पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/५९

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पटसन पटलप्रांत २७६८ पटलप्रांत-मज्ञा पु० [सं० पटलप्रान्त] छप्पर का सिरा या किनारा । उसके लगान का हिसाब किताब रखनेवाला एक छोटा सर- कारी कर्मचारी। पटला-सज्ञा स्त्री॰ [ म०] भीमा के आकार की नौका । ६४ हाथ लबी, ३२ हाथ चौडी और ३२ हाथ ऊँची नाव । (युक्ति पटवारी-मज्ञा स्त्री० [म० पट+हि० वारी प्रत्य०)। कपड़े पहनाने- वाली दासी। उ०-पानदानवारी पेती पीकदानवारीचौर कल्पतरु )। पटली-सज्ञा स्त्री॰ [ स० पटल ] १ छप्पर । छान । छत । २ वृक्ष वारी पखावारी पटवारी चली घाय के ।- रघुराज (शब्द०)। (को०) । ३. हठल । वृ त (को०) । ४ समूह । झुड । पक्ति । पटवास-सज्ञा पुं० [सं०] १ वस्त्रनिर्मित गृह । शिविर । तयू । २ उ०-नव पल्लव कुसुमित तरु नाना । चचरीक पटली कर वह वस्तु या चूर्ण जिससे वग्न सुगधित विया जाय । वे गाना ।—मानस, ३।३४ । सुगघियाँ या चूर्ण जिनसे कपडा वामित ( सुगधित ) करने पटली २-मन्ना स्त्री॰ [हिं०] ० 'पटरी' । उ०—उत्तम पटली प्रेम का वाम लिया जाय। उ०-जल थल फन फूल भूरि, प्रवर की रे डोरी सुरति लगाई।-सुदर ग्र०, भा॰ २, पृ० ५२६ । पटवास धूरि, स्वच्छ यच्छ कर्दम हिय देवन अभिलापे ।- केशव ( शब्द०) । ३ लहंगा । साया । मुहा०-पटली बैठना - मित्रता होना। मन मिलना । पटरी वैठना। उ०-पटली है वैठने की गोरे की सांवले से। पटपासक-सज्ञा पुं० [सं०] पटवास चूर्ण । वस्त्र वगानेवाली मुग- वेला, पृ०६०। धियो का चूर्ण । पटवा'-सज्ञा पुं॰ [ स० पाट+वाह (प्रत्य॰) ] [ श्री० पटइन ] रेशम पटवेश्म - सज्ञा पुं॰ [ स० पटवेग्मन ] खेमा । तयू [को॰] । या सूत मे गहने गूथनेवाला। पटहार । उ०-कतहुँ तमोलिय पटसन-मज्ञा पुं० [ स० पाट + हिं० म० शरण सन ] १. एक प्रसिद्ध पान भुलाने। कहूं पटवा पाटहिं अरुझाने ।-इद्रा०, ० १५ । पौधा जिसके रेशे से रस्सी, बोरे, टाट और वस्त्र बनाए जाते हैं। विशेप-यह गरम जलवायुवाले प्राय सभी देशो मे उत्पन्न पटवारे-मज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार का बैल जिसका रग नारगी का सा होता हैं। यह बैल मजबूत और तेज चलनेवाला होता है। इसके कुल ३६ भेद हैं जिनमे से ८ भारतवर्ष मे होता है। पाए जाते हैं। इन ८ मे से दो मुन्य हैं और प्राय इन्हीं पटवार-सञ्ज्ञा पु० [स० पाट ] पटसन की जाति का एक प्रकार का की खेती की जाती है । इसके कई भेद अब भी वन्य अवस्था पौधा । लाल अवारी। में मिलते हैं । दो मुख्य भेदो में से एका को 'नरछा' और दूसरे को 'वनपाट' कहते हैं । 'नरया' विशेषत वगाल और मामाम विशेप-यह पौधा बगाल में अधिकता से बोया जाता है। में वोया जाता है। वनपाट की अपेक्षा इसके रेशे अधिक उत्तम कही कही यह बागो में शोभा के लिये भी लगाया जाता है। इसमे एक प्रकार की कलियां लगती हैं जो खाई जाती होते हैं। नरछे का पौधा वनपाट के पौधे से ऊंचा होता है। है। इसके तनो से एक प्रकार का रेशा निकलता हैं और और पत्ती तथा कली लबी होती है वनपाट की पत्तियां गोल, इसके फल तथा वीज कहीं कहीं पोषघि रूप में काम में फूल नरछे से बडे और कली की चोंच भी नरछे से कुछ अधिक लवी होती है। पटमन की वोपाई भदई जिन्सों पटवाद्य-सज्ञा पुं॰ [ स०] झांझ के आकार का एक प्राचीन बाजा के साथ होती है और कटाई उस समय होती है जव उसमें जिससे ताल दिया जाता था। फूल लगते हैं। इस समय न काट लेने से रेशे वडे हो जाते हैं। वीज के लिये थोडे से पौधे खेत में एक किनारे छोड दिए पटवाना'-क्रि० स० [हिं० पाटना का प्रे० रूप] १ पाटने का जाते हैं, शेष काटकर और गट्ठो मे बांधकर नदी, तालाव काम दूसरे से कराना । २ पाच्छादित कराना । छत डलवाना जैसे, घर पट वाना । ३ गड्ढे भादि को भरकर आसपास की या गढ्ढे के जल मे गाड दिए जाते हैं। तीन चार दिन वाद उत्ते निकालकर डठल से छिलके को अलग कर लेते हैं। फिर जमीन के बरावर कराना । भरवा देना। पूरा करा देना। जैसे, गड्ढा पट वा देना । १४ सिंचवाना। पानी से तर छिलको को पत्थर के ऊपर पछाड़ते हैं और थोडी थोडी देर कराना। ५ ऋण आदि अदा करा देना । चुकवा देना। के बाद पानी में घोते हैं जिससे कडी छाल बटकर घुल पटाना। दाम दाम दिलवा देना । जैसे-उसने अपने मित्र जाती है और नीचे की मुलायम छाल निकल पाती है। से वह ऋण पटवा दिया। छिलके या रेशे अलग करने के लिये यत्र भी है, परतु भार- पटवाना-क्रि० स० [हिं० 'पटाना का प्रे० रूप] ( पीडा या तीय किसान उसका उपयोग नहीं करते । यत्र द्वारा अलग कप्ट) दूर कर देना। मिटाना। बंद करना । शात करना। किए हुए रेशो की अपेक्षा सडाकर अलग किए हुए रेशे अधिक मुलायम होते हैं। छुडाए और सुखाए जाने के अनतर रेशे पटवाप-सज्ञा पु० [सं०] खेमा । तबू [को०] । एक विशेष यत्र मे दवाए अथवा कुचले जाते है। जवतक पटवारगिरी-सा मी० [हिं० पटवारी+फा० गरी] १ पटवारी यह क्रिया होती रहती है, रेशों पर जल और तेल के छींटे का काम । जैसे,—इन्होंने २० साल तक पटवारगिरी की देते रहते हैं जिससे उनकी रुखाई और कठोरता दूर होकर, है। २ पटवारी का पद । जैसे,—उस गाँव की पटवारगिरी कोमलता, चिकनाई और चमक आ जाती है। आजकल इन्हीं को मिलनी चाहिए। पटसन के रेशो से तीन काम लिए जाते हैं-मुलायम, लचीले पटवारी'-सज्ञा पुं० [सं० पट्ट+कार, हिं० वार] गाँव की जमीन पौर रेशों से कपडे तथा टाट बनाए जाते हैं, कडे रेशो से रस्से, पाते हैं।