पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/८९

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पा २७८ पत्रवल्ली या व्यवसाय। 1 पत्र- सश पुं० [ स० पत्र पुट ] दे० पात्र' । उ०-पत्र सुधार जोगणी पत्रपुरा-मज्ञा स्त्री० [सं०] ६६ हाथ लवी, ४८ हाथ चौडी और माल सुघारे रभ थम चलेवी सोमरवि देखे व्योम अचभ । ४७ हाथ ऊँची नाव ( युक्तिकल्पतरु )। -रा० रू०, पृ० ३६ । पत्रपुष्प-सज्ञा पुं० [सं०] १ लाल तुलसी। २. एक विशेष प्रकार पत्रक-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] १ पत्ता । २ पत्तो की लडी। पत्रावली। की तुलसी । जिसकी पत्तियां छोटी छोटी होती हैं । ३ किसी ३. शातिशाक । ४ तेजपत्ता। ५ दे० 'पत्रभग' । के सत्कार या पूजा की बहुत मामूली सामग्री । लघु उपहार । पत्रकार-संज्ञा पुं० [स०] १ वह जो किसी सार्वजनिक समाचारपत्र छोटी भेंट । उ० - मेरा पत्रपुप्प स्वीकार कर मुझे कृतार्थ या पत्रिका का सचालन करता हो। वह जो किसी अखवार कीजिए (शब्द०)। को चलाता हो, सवाददाता हो, फीचर लिखता हो आदि पत्र सचालक। पत्रपुष्पक-सा पुं० [ 10 ] भोजपत्र । एडीटर। पत्रसपादक । प्रखवारनवीस । पत्रपुष्पा-सज्ञा पी० [ म०] १. तुलसी। २ छोटे पत्ते की तुलसी । जरनलिस्ट । २ वह जो किसी समाचारपत्र या अखवार मे नियमित रूप से लिखता हो। रिपोर्टर । पत्रबेघ-संज्ञा पुं० [म० पत्रवन्ध ] फूलो का शृगार । पत्रकारिता, पत्रकारी--सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं०] पत्रकार का काम पत्रवाल-सज्ञा पुं० [सं० ] डाँडा (को०] । पत्रभंग-पशा पुं० [ मं० पनभन] १. वे चित्र या रेयाएँ जो सौंदर्य- पत्रकाहना-सञ्ज्ञा स्त्री० [म० ] पख फडफडाने या पत्तों के फटकने वृद्धि के लिये स्त्रियां, कस्तूरी, केमर, प्रादि के लेप अथवा की ध्वनि [को०] । सुनहले, रुपहले पत्तरो के टुकडो से भाल, कपोल, आदि पर पत्रकृच्छ-सञ्ज्ञा [ म० ] एक व्रत जिसमे पत्तो का काढ़ा पीकर रहा वनाती हैं। माथे और गाल पर की जानेवाली चित्रकारी जाता है। अथवा बेलबूटे । साटी। २ पभग बनाने की क्रिया। पत्रगान-सञ्ज्ञा पु० [स] पेड के पत्तों से उत्पन्न ध्वनि । मर्मर पत्रभगि-पशा सी० [ म० पत्रभग्नि ] दे० 'पयभग' । शब्द । उ०-करुणा के दान पान, फूटे नव पयगान । -अर्चना, पृ०५६ । पत्रभगी-मज्ञा स्त्री० [सं० पत्रमनी ] दे० 'पद्मभंग' । पत्रगुप्त-सशा पुं॰ [ स०] तिधारा । थूहर । निकटक । पत्रभद्र-सज्ञा पुं० [मं०] एक प्रकार का पौधा । पत्रघना, पत्रघ्ना-सज्ञा स्त्री॰ [ स० ] सेहुँड । थूहर । पत्रमंजरी-सज्ञा पी० [सं० पत्रमञ्जरी ] एक प्रकार का तिलक जो पयुक्त मजरी के आकार का होता है। पत्र ज-सज्ञा पुं० [सं०] तेजपात । पत्रकार- सज्ञा पुं० [सं० पत्रमाड कार ] नदी का वेग । नदी का पत्रमाज-सज्ञा स्त्री॰ [ म०] वेत । वेतस [को०] । प्रवाह को०] 1 पत्रयौवन-सज्ञा पुं० [सं०] नया पत्ता । पल्लव । कोपल । पत्रहुली-सज्ञा स्त्री॰ [ सं० पत्रतण्डुली ] यवतिवता लता । पत्ररचना-सा मी [म०] पत्रभग । पत्रतरु-सज्ञा ॰ [सं०] दुर्गंध खैर । पत्ररथ-पज्ञा पुं॰ [सं०] पक्षी। चिडिया। उ०-वियग पती पत्र- पत्रता-सज्ञा स्त्री० [ स० पत्र+ता (प्रत्य॰)] पत्तापन । उ०- रथ पत्री पतग पतग ।-अनेकार्थ०, पृ० २५ । डालियां बहुत सी सूख गई। उनकी न पत्रता हुई नई। यौ०-पत्ररथेंद्र = गरुड । पत्ररथेंद्रकेतु = विष्णु । -पाराधना, पृ० २२ । पत्ररेखा-सज्ञा सी० [स०] दे॰ 'पत्र रचना' । पत्रवालक-मज्ञा पुं० [ मै० ] वसपत्र । हरताल । पत्रलता-सा सी० [म.] १ वह लता जिसमें प्राय पत्ता ही पत्ता पत्रदारक-सज्ञा पुं० [सं०] लकडी चीरने का पारा [को०] । हो । २ पत्रमग । साटी । ३ लवी छुरी (को०) । पत्रद्रुम-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] ताड का पेड । पत्रलवण-सज्ञा पुं० [स०] एक प्रकार का नमक जो एरड, मोरवो, पत्रनाडिका-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० ] पत्ते की नस । मड सा, कंज, अमिलतास और चीते के हरे पत्तो से निकाला पत्रपार-सञ्ज्ञा पुं० [सं० ] स्वर्णकार की छेनी [को०] । जाता है। पत्रपा-सञ्चा स्त्री० [सं०] लज्जा । सकोच [को०) । विशेष-इन सब पत्तो को खरल मे फूटकर घी या तेल के पत्रपाल-पज्ञा पुं० [सं०] लवा छुरा या कटार । किसी बरतन मे रखते हैं और ऊपर से गोबर लीपकर भाग पत्रपाली-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] १ वाण का पिछला भाग । शरपुख । मे जलाते हैं । यह नमक वात रोगो में लाभदायक होता है। २ कैंची । कतरनी। पत्रल-वि० [स०] पत्तोवाला । घने पत्तोवाला। पत्रपाश्या-सज्ञा स्त्री० [सं०] माथे पर का एक आभूषण विशेष । पत्रल-संज्ञा पुं० हिली डुली या पतली दही [को०] । टीका [को॰] । पत्रलेखा-सज्ञा स्त्री० [सं०] पत्रमग । साटी। पत्रपिशाचिका–सज्ञा स्त्री० [स०] पत्तों से बनाई गई छतरी पत्रवल्लरी-सज्ञा श्री० [सं०] पत्रमग । साटी। [को०] । पत्रवल्ली-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] १ शकरजटा । २ पान । ३ पलासी पत्रपुट-सशा पु० [सं०] पत्ते का पात्र। दोना [को॰] । लता। ४. पर्णलता । ५. पत्रभग (को॰) ।