पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/५४०

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'प्रोपोज ३२४६ प्रौढ़ प्रोपोज-क्रि० स० [मं०] १ तजवीज करना । २. प्रस्ताव करना । प्रोषित-वि० [म०] १ जो विदेश मे गया हो। प्रवासी । जैसे, प्रोपोजल-पञ्ज्ञा पु० [अ० ] प्रस्ताव । प्रोषितपति प्रादि । २. दूरगत । दूर गया हुआ [को०] । प्रोप्राइटर-सञ्ज्ञा पुं० [अ०] मालिक । स्वामी । अध्यक्ष । प्रोषितनायक, प्रोषितपति-सझा पु० [स०] वह नायक जो विदेश में अपनो पत्नी के वियोग से विकल हो । विरही नायक । प्रोफेसर-त्री० पुं० [सं०] १ किसा विषय का पूर्ण ज्ञाता । भारी पंडित या विद्वान् । २. किसी विश्वविद्यालय या महाविद्यालय प्रोषितपतिका (नायिका)-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] पति के विदेश जाने से आदि का अध्यापक । वह जो किसी कालिज यादि में दुखित स्त्री। प्रवत्स्यत्प्रयसी। वह नायिका जो अपने पति के शिक्षक हो। परदेश में होने के कारण दुखी हो । विदेश गए हुए व्यक्ति की प्रोफेसरी-सशा स्त्री० [अ० प्रोफेसर + हिं० ई (प्रत्य॰)] प्राध्या- शोकातुर स्त्री या प्रेमिका । पन । पढ़ाने का कार्य । उ०-उन्नाव में उनकी खासी अच्छी विशेष-साहित्य मे इसके मुग्धा, मध्या, स्वकीया, परकीया जमीदारी है, मोर प्रोफेसरी से उन्हे जो कुछ मिलता है वह आदि अनेक भेद माने गए हैं। एक तरह से घाते में ही समझो ।--सन्यासी, पृ० ३७६ । प्रोषितप्रेयसी-सज्ञा स्त्री० [सं० दे० प्रोषितपतिका'। प्रोवेशन-सञ्ज्ञा पुं० [०] वह परीक्षा या जांच जो किसी व्यक्ति प्रोषितभतृका-सञ्ज्ञा खो० [सं०] दे० 'प्रोषितपतिका' । के कार्य के सवध मे निर्धारित की जाय । यह प्रोषितभार्य-संज्ञा पुं० [सं० प्रोपितभायं] वह नायक जो अपनी देखना कि यह व्यक्ति भमुक कार्य कर सकेगा या नहीं। भार्या के विदेश जाने के कारण दुःखी हो । काम करने की योग्यता क सबध में जांच । जैसे,--अभी तो प्रोषितमरण-तमा पु० [स०] प्रवास में मरण । विदेश मे मृत्यु वे तीन महीने के लिये प्रोवेशन पर रखे गए हैं। यदि ठीक [को॰] । तरह से काम करेंगे तो स्थायी रूप से उनकी नियुक्ति हो प्रोष्ठ-सचा पु० [सं०] १. एक प्रकार की मछली । सौरी । २. गौ । जायगी। गाय । ३ बैल । वृषभ (को०)। ४ महाभारत के अनुसार एक प्रोवेशनरी-वि० [40] १ प्रोवेशन के संबंध का । योग्यता की 'प्राचीन देश का नाम जो दक्षिण मे था। जांच से सबंध रखनेवाला। २ जो कुछ निर्धारित समय तक प्रोष्ठपद-सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ पूर्वभाद्रपद मौर उत्तरभाद्रपद नक्षत्र । इस शतं पर रखा जाय कि यदि संतोषजनक कार्य करेगा २. भाद्रपद मास | भादो का महीना। तो