पट्टी १७७५ पट्टत निमित्त मावश्यक धन एकत्र करने के लिये असामियो पर जाने पर वह सारी जायदाद से वसूल की जा सकती है। लगाता है । नेग । अववाब । प्राय प्रत्येक थोक मे एक एक 'लवरदार' होता है। जिस ट्टी-सज्ञा स्त्री॰ [ स० पट ] घोडे की वह दौड जिसनें वह बहुत दूर पट्टीदारी की सारी जमीन हिस्सेदारो मे बँट गई हो उसे तक सीधा दौडता चला जाय। लवी और सीधी सरपट । मुकम्मल या पूर्ण पट्टीदारी और जिसमे कुछ जमीन तो उनमें जैसे-घोडे को पट्टी दो। बाँट दी गई हो पर कुछ सरकारी कर और गाँव की व्यवस्था का खर्च देने के लिये साझे मे ही अलग कर ली गई हो उसे गट्टी-सज्ञा स्रो॰ [ म०] १ पठानी लोध । २ एक शिरोभूषण । एक गहना जो पगडी मे लगाया जाता है। ३ तलसारक । नामुकम्मल या अपूर्ण पट्टीदारी कहते हैं । नामुकम्मल पट्टीदारी तोबडा। ४ घोडे की तग। १५ एक प्राभूषण । उ०- में जब कभी अलग की हुई जमीन का मुनाफा सरकारी कर बाहो में बहु बहुटे, जोशन बाजूवद, पट्टी बाँध सुषम, गहने देने के लिये पूरा नही पडता तब पट्टीदारो पर अस्थायी ले गवारियो के धन ।-ग्राम्या, पृ०४० । कर लगाकर वह पूरा किया जाता है । पट्टीदार-सज्ञा पु० [हिं० पट्टी + फा० दार ] १ वह व्यक्ति जिसका पट्टीवार'-क्रि० वि० [हिं० पट्टी + फा० वार ] प्रत्येक पट्टी का किसी सपत्ति मे हिस्सा हो। वह जो किसी सपत्ति अलग अलग । पट्टी के भेद के अनुसार या साथ । इस के प्रश का स्वामी हो। हिस्सेदार । २ पट्टीदारी प्रकार जिसमें हर पट्टी का हिसाब अलग अलग आ जाय । के मालिको मे से एक । सयुक्त सपत्ति के प्रशविशेष जैसे,—मुझे एक पट्टीवार जमाबदी तैयार कराना है । का स्वामी। ३ वह व्यक्ति जिसे किसी सपत्ति में हिस्सा पट्टीवार-वि० (बही) जिसमे प्रत्येक पट्टी का हाल या हिसाब बँटाने का अधिकार हो। हिस्सा बंटाने के लिये झगडा करने अलग अलग हो । ( बही या लेख ) जो पट्टी के भेद को का अधिकार रखनेवाला। ४ वह व्यक्ति जो किसी विषय में ध्यान में रखकर तैयार किया गया हो । जैसे,—(क) पट्टीवार दूसरे के बराबर अधिकार रखता हो। वह व्यक्ति जिसकी खतौनी या जमाबंदी। (ख) पट्टीवार वासिल बाकी। राय की उपेक्षा न की जा सकती हो । बराबर का अधिकारी। पट्टीश, पट्टीस-सज्ञा पुं॰ [ स०] दे० 'पट्टिश' [को०] । समान अधिकारयुक्त । जैसे,—क्या आप कोई मेरे पट्टीदार पट्ट-वज्ञा पुं० [हिं० पट्टी ] १ एक ऊनी वस्त्र जो पट्टी के रूप मे हैं कि जो मैं करूं वह आप भी करें। बुना जाता है। काश्मीर, अल्मोडा आदि पहाडी प्रदेशो मे यह पट्टीदारी-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० पट्टीदार ] १ पट्टी होने का भाव । बनता है। यह खूब गरम होता है पर कन इसका कडा और वहुत से हिस्से होना। किसी वस्तु का अनेक की सपत्ति मोटा होता है। उ०--डाकुओ ने सत्त और पट्ट (कनी होना। जैसे,—इस गांव मे तो खासी पट्टीदारी है। २ चादर ) देखकर उसे छोड दिया । --किन्नर०, पृ० १०५ । पट्टीदार होने का भाव । वरावर अधिकार रखने का भाव । २ एक प्रकार का चारखाना जिसमे धारियां होती हैं। हिस्सेदारी। पट २-सञ्चा में० [देश॰] सुवा । तोता। शुक । मुहा०- पट्टीदारी अटकना= ऐसा झगडा उपस्थित होना जिसका पट्टेदार-वि० [हिं० पट्टो+दार] संवारे सजाए हुए (वाल) । पट्टी से कारण पट्टी हो । पट्टीदारी विषयक या पट्टीदारी के कारण युक्त । पट्टी काट कर सजाए हुए । उ०—पट्टेदार वालो पर तेल कोई झगडा खडा होना। पट्टीदारी के कारण विरोध होना। से भरी पुरानी काली टोपी, कुटिलता से भरी गोल गोल जैसे,-मेरे अापके कोई पट्टीदारी थोडे ही अटकी है। आँखें किसी विकट भविष्य की सूचना दे रही थी।-तितली पट्टीदारी करना = (१) किसी के बरावर अधिकार जताना । पृ०११८। पट्टीदार होने के कारण किसी के काम मे रुकावट करना। पट्टे पछाड़-सशा पु० [हिं० पट + पछाड़ना ] कुश्ती का एक पेंच । पट्टीदारी के बल पर किसी का विरोध करना। पट्टीदारी के विशेष—यह पेंच उस समय चित्त करने के लिये काम मे लाया हक पर अपना । जैसे,-श्राप तो बात बात मे पट्टीदारी जाता है जिस समय जोड कुहनियाँ टेककर पट पहा हो करते हैं। (२) वरावरी करना। जो कोई एक करे उसे पाप और इस कारण उसे चित्त करने में कठिनाई पडती हो। भी करना। इसमे उसके एक हाथ पर जोर से थाप मारी जाती ३ वह जमींदारी जो एक ही मूल पुरुष के उत्तराधिकारियो है और साथ ही उसकी जांघ को इस जोर से खींचा जाता है या उनके नियत किए हुए व्यक्तियो की सयुक्त सपत्ति हो। कि वह उलटकर चित हो जाता है। यदि थाप दाहिने वह जमीदारी जिसके बहुत से मालिक होने पर भी जो हाथ पर मारी जाय तो वाई जाँघ और यदि बाएँ हाथ पर अविभक्त सपत्ति समझी जाती हो । भाई चारा । मारी जाय तो दाहिनी जांघ खीचनी पडेगी । विशेष-पट्टीदारी जमीदारी मे अनेक विभाग और उपविभाग पट्टे बैठक-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० पट + बैठक ] कुश्ती का एक पेंच जिसमे होते हैं। प्रधान विभाग को 'थोक' और उसके प्रतर्गत जोर का एक हाथ अपनी जांघो मे दवाकर और अपना उपविभागो को 'पट्टी' कहते हैं। प्रत्येक पट्टी का मालिक अपने एक हाथ उसकी जाँघो में डालकर अपनी छाती का वल हिस्से की जमीन की स्वतत्र व्यवस्था करता है और सरकारी देते हुए उसे चित फेंक दिया जाता है। कर देता है। पर किसी एक पट्टी मे मालगुजारी बाकी रह प?त'-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० पटैत ] १ पटत । २ वेवकूफ ।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/६६
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