पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/६८

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पठान २७७७ पठौनी - नीति अनीति का वे बहुत कम विचार करते हैं । पठान प्राय एक को 'पठानी लोध' और दूसरे को केवले 'लोध' कहते है। लबे चौडे, डील डोलवाले, गोरे और क्रूराकृति होते हैं। औषध के काम मे 'पठानी लोध' ही अधिक प्राता है। दोनो जातिबधन इनमे विशेष दृढ है। एक संप्रदाय के पठान का लोधो को वैद्यक मे कसैला, शीतल, वातकफनाशक, नेत्रहित- दूसरे मे व्याह नहीं हो सकता। स्त्रियो को सतीत्वरक्षा का कारी, रुधिर और विष के विकारो का नाशक कहा है। लोध इन्हें बहुत ज्यादा ख्याल रहता है। इनके पापस के अधिकाश का फूल कसैला, मधुर, शीतल, कड वा, ग्राहक और कफ- झगडे स्त्रियो ही के लिये होते हैं। इनके उत्तराधिकार आदि पित्तनाशक माना गया हैं। के झगडे कुरान के अनुसार नही, वरन् रूढियो के अनुसार पर्या०-पट्टिकालोध्र । क्रमुक । स्थूलवल्कल। जीर्णपत्र । फैसल होते हैं, जो भिन्न भिन्न सप्रदायो मे भिन्न भिन्न हैं । बृहत्पत्र । पट्टी। लाक्षाप्रसादन। पट्टिकाख्य। पट्टिलोध्र । पठानो का प्राचीन इतिहास अनिश्चयात्मक है। पर इसमे कोई पट्टिका । पहिलोधक। वल्कलोध्र । बृहद्दल । जीर्णबुघ्न । सदेह नहीं कि अधिकाश उन हिंदुओ के वशज हैं जो गाधार, बृहद्वल्क। शीर्णपत्र । अक्षिभेपज। शावर । श्वेतलोन। काबोज, वाह्नीक आदि में रहते थे । फारस के मुसलमान गालव । वहुलत्वच् । लाक्षाप्रसाद । वल्क । होने के बाद इन स्थानो के निवासी क्रमश मुसलमान हुए। पठार'-सञ्ज्ञा पु० [देश॰] एक पहाडी जाति । इनमे से अधिकाश राजपूत क्षत्रिय थे। परमार आदि बहुत पठार-सञ्ज्ञा पुं॰ [स० प्रस्तार] ऊंचा और लवा चौडा मैदान जिसके से राजपूत वश अपनी कई शाखाओ को सिंघपार बसनेवाले नीचे का भाग ढालवाँ होता है। उ०-तीसरा भाग दक्षिण पठानो मे बतलाते हैं । पूर्वज कहाँ से आए और कौन थे, इस का पठार कहलाता है। यहां पुराने समय से ही विभिन्न विषय मे कोई कल्पना अधिक साधार नहीं है । इनकी भाषा शासक राज्य करते थे। पू० म० भा०, पृ०६। 'पश्तो' आर्य प्राकृत ही से निकली है । पीछे तुर्क और यहूदी पठावना-सञ्ज्ञा पु० [हि० पठावा] वह जो किसी के भेजने से कही जातियाँ भी अफगानिस्तान मे आकर बस गई और पुराने जाय । वह मनुष्य जो किसी का भेजा हुआ कही गया या पठानो से इस प्रकार हिल मिल गई कि अब किसी पठान का आया हो । दूत । सदेशवाहक । वश निश्चय करना प्राय असभव हो गया है। पठान शब्द की व्युत्पत्ति भी अनिश्चयात्मक है। इस विषय में अधिक पठावनि, पठावनी@-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० पठाना ] १ किसी को कही भेजने का भाव । किसी को कही कोई वस्तु या सदेश ग्राह्य कल्पना यह है कि पहले पहल अफगानिस्तान के 'पुख्ताना' स्थान मे बसने के कारण इस जाति को 'पुस्तून' पहुंचाने के लिये भेजना। २ किसी के भेजने से कही जाने का भाव । किसी के भेजने से कही कुछ लेकर जाना। ३ और इसकी भाषा को 'पुख्तू' कहते थे। फिर क्रमश जाति को पठान और भाषा को पश्तो कहने लगे। भेजने या पहुंचाने की मजदूरी। उ० तेई पायें पाइक चढाइ नाव घोए बिनु वेहो न पठावनी के बही न पठान'-सज्ञा पु० [२] जहाज या नाव का पेंदा । ( लश० ) । हँसाइ कै ।-तुलसी (शब्द०)। पठाना-क्रि० स० [ स० प्रस्थान, प्रा० पट्टान ] भेजना । पठावर-नचा पु० [देश] एक प्रकार की घास । पठानिन-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं० पठान +इन (प्रत्य॰)] . 'पठानी'। पठि-सा स्त्री० [स०] पढने की क्रिया। पठन । पढना। अध्य- पठानी'-सा स्री० [हिं० पठान ] १. पठान जाति की स्त्री यन [को०] । पठान स्त्री । २. पठान होने का भाव । ३ पठान जाति की पठित-वि० [स०] १ पढा हुआ ( ग्रथ )। जिसे पढ चुके हो। चरित्रगत विशेषता । क्रूरता, शूरता, रक्तपातप्रियता आदि अघीत । २ जिसने पढा हो । पढा लिखा। शिक्षित । पठानो के गुण । पठानपन । विशेष—इस अर्थ में इस शब्द का व्यवहार कुछ लोग करते हैं । पठानी-वि० [हिं० पठान ] १ पठानो का । जैसे, पठानी गज्य । जैसे, पठित समाज । परतु वास्तव मे यह ठीक नहीं है। २. जिसका पठान या पठानो से सवध हो । पठानो से सबध पठियरी-सज्ञा स्त्री० [हिं० पाट] वह बल्ली या पटिया जो कुएं के रखनेवाला। मुह पर बीचोवीच या किसी एक अोर इसलिये रख दी पठानीलोध-सञ्ज्ञा पु० [ स० पट्टिकालोध्र ] एक जगली वृक्ष जिसकी जाती है कि पानी निकालनेवाला उसी पर पैर रखकर लकडी और फूल प्रौपष के और पत्तियां और छाल रग बनाने पानी निकाले। इसपर खडे होकर पानी निकालने से घड़े के काम मे आती हैं। के कुएं की दीवार से टकराने का भय नही रहता। विशेष—यह उगाया या रोपा नही जाता, केवल जगली रूप मे पठिया-ज्ञा स्त्री० [हिं० पट्ठा +इया ( स्त्रीवोवक प्रत्य॰)] पाया जाता है। इसकी छाल को उबालने से एक प्रकार का यौवनप्राप्त स्त्री। युवती और हृष्टपुष्ट थी। जवान और पीला रग निकलता है जो कपडा रंगने के काम मे लाया तगडी स्ली। युवती मादा। जाता है। विजनौर, कुमाऊँ और गढवाल के जगलो में पठोर-सञ्चा स्त्री० [हिं० पट्टा+ ओर (प्रत्य०)] १ जवान पर इसके वृक्ष बहुतायत से पाए जाते हैं। चमडे पर रग विना ब्याई । २ जवान पर बिना व्याई मुर्गी । पक्का करने और प्रवीर बनाने में भी इसकी छाल का पठौनी-सच्चा स्त्री० [हिं० पठाना+श्रीनी (प्रत्य॰)] १ किसी को उपयोग किया जाता है । लोध के दो भेद होते हैं। कुछ देकर कही भेजने की क्रिया या भाव। कोई वस्तु या