पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/७३

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पढ़ना २७८२ पण ५ मत्र पकना । जादू करना। संयो० कि० - दालना ।-देना । सयो कि०-देना। यी०-पढ़ाना लियाना । ६ तोते, मैना प्रादि का मनुष्यों के सिखाए हुए शब्द उच्चारण २ कोई कला या हुनर सिखाना। उ०—(क) कुलिम कठोर करना । जैसे,-बूढा तोता भला क्या पढ़ेगा। ७ विद्या यूर्ग पीठि ते कठिन अति हटि न पिनाक काहू परि चढायो पढना । शिक्षा प्राप्त करना। अध्ययन करना। जैसे,—इस है । तुलमी गो गम के मरोज पानि परसत टूटयो मानो लडके का मन पढने में खूब लगता है। वारे ते पुगरि ही पढ़ायो है।-तुगी (गन्द०)। (ग) सयो० कि०-जाना।-लेना। परम चतुर जिन कीन्हे मोहन भल्प वयन ही योरी। वारे यौ०-पढ़ना लिखना = शिक्षा पाना। पढना पढाना। पढने ते जेहि यहै पटायो युधि, चल गल विघि पोरी।- लिखने या पढने पढाने का काम । पढा लिखा = शिक्षित । मूर (शब्द०)। जिसने शिक्षा प्राप्त की हो । सयो० क्रि०-दालना ।-देना । ८ नया पाठ प्राप्त करना। नया सवक लेना । जैसे,—तुमने ३ तोते, मैना आदि पक्षियो को बोलना मिसाना। उ०-सुक श्राज पढ लिया या नहीं? मारिका जानकी ज्याए । कना पीजरन रासि पढाए।- सयो क्रि०-लेना। तुलसी (शब्द०)। पढ़ना-सज्ञा पुं० [म० पाठीन] एक प्रकार की मछली। विशेष संयो॰ क्रि०-देना। दे० 'पढिना'। ४ सिसाना। समझाना । उ०-जेहि पिनाक विन नार किए पढनी-सशा पु० [देश॰] एक प्रकार का धान । नृप गरि विषाद वढायो। मोइ प्रभु पर परगत टूटयो जनु पढ़नी उड़ी-सशा मी० [ पढ़नी (?) + उड़ी (= उदान)] करारत हतो पुरारि पढ़ायो ।---तुलगी (शब्द०)। मे एक प्रकार का अभ्यास जिसमें आदमी, टीला या अन्य पढ़िना-गा मुं० [गा पाठीन ] एक प्रकार की विना सेहरे को कोई ऊंची चीज उछलकर लांघी जाती है। मछली जो तालाय और ममुद्र सभी स्थानो मे पाई जाती है। विशेष-इस अभ्यास के दो भेद हैं-एक मे सामने की ओर विशेष-यह मछली प्राय अन्य मय मलियों से अधिक दीर्घ- और दूसरे मे पीछे की ओर उछलते हैं। उछलनेवालो के जीवी और टोल टोलवाली होती है। किसी यिसी पहिने अभ्याम के अनुसार टीला एक, दो या तीन हाथ तक ऊँचा का वजन दो मन से भी अधिक होता है। यह मांसाशी है होता है। और मछलियो के अतिरिक्त अन्य छोटे छोटे जीव जतुप्रो पढ़वाना-क्रि० स० [हिं० पढ़ना तथा पढ़ाना का प्रे० रूप] १ को भी निगल लिया करती है। इसके नारे शरीर के मास किसी से पढ़ने की क्रिया कराना। किसी को पढने मे प्रवृत्त मे बारीक वारीक काटे होते हैं जिन्हें दांत रहते हैं । वैद्यक करना । वंचवाना । जैसे,—यह पत्र तुमने किससे पढ़वाया? मे इमे कफ पित्तकारक, बलदायक, निद्राजनक, कोढ़ मौर २ क्सिी से पढ़ाने की प्रिया कराना। किसी के द्वारा किसी रक्तदोष पैदा करनेवाला लिखा है। को शिक्षा दिलाना । जैसे,—मैंने अमुक पडित से अपने लड़के पर्या०-पाठीन । सहनदष्ट्र । वोदालक । बदालक । पढना। को पढवाया है। पहिना। पढ़वैया-तज्ञा पुं० [हिं० /पढ़ + ऐया (प्रत्य॰) ] पढनेवाला । पढेया-सशा पु[हिं० पढ़ना + ऐया (प्रत्य॰)] पढनेवाला। पढ़वैया । शिक्षार्थी। पाठक । वह जो पढ़ सके । उ०-घोपासा कुराना का पढ़या पढ़ाई-सञ्ज्ञा ली० [हिं० पढ़ना + आई (प्रत्य॰) ] १ पढने का ने बुलाया ।-शिखर०, पृ०६३ । काम । विद्याभ्यास । अध्ययन । पठन । २ पढने का भाव। पढ़ीनी-सशा प्री० [हिं० पढ़ाना ] दे० 'पढ़ाई'। उ०-वाचो की जैसे,—तुम्हारी पढाई हमको तो ऐसी ही वैसी मालूम होती अम्मा का पडोस की वस्ती मे जाकर यह पढौनी करना वड़ा है । ३ वह धन जो पढने के बदले में दिया जाय । ही प्रखग था।-नई०, पृ० ११५ । पढ़ाई २–सञ्चा मी० [हिं० पदाना + आई (प्रत्य॰)] १ पढाने का पण-सज्ञा ० [स०] १ कोई खेल जिसमें हारनेवाले को कुछ काम । अध्यापन । पाठन । पढौनी। २ पढ़ाने का भाव । ३ परिमित धन अथवा कोई निदिष्ट वस्तु जीतनेवाले को पढ़ाने का ढग । प्रध्यापनशैली। जैसे,—प्रमुक स्कूल की देनी पडे । कोई कार्य जिसमें बाजी वदी गई हो । पढाई बहुत अच्छी है। ४ वह धन जो पढाने के बदले में जूमा । द्यूत । २ प्रतिज्ञा । शतं । मुमाहिदा । कौल दिया जाय । करार । सधि । उ०-मेरा स्त्रीत्व पया इतने का भी पढाकू-वि० [ स० पठ हिं० पद+पाक (प्रत्य०) ] वहुत पढने- अधिकारी नहीं कि अपने को स्वामी समझनेवाला पुरुष वाला। जो पढते न थके। उ०—उनके विद्यालय के साथियो उसके लिये प्राणो का पण लगा सके। -ध्र व०, पृ० ने उन्हें पढाकू की उपाधि दे रखी थी।-परस्तू०, पृ० ३ । २५ । ३ वह वस्तु जिसके देने का करार या शर्त हो । जैसे, पढ़ाना-क्रि० स० [हिं० पढ़ना का प्रे०रूप] शिक्षा देना। पुस्तक किराया, भाटा, पारिश्रमिक प्रादि । ४ मोल । कीमत । की शिक्षा देना । अध्यापन करना। मूल्य । ५ फीस । शुल्क । ६ घन । सपत्ति । जायदाद । 1