पतग पतंगळुरी २७८५ पतउभा मुहा०-पतग काटना = अपने पतंग की डोरी से दूसरे के पतंग सगृहीता के रूप मे पतंजलि का नाम लिया जाता है, पर की डोरी को रगडकर काट देना। पतग उड़ाना = डोरी यह मत ऐतिहासिको को मान्य नहीं हैं। ढीली करके पतग को हवा मे और ऊपर या आगे बढाना । विशेष-इनकी माता का नाम गोणिका और जन्मस्थान गोनई पतंगछुरी-मी० [म० पतग (= उडानेवाला अथवा चिनगारी) + था। डा. सर रामकृष्ण भाडारकर के मत से आधुनिक हिं० छुरी ] पीठ पीछे बुराई करनेवाला। दो व्यक्तियो या गोडा ही प्राचीन गोनई है। गोरिणकापुत्र, गोनीय आदि दलो में झगडा करानेवाला । चुगुलखोर । पिशुन । चवाई । इनके नाम मिलते हैं। ऐसा प्रसिद्ध है कि ये कुछ समय तक काशी मे भी रहे थे। जिस स्थान पर इनका रहना माना पतंगबाज-सज्ञा पुं० [हिं० पतंग+ फा० वाज ] १ वह जिसको जाता है उसे आजकल नागकुमां कहते हैं । नागपचमी के दिन पतग उडाने का व्यसन हो। वह जिसका प्रधान कार्य पतग वहाँ मेला होता है और बहुत से सस्कृत के पडित और छात्र उहाना हो। वह जिसका अधिकाश समय पतग उडाने वहां एकत्र होकर व्याकरण पर शास्त्रार्थ करते हैं। ये अनत मे जाता हो। २ पतग से क्रीडा करनेवाला। भगवान् अथवा शेषनाग के अवतार माने जाते हैं । अन्य सभी उडाबर मनोरजन करनेवाला । पतग का शौकीन । सूत्रग्रथो की व्याख्याएँ भाष्य कही गई है, केवल पतजलिकृत पतंगवाजी-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० पतंगबाज ] १. पतगवाज होने का भाष्य को महाभाष्य की सज्ञा और प्रतिष्ठा मिली। भाव । पतग उडाने की क्रिया या भाव । पतग उडाना। बहुत से लोग दर्शनकार पतजलि और भाष्यकार पतजलि को २ पतग उडाने की कला । जैसे,--पतगवाजी मे वह अपना एक ही व्यक्ति मानते हैं। परंतु यह मत विवादास्पद और जोड नही रखता। अनिर्णीत है। योग सूत्रकार पतजलि भाष्यकार पतजलि से पतंगम--सज्ञा पु० [ स० पतगम ] १ पक्षी । चिडिया । २ पतगा। बहुत पूर्व के माने गए हैं। महाभाष्य के रचनाकाल से सैकडो सूर्य । ३. शलभ । पतगा। वर्ष पहले कात्यायन ने पाणिनीय सूत्रों पर अपना वार्तिक पतंगसुत-सञ्चा पुं० [ स० पतङ्ग (= सूर्य) +सुत] १ सूर्य के पुत्र बनाया था। कहते हैं कि उसमे योगसूत्रकार पतजलि का अश्विनीकुमार । २ यम । ३ शनि। ४. सुग्रीव । ५. कर्ण। उल्लेख है। कात्यायन के वार्तिक पर पतजलि का भाष्य है। राधेय । उ०-भजु पतगसुत प्रादि कहें मृत्यु जय अरि इस आधार पर कहा जाता है कि योग सूत्रकार पतजलि अंत। तुलसी पुष्कर जन्यकर चरन पासु इच्छत ।-स० महाभाष्यकार पतजलि से पहले के हैं। उनका समय भी सप्तक, पृ०१६। निश्चित हो चुका है। वे शुगवश के संस्थापक पुष्यमित्र के समय मे वर्तमान थे। मौर्य राजा को मारकर जव पुष्यमित्र पतगा-सज्ञा पु० [स० पतग ] १ पतग। कोई उडनेवाला कीडा मकोडा । फतिंगा या पांखी आदि । २ परदार कीडों की राजा हुआ तब उसने पाटलिपुत्र मे अश्वमेघ यज्ञ किया। इस यज्ञ मे पतजलि जी ने भी भाग लिया था। जाति का एक विशेप कीडा जो प्राय घासो अथवा वृक्ष की पत्तियो पर रहता है। फतिंगा। ३ चिनगारी। स्फुलिंग । पत--सञ्ज्ञा पुं॰ [सं० पति ] १ पति । खसम । खाविंद । ३. अग्निकरण । ४. दीए की बत्ती का वह अश जो जलकर मालिक । स्वामी। प्रभु। उससे अलग हो जाता है। फूल । गुल । पत-सज्ञा स्त्री० [सं० प्रतिष्ठा ] १. कानि । लज्जा। पावरू । पतपिका-सञ्ज्ञा स्त्री० [स० पतङ्गिका ] १ मधुमक्खियो का एक विशेष-दे० 'पति' । उ०—मुख मेरा चूमत दिन रात । होठों भेद । वही मधुमक्खी। पुत्तिका । २ छोटी चिडिया (को०) । लागत कहत न वात । जासे मेरी जग मे पत । ए सखी साजन ३ दे० 'पतचिका' (को०)। ना सखी नथ । खुसरो (शब्द०)।२ प्रतिष्ठा। इज्जत । पतगी'-वि० स्त्री० [ स० पतग ] रग बिरगी या महीन । उ०-- उ०-बोला है तुझे गम है ऊँटो का, कुछ गम नई पत रहमा गोरे तन पहिरि पतगी सारी झपकि झपकि गावै गारी, का ।-दक्खिनी०, पृ० २२३ । मिजावै आनदघन पिय इसरग ।-घनानद, ४४२ । क्रि० प्र०-खोना । -गँवाना। -जाना। -रखना । पतंगी--सञ्चा पु० [ स० पतशिन् ] पक्षी [को॰] । यौ०-पतपानी=लज्जा। पावरू। पतगेंद्र-सशा पुं० [ स. पतझेन्द्र ] पक्षिराज । गरुड । मुहा०—पत उतारना = किसी की प्रतिष्ठा नष्ट करनेवाला पतचल-सञ्ज्ञा पु० [ स० पतञ्चल ] एक ऋषि का नाम [को०] । काम करना। दस प्रादमियो के बीच में किसी का अपमान करना। वेइज्जती करना। पावरू लेना। पत रखना पतचिका-सज्ञा स्त्री॰ [ स० पतञ्चिका ] घनुप की डोरी । कमान की ताँत । चिल्ला। प्रतिष्ठा भग न होने देना। इज्जत बनी रहने देना। इज्जत बचाना । पत लेना= दे० 'पत उतारना'। पतंजलि-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० पतञ्जलि ] १. एक प्रसिद्ध ऋषि जिन्होने योग सूत्र की रचना की। २ एक प्रसिद्ध मुनि जिन्होने पत-प्रज्ञा पुं० [सं० पत्र, प्रा० अप० पत्त, पत] पत्ता । पत्र । जैसे, पतझर। पाणिनीय सूत्रो और कात्यायन कृत उनके वार्तिक पर 'महाभाष्य' नामक बृहद् भाष्य का निर्माण किया था। एक पतई-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० पत्र ] पत्ती । पत्र । किंवदती के अनुसार चरक सहिता के रचयिता और पतउआ-सञ्चा पु० [ सं० पत्र, प्रा० पत्त ] पत्ता । पणं । उ०-पक
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/७६
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