स्थायी रूप से रख लिया जाएगा। प्रोष्ठपदा-सज्ञा स्त्री० [सं०] पूर्वभाद्रपद और उत्तरभाद्रपद नक्षत्र । प्रोमिसरी नोट-सञ्ज्ञा पु० [म.] दे० 'प्रामीसरी नोट'।' प्रोष्ठपदी-सञ्चा क्षी० [स०] भाद्रपद मास की पूर्णिमा । प्रोमोशन-सञ्ज्ञा पुं० [अ०] १ किसी पदाधिकारी का अपने पद प्रोष्ठपाद-सचा पु० [सं०] पूर्वभाद्रपद और उत्तरभाद्रपद नक्षत्र । से ऊंचे पद पर नियुक्त किया जाना । तरक्की । २ विद्यार्थी प्रोष्ठी-सच्चा सी० [सं०] सौरी नाम की मछली। का किसी कक्षा में से आगे की कक्षा में भेजा जाना । दर्जा चढ़ना। प्रोष्ण-वि० [सं०] जो बहुत गरम हो । प्रत्यत उष्ण । प्रोसीडिंग-सञ्ज्ञा स्त्री० [म.] किसी सभा या समिति के अधिवेशन प्रोयना-क्रि० स० [हिं० पिरोना] वेधना । उ०-बैंग लसक्कर- मे सपन्न हुए कार्यों का लेखा या विवरण। कार्यविवरण। खान रा, प्रोया सेल प्रमाण ।-रा० रू०, पृ० ३४२ । जैसे,—गत अधिवेशन की प्रोसीडिंग पढी गई। प्रोलेतेरियट-सञ्ज्ञा पुं० [अ० प्रोलिटेरियट] सर्वहारा वर्ग । श्रमिक प्रोसीडिंग बुक-सञ्ज्ञा स्त्री० [अ० ] वह वही या किताब जिसमें वर्ग । मजदुर श्रेणी। किसी सभा या समिति के अधिवेशनो मे सपन्न हुए कार्यों का प्रोलेतेरियन-वि० [म प्रोलिटेरियन] सर्वहारा वर्ग से सवचित । विवरण लिखा जाता है। कायविवरण पुस्तक । जैसे, प्रोसी- सर्वहारा वर्ग का । उ०-ईसा द्वारा प्रचारित कम्यूनिज्म में डिंग बुक में यह बात लिखी जानी चाहिए। और माक्स द्वारा प्रचारित प्रोलेतेरियन क्राति के स्वरूपो में वहुत अतर था ।-जिप्सी, पृ० २१५॥ प्रोसेशन-सञ्चा पु० [अ०] धूमधाम की सवारी। जुलूस । शोभायात्रा। जैसे,—महासभा के प्रेसिडेंट का प्रोसेशन बडी धूमधाम से प्रोवाइसचासलर-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] उपकुलपति । वाइसचासलर या निकला। या कुलपति का सहायक अधिकारी। प्रोह'-सज्ञा पु० [सं०] १ हाथी का पैर । २ तर्क । ३ पर्व । प्रोल्लाषित-वि० [सं०] १ निरामय । नीरुज । २. दृढ़ाग । पुष्ट- प्रोहर-वि० १. बुद्धिमान् । चतुर । २ तार्किक । तर्क या विचार शरीर (को०] । करनेवाला (को०)। प्रोल्लासी-वि० [स० प्रोक्लासिन् ] देदीप्यमान । कांतियुक्त [को०] । प्रोहिता-सचा पु० [स० पुरोहित ] दे॰ 'पुरोहित' । उ०-गुरु नृप, प्रोल्लेखन-सज्ञा पुं० [सं०] खुरचना । कुरेदना [को०] । गुरु माता पिता, गुरु प्रोहित, गुरु छद। विहफे गुरु दीरघ प्रोष-सञ्चा पुं० ]स०] बहुत अधिक दुख या कष्ट । सताप । दाह । गुरू, सब के गुरु गोविंद ।-नद० ग्र०, पृ०७४ । पोषक-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] महाभारत के अनुसार एक देश का नाम । प्रौढ़'-वि० [सं० प्रौढ ] [ वि० स्त्री० प्रोढ़ा ] १ मच्छी तरह बढ़ा .