाते हैं । बछ१-सज्ञा पुं॰ [सं० वत्स, प्रा० बच्छ] गाय का बच्चा । बछड़ा उ.-बाल बिलख मुख गौ न चरति तृण बछ पय पियन न वच्चा-सा पु० [ फा० वच्चह , तुल० स० वत्स, प्रा० बच्छ] धाव। देखत अपनी अंखियन ऊबो हम कहि कहा जनावै । [ स्त्री० बच्ची ] १. किसी प्राणी का नवजात और असहाय शिशु । जैसे, गाय का बच्चा, हाथी का बच्चा, मुर्गी का —सूर (शब्द०)। (ख) राक्षस तहाँ धेन बछ भष्पं ।-पृ० रा०,६१ । १७६६। बच्चा इत्यादि। मुहा०-वच्चा देना = प्रसव करना । गर्भ से उत्पन्न करना । यौ०-बछपालवत्सल । वच्छल । उ०-वरपि कदम्म सुबन्न चढि, लज्जित वह बर वाल। हथ्य जोरि सम सो भई, प्रभु २. लड़का । बालक । मुहा०-बच्चों का खेल = बहुत सुगम कायं । सहज काम । वुल्ले बछपाल ।-पृ० रा०, २ । ३७७ । ३. बेटा। पुत्र । उ०-चंगाह चंद बच्चा बचन इह सलाम बछ-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० ] दे० 'वच' । फरि कथ्थिया। -पृ० रा०, ६४११५६ । बछ-संज्ञा पुं॰ [सं० वक्षस् प्रा० यच्छ ] छाती। वक्ष। ७-१३