पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/६०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पैटसाली २०६६ पटाका रस्सियाँ और जो इन दोनो कामों के अयोग्य समझे जाते हैं जाते हैं। उ०—पटा पवडिया ना लहै, पटा लह कोई सूर ।- उनसे कागज बनाया जाता है। रेशो की उत्तमता, अनुत्त दरिया०, पृ०१५। मता के विचार से भी पटसन के कई भेद हैं। जैसे, उत्तरिया, पटाg२-सज्ञा पु० [ स० पट ] पीढ़ा । पटरा । उ०-चीका चौकी देसवाल, देसी, दयौरा या डोरा, नारायनगजी, सिराजगजी पीढी पटा झारी पनिगह, पलइठि तेयाए प्रासन ।-वर्ण- आदि । इनमे उत्तरिया और देसवाल सर्वोत्तम हैं। पटसन के रत्नाकर, पृ० १२ । रेशे अन्य वृक्षो या पौधो के रेशो से कमजोर होते हैं। रग मुहा०-पटाफेर = विवाह की एक रस्म जिसमे वर वधू के इसके रेशों पर चाहे जितना गहरा या हलका चढाया जा प्रासन परस्पर अदल बदल दिए जाते हैं। पटा यांधना:- सकता है। चमक, चिकनाई आदि में पटसन रेशम का पटरानी बनाना । उ०--चौदह सहस तिया में तोको पटा मुकाबला करता है, जिस कारखाने मे पटसन के सूत और बँधा आज ।—सूर (शब्द०)। कपडे वनाए जाते हैं उनको जूट मिल और जिस यत्र में दाव २ ( पट की तरह समतल होने के कारण ) गडम्थल । जैसे, पहुंचाकर रेशो को मुलायम और चमकीला बनाया जाता है कनपटा, कनपटी। उसे 'जूट प्रेस' कहते हैं। यौ०-पटामर । २ पटसन के रेशे । पाट । जूट । पटा-सज्ञा पु० [ स० पट्ट] १ अधिकारपत्र । सनद । पट्टा । विशेष-( क ) पटसन से रस्से, रसिस्याँ टाट और टाट ही उ०-(क) विधि के कर को जो पटो लिखि पायो।- की तरह का एक मोटा कपडा तो बहुत दिनो से लोग बनाते तुलसी (शब्द०)। ( ख ) सतगुरु साह साध सौदागर रहे हैं, पर उसका बारीक रेशम तुल्य सूत और उनसे बहु भक्ति पटो लिखवइयो हो।-घरम०, पृ० ११ । २. पगडी मूल्य वस्त्र तैयार करने की ओर उनका ध्यान नहीं गया था। या कलंगी की तरह का एक भूषण जो पहले राजानो द्वारा अब उसका खूब महीन सूत भी वनने लग गया है । ( ख ) किसी विशिष्ट कार्य में सफलता प्राप्त करने या श्रेष्ठ वीरता- कुछ लोगों का यह अनुमान है कि नरछा नामक उत्तम जाति प्रदर्शन पर सामतो को दिया जाता था। उ०-सिर पटा के पटसन के बीज भारत मे चीन से लाए गए हैं। बगाल छाप लोहान होइ। लग्गे सु सरह सय पाइ लोइ ।--पृ० और आसाम के जिन जिन भागो में नरछे की खेती सफलता- रा०,४।१५। पूर्वक की जा सकती है वहां की जलवायु मे चीन की जल पटा-सज्ञा पु० [हिं० पटना ] लेन देन । प्रय विक्रय । सौदा । वायु से बहुत कुछ समानता है। उ०-मन के हटा मे पुनि प्रेम को पटा भयो।-पद्माकर पटसाली- सज्ञा पुं० [सं० पदृशाली ] धारवाड प्रात को जुलाहो की (शब्द०)। एक जाति जो रेशमी वस्त्र बुनती है । पटा"-सज्ञा सी० [हिं०] १ चौडी लकीर । धारी। २ लगाम की पटह सिका-सज्ञा स्त्री॰ [ मा ] सपूर्ण जाति की एक रागिनी जिसमें मुहरी । ३ चटाई । ४. 'पट्टा' । सब शुद्ध स्वर लगते हैं । यह रागिनी १७ दड से २० दह तक पटाई-सशा नी. [हिं० पटाना ] पटाने की क्रिया या भाव । के बीच मे गाई जाती है। सिंचाई । प्राबपाशी । उ०-दूघे पटाइअ सींचीन नीत, सहज पटह-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स०] १ दु दुभी। नगाडा। डका । प्राडवर । तजे करइला तीत ।-विद्यापति, पृ० २१३ । २ सिंचाई २ वडा ढोल । ३ समारभ । किसी कार्य को धारभ करना की मजदूरी। (को०) । ४ हिंसन । नुकसान पहुंचाना (को०) । पटाई २-सञ्ज्ञा खो॰ [हिं० पाटना] १ पाटने की क्रिया या भाव । २ पाटने की मजदूरी। पटहघोषक-सञ्ज्ञा पुं० [ स०] ढोल पीटकर घोपणा करनेवाला पटाक'-[अनु० ] किसी छोटी चीज के गिरने का शब्द । जैसे,-- वह पटाक से गिरा। पटभ्रमण-स' पुं० [ म०] ( लोगो को एकत्र करने के लिये ) घूम घूमकर डुग्गी या ढोल पीटना [को०] । विशेष-चटाक, घडाम भादि अनुकरण शब्दो के समान इसका व्यवहार भी सदा 'से' विभक्ति के साथ क्रियाविशेषणवत् पटहबेला-सज्ञा पुं० [०] डुग्गी पीटे जाने का समय । होता है । सशा की भांति प्रयुक्त न होने के कारण इसका कोई पटहार, पटहारा'-वि० [पाट + हि० हार (प्रत्य॰)] रेशम के डोरे लिंग नही माना जा सकता। वनानेवाला । रेशम के डोरो से गहना गूथनेवाला । पटाकर-सञ्ज्ञा पुं० [सं० ] एक पक्षी [को॰] । पटहार, पटहारा२- सक्षा पु० [स्त्री० पटहारिन या पटेरिन ] एक पटाका'-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० पट (श्रनु०) ] १ पट या पटाक शब्द । जाति जो रेशम या सूत के होरे से गहने गूंथती है । पटवा । २ पट या पटाक शब्द करके छूटनेवाली एक प्रकार को पटहारिन-सजा सी० [हिं० पटहार ] १ पटहार की सी। २ आतशबाजी। पटहार जाति की स्त्री। क्रि० प्र०-छोटना। पटा'-शा पु० [सं० पट ] प्राय दो हाथ लवी किर्च के आकार ३ पटाके की ध्वनि । कोडे या पटाके की धावाज । ४ तमाचा । की लोहे की फट्टी जिससे तलवार की काट और वचाव सीखे थप्पड । चपत । व्यक्ति।