पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/७४

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पणमाथि २०१३ पण्यपत्तन चरित्र जाता था। ७. ऋत्य विक्रय की वस्तु । सौदा । ८ व्यवहार । व्यापार । पणास-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० प्रणाश ] विनाश । नाश । व्यवसाय । ६. स्तुति । प्रशसा । १. किसी के मत से पणासो-वि० [सं० प्रणाशी] विनाशक । नष्ट करनेवाला । ११ और किसी के मत से २० माशे के बराबर तांबे पणाया-सज्ञा स्त्री० [स०] १ द्यूत । जूवा। २ व्यापार का लाभ । का टुकडा जिसका व्यवहार सिक्के की भांति किया जाता ३ स्तुति । ४ बाजार । ५ व्यापार (को॰] । था। ११ मद्यविक्रेता। कलाल (को०)। १२ गृह । घर । पणायित-वि० [ स०] १ खरीदा। बेचा हुा । ३ जिसकी वेश्म (को०)। १३ प्राचीन काल की एक विशेष नाप जो स्तुति की गई हो। स्तुत [को॰] । एक मुट्ठी अनाज के वरावर होती थी। पणार्पण-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स०] सधि । शर्तनामा [को०] । गणप्रथि -सञ्चा श्री० [सं० पणग्रन्थि ] वाजार । हाट । पणि'-सज्ञा पुं॰ [ स०] वैदिक सहिता कालीन एक जाति और पणच्छेदन-सज्ञा ० [ स०] अंगूठा काठने का दड । उस जाति का भादमी। -प्रा० भा०प० (भू०), पृ० 'स' । विशेष-चद्रगुप्त के समय मे दूसरी बार गांठ कतरने के अपराध पणि-सशा श्री० [सं०] १ बाजार । २ दूकान । मे जो राजकर्मचारी पकडे जाते थे, उनका अंगूठा काट दिया पणि-वि०१ कजूस । २ पाप करनेवाला [को०] । पणजित दास-सज्ञा पुं० [ स०] वह जो अपने को जूए के दांव पर पर्णिकता-सञ्ज्ञा स्त्री० [ स०] दुकानदारी। मोलभाव । उ०—पणि- रखकर हारा और दास हुआ हो । कता जगवणिक की है, राणि जैसे करिएक की है ।-अर्चना, पृ०६३। पणता-सज्ञा स्त्री॰ [ स०] कीमत । दाम । मूल्य [को०] । पणत्व-सञ्ज्ञा पुं० [स०] दे० 'पणता' । पणिका-सञ्चा स्त्री॰ [सं०] एक पण । (कौटि०)। पणन-सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ खरीदने की क्रिया या भाव । २ बेचने पणित-वि० [स०] जिसकी प्रशसा की गई है । प्रशसित । स्तुत । की क्रिया या भाव । ३ शर्त लगाने या बाजी बदने की २ क्रीत । ३ विक्रीत । ४ वाजी । ५ जुया । क्रिया या भाव । ४. व्यापार या व्यवहार करने की क्रिया पणितव्य-वि० [ स०] १ खरीदने योग्य । २ वेवने योग्य । ३ या भाव। व्यवहार करने योग्य । ४. प्रशसा करने योग्य । पणनीय-वि० [स०] १. धन देकर जिससे काम लिया जा सके । पणिता-सज्ञा पुं॰ [ स० पणित ] व्यापारी । सौदागर [को०] । २ जिसे खरीदा या बेचा जा सके। पणिहार-सञ्ज्ञा पुं० [स० प्रतिहार ] क्षत्रियो की एक जाति । उ०- पणफर-सज्ञा पु० [स०] कुठली मे लग्न से २रा, ३रा, ५वा ८वां तीन पुरुष उपजे तहाँ चालुक प्रथम पंवार । दूज तीज ऊपजे, और ११वां घर। छत्र जाति पणिहार ।-ह. रासो, पृ० १० । पणवघ-सज्ञा पुं० [सं० पणबन्ध ] बाजो बदना। शर्त लगाना । शर्तबंदी। पणी' -सज्ञा पुं० [सं० पणिन् ] क्रय विक्रय करनेवाला। पणयात्रा-सज्ञा स्त्री० [सं०] सिक्को का चलाना (कोटि०)। पणी-सञ्ज्ञा पुं० एक ऋषि का नाम (को०] । पणव-सशा पु० [सं०] १ छोटा नगाडा । २ छोटा ढोल । ढोलकी । पण्य–वि० [म०] १ खरीदने योग्य । २ वेचने योग्य। ३ उ० – शख भेरी पणव मुरज ढक्का बाद घनित घटा नाद व्यापार या व्यवहार करने योग्य । ४ प्रशसा करने योग्य । वीच विच गुजरत । -भारतेदु ग्र०, भा॰ २, पृ० ६०५ । पण्य' -सञ्ज्ञा पुं०१ सौदा। माल । २ व्यापार । व्यवसाय । ३. एक वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण मे एक मगण एक रोजगार । ३ बाजार । हाट । ४ दूकान । नगण, एक यगण और अत में एक गुरु होता है। प्रत्येक चरण मे १६, १६ मात्राएँ होने के कारण यह चौपाई के भी पण्यदासो-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स०] घन लेकर सेवा करनेवाली स्त्री। लौंडी । मजदूरनी । वाँदी । सेविका। अतर्गत पाता है। उ०-मानौ योग कथित ते मोरा। जीतोगे अर्जुन जी कोरा। पण्यनिचय-पश पुं० [म० ] विक्री का माल इकट्ठा करना । पणवा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स०] दे० 'पणव' । विशेष-इसमें भी चद्रगुप्त के समय मे धान्य के एकत्र करने के पणवानक-पञ्चा पु० [सं०] नगाडा । सदृश ही नियम प्रचलित था। पणवी-सञ्ज्ञा पुं० [ स० पणविन् ] शिव का एक नाम (को०] । पण्यनिर्वाहण-सञ्ज्ञा पुं० [म० ] विना चुंगी का महसूल दिए पोरी पणस-सचा पु० [सं०] क्रय विक्रय की वस्तु । सौदा । चोरी से माल निकाल ले जाना (कौटि०) । पणसुंदरी-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० पणसुन्दरी] वारवनिता । बाजारी स्त्री । पण्यपति-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ भारी व्यापारी। वहुत बडा रोज- रही। वेश्या। गारी । २ वहुत वडा साहूकार । नगरसेठ । पणस्त्री-संज्ञा स्त्री० [सं०] रही। वेश्या । पण्यपचन-सञ्ज्ञा पु० [सं०] वह स्थान जहाँ अनेक प्रकार के माल पणस्थि-सभा सी० [सं० ] कोटी। कपर्दक । आकर विकते हो । मडी । (कौटि०)। 'पणांगना-सञ्ज्ञा सी० [सं० पणाङ्गना ] वेश्या [को०] । पण्यपत्तन चरित्र-सबा पुं० [सं०] मही मे प्रचलित नियम (कौटि०)।