पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/१०७

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बख्त बगदाना सांकरी खोरि वखोरि हमैं फिन खोरि लगाय खिसैबो फरो पंसारियों को पुटिया प्रादि पौधने के काम पाती है। कहीं कोई । -देव (शब्द०)। पाही लोग इसे भाग साथ पीस कर पीते हैं जिससे उसका बख्त-पंज पुं० [फा० ] भाग्य | किस्मत । सकदीर । उ०-बड़े नशा बहुत बढ़ जाता है। बख्त महाराज राजे तुम्हारी।-५० रासो०, पृ०५५ । बगछुट, वगटुट-कि० वि० [हिं० पाग+छूटना या टूटना] यौ० -बदबख्त । कंघस्त । सरपट । बेतहाशा । बडे वेग से | जैसे, बगछुट भगाना या भागना । उ०—(क) वहाँ जो मेरे सामने एक हिरनी कनो. बख्तर-सज्ञा पु० [फा० पफ्तर ] लोहे के जाल फा घना हुधा तियाँ उठाए गई थी, उसके पीछे मैंने घोड़ा वगछुट फेंका कवच । सन्नाह । धफतर। उ०-चारि मास धन बरसिया, प्रति अपूर्व शर नीर-। पहिरे जहतर बस्तर सुभै न एको पा । --इंणा (शब्द०)। (प) इस वक्त पाप ऐसे बदहवास तीर ।-कवीर (शब्द०)। कहाँ वगटुट भागे जाते थे, सच पाहिएगा |--फिसाना०, भा. १, पृ०२। बख्तरी-वि० [हिं० पख्तर+ई (प्रत्य॰)] कवचधारी । जो बस्तर विशेप--इम शब्द का प्रयोग वहधा घोड़ों की पालक संबंध पहने हुए हो। उ०—ऐसी मुहकम बस्तरी सगा न एको तीर ।-संतवाणी., भा० १, पृ० १०२॥ मे ही होता है। पर कभी कमी हाम्य या व्यग्य में लोग मनुष्यों के सवघ में भी बोल देते हैं । बख्तवार-वि० [फा० घरतयार या फा० यस्त+हिं० वार (= घगड़ा-सा पु० [ राज० पाघट या गुज० थगट (= बदमाश)] वाला)] भाग्यवान । खुशनसीब । उ-उत्चम भाग का बिना बस्ती पा देपा, मरुभूमि पादि जहाँ लुटेरे रहते हों। भोगनी वख्तवार, घर उसका सो था बंदर के सार ।- उ०-माह तदा संदेसा, बगह विवाह साइ।- ढोला०, दक्खिनी०, पृ०७७। ८०८२ बस्तावर-वि० [फा० परतावर ] भाग्यवान । वस्तवार [को०] । घगड़ी-संज्ञा पी० [हिं० ] बगिया । बख्श'-प्रत्य० [फा० वरश ] १. देनेवाला । २. क्षमा करने- वगतर, यगत्तर --संज्ञा पुं० [फा० यस्तर ] दे 'वस्तर। वाला। उ०—(क) यगतर परसर टोप सु सज्जिय।-. रासो, घख्श--संज्ञा पुं० १. अंश । खंड । २. हिस्सा । विभाग [को०)। पृ०५१। (प) प्रत सह संड घाउ सुन्नरं वगचरं ।-१० वख्शना-क्रि० स० [फा० घरश + हिं० ना (प्रत्य॰)] १. देना। रा०,५८२४४। प्रदान करना। २. त्यागना । छोऽना । जाने देना । क्षमा बगदई:-वि० [हिं० बगदना+हा (प्रत्य॰) [नी० यगदई ] करना । माफ फरना। उ०-कामी कबहूँ न हरि भजे मिट दे० 'बगदहा' । उ०-घरे न घिरत तुम बिनु माधो न मिलत न संशय मूल । पौर गुनह सब बस्शिहै । फामी डाल न नही पगदई । विष्टरत फिरत नकस वन महिया एका एक भूल । —कबीर (शब्द०)। गई।-पूर (शब्द.)। बख्शवाना, बख्शाना-क्रि० स० [हिं० परशना का प्ररणार्थक ] यगदई-संशा भी० वगदने की स्थिति, भाव, क्रिया । वख्शने का प्रेरणार्थक रूप । किसी को बख्शने में प्रवृत्त वगदना-कि०म० [सं० विकृत, गुज० पगड ( = बदमाश ), करना। हिं० विगट्ना ] १. विगढ़ना। ऋद्ध होना। २. नष्ट होना। बख्शिश-संज्ञा सी०, [फा० परिशश ] १. उदारता । दानशीलता। खराव होना । ३. बहकना । भूनना । ४. मृत होना । ठीक २. दान । ३. क्षमा । ४. पुरस्कार । इनाम (को०)। रास्ते से हट जाना। ५. लोटना। वापस होना । ३०- यौ०-घरिशशनामा, बम्शीशनामा= दानपत्र । (क) मागे वरि दं गोधन वृद। बदन चूमि व्रज वगदे नंद । बख्शी-संज्ञा पु० [फा० वस्शो १. वेतन घोटनेवाला फर्मचारी। नंद० प्र०, पृ० २७५ । (स) का दिन रहें बगदि बज खजांची । २. कर वसूल करनेवाला । मुशी [को०] । प्रज पर मानंदघन घरसावनि ।-घनानंद, वाशीस--सज्ञा पु० [फा० परिशश ] दे० 'बहिशश' । पृ०३१७॥ वग-1 पु० [सं० धक] बगुला। उ०-उज्वल देखि न बगदर-संग पुं० [ देशज ] मच्छर । घोजिए, वग ज्यों माहे ध्यान | घोरे वैठि चपेटसी, यो ले बगदवाना-कि० स० [ बगदना का प्रे० रूप ] १. विगडवाना। बूड़े ज्ञान ।-कबीर (शब्द०)। (ख) पग उलूक झगरत २. खराव कराना। ३. भुलवाना। मम में डालना। गए, अवध जहाँ रघुराउ । नीक सगुन निवरहि झगर, होइहिं ४. लुढकाना । गिरा देना। ५. प्रतिज्ञा भंग कराना । अपने धरम निपात ।-तुलसी (शब्द०)। वचन से हटाना। घगई:-संज्ञा स्त्री॰ [ देशज ] १. एक प्रकार की मक्खी जो कुत्तों पर बगदहा@+-वि० [हिं० यगदना + हा (प्रत्य॰)] [ सी० बहुत पैठती है । कुकुरमाछी । २. एक प्रकार की घास जिसकी घगदही ] चौकने या बिगहनेवाला । विगडेल । पत्तियां बहुत पतली और लबी होती है । बगदाना-क्रि० स० [हिं० बगदना] १. विगटवाना। कुछ विशष-यह ताप बनाने के काम में आती है और सूत्रने पर कराना । २, खराब करना । विगाहना । ३. ध्युत करना। मावनि।