पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/६४

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पट २७७३ पट्टार ४ रेशम । १५ लाल रेशमी पगडी। १६ पाट। पटसन । १७ उसे देने की जो प्रतिज्ञा करता है उसका भी इसमे निर्देश लडाई का वह पहनावा या कवच जिससे केवल धड ढका रहे कर दिया जाता है। पट्टा साधारणत दो प्रकार का होता और दोनो वाहे खुली रहे (कौटि०)। १८ उत्तम और है-(१) मियादी या मुद्दती और (२) इस्तमरारी । मियादी बारीक रगीन वस्त्र (को॰) । पट्टे के द्वारा मालिक एक विशेष अवधि तक के लिये असामी को अपनी चीज से लाभ उठाने का अधिकार देता है और पट-वि० [ स०] मुख्य । प्रधान । उस अवधि के बीत जाने पर उसे उसको (असामी को ) पट्ट-वि० [ देश० ] दे॰ 'पट' २ । वेदखल कर देने का अधिकार होता है। इस्तमरारी, दवामी, पट्ट-[अनु॰] दे० 'पट' १। या सर्वकालिक पट्टे से वह असामी को सदा के लिये अपनी पट्टक-संज्ञा पुं॰ [] १ लिखने की पट्टी या पटिया। तस्ती। २ वस्तु के उपभोग का अधिकार देता है। असामी की इच्छा ताम्रपट पर खुदी हुई राजाज्ञा या अन्य विषय । ४ दस्तावेज । होने पर वह इस अधिकार को दूसरा के हाथ कीमत लेकर इकरारनामा। ५ वह रेशमी वस्त्र जिसकी पगडी बनाई बेच भी सकता है। जमीदारी का अधिकार जिस पट्टे के जाय । ६ घाव पर वाँधने की पट्टी । ७ पटका । कमरवद । द्वारा एक निदिष्ट काल तक के लिये दूसरे को दिया जाता पट्टकीट--सञ्ज्ञा पुं० [सं०] रेशम का कीडा (को०] । हैं उसे ठेकेदारी या मुस्ताजिरी पट्टा कहते हैं । असामी जिस पट्टज-सञ्चा पु० [सं०] टसर का कपडा । रेशमी वस्त्र । पट्टे के द्वारा असल मालिक से प्राप्त अधिकार या उसका पट्टण-सज्ञा पुं० [म० पत्तन] दे० 'पट्टन'। उ०--काया माहे पट्टण प्रशविशेष दूसरे को देता है उसे शिकमी पट्टा कहते हैं। पट्टे गाँव, काया माहे उत्तम ठाव । -दादू० ६४५ । की शर्तों का स्वीकृतिसूचक जो कागज असामी की ओर से लिखकर मालिक या जमीदार को दिया जाता है उसे पट्टदेवी -सज्ञा पुं॰ [ स०] राजा की प्रधान रानी । पटरानी। कबूलियत कहते हैं। पट्टे पर मालिक के और कबूलियत पर पट्टदोल-सञ्ज्ञा स्त्री० [स० ] कपडे का बना हुआ झूल या पलना। असामी के हस्ताक्षर या सही अवश्य होनी चाहिए। पट्टन-संज्ञा पु० [ स०] १ नगर । २ बडा नगर । क्रि० प्र०-लिखना। पट्टनी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स०] नगरी। पुरी। (को॰) । २ कोई अधिकारपत्र । सनद । ३ चमडे या बानात आदि की पट्टमहिषी-सज्ञा स्त्री॰ [ म० ] पट रानी। प्रधान रानी। बद्धी जो कुत्तो, विल्लियो के गले में पहनाई जाती है। पट्टरंग-सज्ञा पु० [ स० पट्टरङ्ग ] पटग । वक्मम । मुहा०—पट्टा तोड़ना या तोड़ाना = कुत्ते या बिल्ली का अपने पट्टरंजक-सज्ञा पु० [सं० पट्टरजक ] दे० 'पट्टरग' । पालनेवाले के यहां से भागकर अन्यत्र चला जाना। पट्ठरंजन-सज्ञा पुं० [स० पट्टरञ्जन ] दे० 'पट्टरग' । ४ एक गहना जो चूडियो के बीच में पहना जाता है। ५ पट्टरंजनक-मज्ञा पु० [ स० पट्टरञ्जनक ] दे० 'पट्टरग' । पीढ़ा। ६ कामदार जूतियो पर का वह कपडा जिसपर पट्टराज-वज्ञा पु० [सं० पट्ट ] महाराष्ट्र के उन ब्राह्मणो की उपाधि काम बना होता है । ७ घोडे के मुंह पर का वह लबा सफेद जो पुजारी का काम करते हैं । निशान जो नथुनो से लेकर मत्थे तक होता है। ८ घोडो पट्टराज्ञी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] पटरानी। के मस्तक पर पहनाने का एक गहना। ६ पुरुषो के सिर के बाल जो पीछे की ओर गिरे और वरावर कटे होते हैं। पट्टला-सज्ञा स्त्री॰ [म०] जनपद । जिला [को॰] । १० चपरास । ११ वह वृत्ताकार पट्टी जिसमे चपरास टंकी पट्टवस्त्र-वि० [स०] रगीन वस्त्र या रेशमी वस्त्र पहननेवाला [को०] । रहती है। १३ कन्यापक्ष के नाई, घोबी, कहार आदि का पट्टवासा-वि० [सं० पद्दवासस्] दे॰ 'पट्टवस्त्र' । वह नेग जो विवाह मे वरपक्ष से उन्हे दिलवाया जाता है। पट्टशाक-मज्ञा पु० [म.] पटुवा । क्रि० प्र०-चुकाना ।-चुकवाना । पट्टाशुक-सज्ञा पु० [सं०] १ एक प्रकार का प्राचीन पहनावा । २ विशेष-देहात के हिंदुनो में यह रीति है कि नाई, धोबी, कहार, रेशमी कपडा (को०)। भगी आदि की मजदूरी मे से उतना अश नही देते जितना पट्टा-मज्ञा पुं० [ म० पह, पट्टक ] १ किसी स्थावर सपत्ति विशेपत पड़ते से अविवाहिता कन्या के हिस्से पडता है। कन्या का भूमि के उपयोग का अधिकारपत्र जो स्वामी की ओर से विवाह हो जाने पर यह सारी रकम इकट्ठी वर के पिता असामी, किरायेदार या ठेकेदार को दिया जाय । से उन्हें दिलवाई जाती है। विशेष-मालिक अपनी जायदाद जिस काम के लिये और जिन १५ महाराष्ट्र देश में काम मे लाई जानेवाली एक प्रकार की शों पर देता है और जिनके विरुद्ध आचरण करने से उसे तलवार । अपनी वस्तु वापस ले लेने का अधिकार होता है वे इसमें पट्टाचार्य-सञ्ज्ञा पु० [स०] दक्षिण देश मे वसनेवाले प्राचीन पडितो लिख दी जाती हैं। साथ ही उसकी सपत्ति से लाभ उठाने की उपाधि । के वदले असामी से वह वार्षिक या मासिक धन या लाभाश पट्टार-सज्ञा पुं० [सं०] एक प्राचीन देश ।