बकुरना ३३४३ बक्काल दे० 'वकारी' या 'वक्कुर'। उ०-दुई हाथ गहि सीस उ०—होती जु पं कुवरी ह्याँ सस्ती, मारि लातन मूका बको- उठावा । पूछत वात बकुर नहिं घावा ।-चित्रा०, पृ०६४ । टती केती।-रसखान०, पृ० २७ । बकुरना--क्रि० प्र० [हि० ] दे० 'बकरना। बकोटा-संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'बकोट' । बकोरी-संज्ञा स्त्री० [हिं० वावर ] दे० 'गुलबकावली' । उ०- बकुराना-क्रि० सं० [हिं० बरना का प्रेरणार्थक रूप ] कबूल कराना । मंजूर कराना । कहलाना । कोई मो बोलसर पहुए बकोरी। कोई रूपमंजरी गोरी ।- जायसी ( शब्द०)। विशेष- इस शब्द का प्रयोग प्रायः ऐसी अवस्था में होता है जब बकौंडा-संज्ञा पुं० [हिं० बक्कल ] पलाश की कूटी हुई किसी को भूत लगा होता है। लोग उससे भूत का नाम पता जड़ जिससे रस्सी बटी जाती है। प्रादि कहलाने के लिये प्रयोगादि द्वारा बाध्य करते हैं और उससे नाम पता प्रादि कहलवाते है । बकौड़ा--संज्ञा पुं० [हिं० ] दे० 'बकीरा'। बकुल-संज्ञा पुं॰ [ सं०] १. मौलसिरी। उ०-देखो पवन झोंकों वकौरा-संज्ञा पुं॰ [हिं० बोका अथवा स० वर + हिं० श्रौंरा (प्रत्य॰)] से बकुल के पत्ते कैसे हिलते हैं।-शकुंतला, पृ० १५ । २. वह टेढ़ी लकड़ी जो बैलगाड़ी के दोनों ओर पहिए के ऊपर शिव । महादेव । ३. एक प्राचीन देश का नाम । ४. एक लगाई जाती है। इसी के बीच में छेद करके धुरी लगाई प्रकार की ओषधि (को०)। जाती है और दोनों छोर पहिए के दोनों ओर की पटरी में साले या वैठाए हुए होते हैं । पैगनी। पैजनी। बकुलटरर--संज्ञा पुं० [हिं० बकुला+ अनुध्व० टरर] बगला । पानी की एक चिड़िया जिसका रंग सफेद होता है और जो डील चकौरी-संज्ञा स्त्री० [हिं० ] दे॰ 'गुलबकावली'। उ०-सुरंग डौल में प्रादमी के बराबर ऊँची होती है । गुलाल कदम यो कूजा । सुगंध वकौरी गंध्रब पूजा जायसी (शब्द०)। बकुला -संज्ञा पुं० [हिं० वगला ] दे० 'बगला' । बक्कम-शा पुं० अ० वकम ] एक वृक्ष । पतंग । बकुली-मंशा सी० [सं०] एक प्रकार की प्रोपघि घो०] । विशेष-यह वृक्ष भारतवर्ष में मद्रास और मध्यप्रदेश में तथा वकुल-संज्ञा पुं० [सं० ] मौलसिरी का पेड़ [को०] । बर्मा में उत्पन्न होता है। इसका पेड़ छोटा और केटीला वकेन, वकेना-शा स्त्री० [सं० बष्कयणी] वह गाय या भैस जिसे होता है । लकडी काले रंग की तथा दृढ और टिकाऊ होती है। बच्चा दिए साल भर से अधिक हो गया हो और जो वरदाई यह फटती या टेढी नहीं होती। इससे मेज, कुर्सी श्रादि बन न हो और दूध देती हो। ऐसी गाय का दूध अधिक गाढा सकती है। रग और रोगन से इसपर अच्छी चमक पाती और मीठा होता है | लवाई का उलटा। है। इसकी लकडी, छिलके और फलों से लाल रंग निकलता है जिससे सूत्र मौर ऊन के कपड़े रंगे जाते हैं और जो छीट वकेरुका-ज्ञा स्त्री० [ मं०] १. छोटा वक पक्षी। २. वायु से झुकी वृक्ष की शाखा [को०] । की छपाई में भी काम आता है। इसके बीज बरसात में बोए जाते है। बकेल -संज्ञा स्त्री॰ [हिं० बकला ] पलास की जड़ जिसे कूटकर रस्सी बनाते हैं। बफर-संज्ञा पुं० [स० बर्कर, प्रा. वक्कर ] बकरा। छाग । बकैयाँ-मज्ञा पुं० [स० वक्र+हिं० ऐयाँ (प्रत्य) ] बच्चों चलने उ०—(क) पद्र सेर रइभोग एक सीरावन बक्कर ।-पृ० का वह ढग जिसमे वे पशुश्रो के समान अपने दोनों हाथ और रा०, ६४।२२० । (ख) बक्कर का हलाली षांण सूकर कोन दोनो पर जमीन पर टेककर चलते हैं। घुटनों के बल पाण। -शिखर०, पृ० ३ । चलना। वक्कल-सज्ञा पुं० [ स० बल्कल, पा० प्रा० वक्कल ] १. छिलका । वोकला । २. छाल । वकोट'-सज्ञा पुं॰ [सं०] बक नाम का पक्षी। बगुला उ०-लाजालू गुल चिमन में, खगकुल माह बकोट । मावडिया मिनखाँ मही बक्का-संज्ञा पु० [ देशज ] सफेद या खाकी रंग के एक प्रकार के या तीनो में खोट ।-बांकी० न, भा० २, पृ० १७ । छोटे छोटे कीड़े जो धान की फसल में लगते हैं और उसके पत्ते और बालों को खाकर उसे निर्जीव कर देते हैं। ये कीड़े बकोट-सज्ञा ग्नी० [ सं० प्रकोप्ठ, पा० पक्कोट या सं० अभिकोप्ठ ] १. पजे की वह स्थिति जो किसी वस्तु को ग्रहण करने या जहाँ चाटते हैं वहां सफेद हो जाता है । नोचने प्रादि के समय होती है। हाथ की अंगुलियो की वक्कारना-कि० स० [हिं० बकार या वकारी ] पुकारना । संपुटाकार मुद्रा । किसी पदार्थ की उतनी मात्रा जो एक बार आवाज देना । ललकारना । उ०-वर कन्ह वीर सोमेस पहु चंगुल में पकडी जा सके । जैसे, एक वकोट प्राटा । ३. चाहुधान बक्कारिऐ ।-पृ० रा०, ७।३२ । वकोटने या नोचने की क्रिया या भाव । बक्काल-संज्ञा पुं० [अ०] वह जो पाटा, दाल, चावल या और चीजें वकोटना-क्रि० सं० [हिं० बकोट+ना (प्रत्य॰)] बकोट से किसी वेचता हो। वणिक । बनिया । उ०-न जर्को मतवर के दुको को नोचना । नाखूनों से नोचना । पंजा मारना । निखोटना । न गल्ल वो बक्काल ।-कविता को०, भा० ४, पृ० २२ ।
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