पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/५२८

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्रासूतिक प्रियंकार २. शीघ्रतापूर्वक । चटपट । उ०-वाकी हाट उधार करि लेहि कचौरी सेर । यह प्रासुक भोजन करहिं नित उठि साँझ सवेर ।-अर्घ०, पृ० ३१ । प्रासूतिक-वि० [सं०] प्रसूति से सबधित [को०] । प्रासेव-सज्ञा पुं० [सं०] वह रस्सी जो घोड़े के साज में समिलित हो । प्रास्करव-सज्ञा पुं० [सं० ] एक साम का नाम । प्रास्त-वि० [सं०] फेंका हुआ। प्रक्षिप्त । २. निर्वासित । बहिष्कृत [को०] । प्रास्तारिक-वि० [स०] १ जिसका व्यवहार प्रस्तार में हो। २. प्रस्तार सबषी। प्रास्ताविक- वि० [स०] [वि॰ स्त्री० प्रास्ताविकी ] १ भूमिका रूप में काम प्रानेवाला। सूचनात्मक। २ परिचयात्मक । जैसे, प्रास्ताविक वचन, प्रास्ताविक विलास । समयानुकूल । ३. सगत । समीचीन (को०] । प्रास्तुत्य-सज्ञा पुं० [सं०] विचार या बहस के प्रतर्गत होना। विचारणीय होना (को०] । प्रास्थानिक-वि० [सं०] [वि॰ स्त्री० प्रास्थानिकी ] वह पदार्थ जो प्रस्थान के समय मगलकारक माना जाता हो। जैसे, शख की ध्वनि, दही, मछली मादि । प्रास्थानिक- सच्चा पुं० यात्रा की तैयारी को । प्रास्थिक'-वि० [ स० ] [ वि० सी० प्रास्थिकी ] १ प्रस्थ संबधी। २. जिसमे एक प्रस्थ अन्नादि अंठ जाय । ३. एक प्रस्थ द्वारा बोने योग्य (को०) । ४. जो प्रस्थ के हिसाब से खरीदा गया हो। ५. पाचक। प्रास्थिकर-सज्ञा पुं० भूमि । जमीन । प्रास्पेक्टस-मज्ञा पुं० [अ०] १ बह छपा हुमा पत्र जिसमें प्रारंभ होनेवाले किसी बड़े कार्य का पूरा पूरा विवरण मौर उसकी कार्यप्रणाली प्रादि दी हो। विवरणपत्र । जैसे, जानवीमा कपनी का प्रास्पेक्टस, वक का प्रास्पेक्टस । २ यह पुस्तक या पुस्तिका जिसमें शिक्षा का पाठ्यक्रम या पूरा ब्यौरा हो। विवरण पत्रिका। प्रास्रवण-वि० [सं०] [वि॰ स्त्री० प्रास्रवणी] स्रोत सबधी । करने से सबद्ध [को०] । प्राह:-सज्ञा पु० [स] नृत्य की शिक्षा देना (को०)। प्राहारिक-सञ्चा पु० [सं०] पहरुमा । चौकीदार । पाहुण,पाहुणक-सज्ञा पुं॰ [ स०] अतिथि । मेहमान । पाहुना । उ०-जोवन जायइ प्राहुएउ, वेगइरउ घर पाय ।-ढोला०, दू०१३४। • प्राहुन्ना-सज्ञा पुं॰ [ स० प्राहुणक ] मेहमान । पाहुना। ४०- चित्रग राय रावर चवै प्राइन्ना भग्गा फिरे ।-५० रा०, ६६३६०। पाहण-भक्षा पुं० [-स०] दिन का पूर्व भाग। दोपहर के पूर्व का समय [को०] । पाहणेवन-वि॰ [ स०] दिन' के पूर्वभाग मे होनेवाला या उससे संबधित [को॰] । प्राहलाद-सज्ञा पुं॰ [सं०] प्रह्लाद अर्थात् विरोचन की सतान | प्रिटर-पक्षा पु० [पं०] १ वह जो किसी छापेखाने मे रहकर छापने का काम करता हो। मुद्रण करनेवाला । छापनेवाला। २ वह जो किसी छापेखाने में छपनेवाली चीजों की छपाई का जिम्मेदार हो । मुद्रक । प्रिंटिंग-तचा स्त्री॰ [प्र. ] छापने का काम । छपाई । मुद्रण। प्रिंटिंग इक-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [अं॰] वह स्याही जो प्रेस में सीमे के टाइप (अक्षर) से छापने के काम मे पाती है। टाइप के छापने की स्याही। यह कच्ची और पक्की दो प्रकार की तथा अनेक रगों की होती है। प्रिंटिंग प्रेस-सञ्ज्ञा स्त्री० [अ० ] सीसा प्रादि धातु के ढले हुए या लकडी के अक्षर या टाइप छापने की वह कल जो हाथ से चलाई जाती है। हैंड प्रेस । दे० 'प्रेस'। प्रिंटिग मशीन-तज्ञा स्त्री॰ [ 9 ] सीसे धातु के अक्षर या टाइप छापने की वह कल जो साधारण हाथ की कल की अपेक्षा बहुत अधिक काम करती है और जो हाथ तथा इंजिन दोनों से चलाई जा सकती है । दे० 'प्रेस । प्रिंस-सञ्ज्ञा पुं० [मं०] १ राजा। नरेश । २ युवराज । राज- कुमार । शाहजादा। ३ राजपरिवार का कोई व्यक्ति । ४ सरदार । सामंत प्रिंस आफ वेल्स-सज्ञा पुं० [ 10 ] इगलैड के राजा फे ज्येष्ठ पुत्र की पदवी । इगलैड का युवराज । प्रिंसिपल-सचा पुं० [.मं.] १ किसी बडे विद्यालय या कालिज प्रादि का प्रधान अधिकारी । प्रधानाचार्य । २ वह मूल घन जो किसी को उधार दिया गया हो और जिसके लिये व्याज मिलता हो। प्रिया-सज्ञा जी० [सं० प्रिया] दे० 'प्रिया' । उ०-प्रस जानि संसय तजहु गिरिजा सर्वदा संकर प्रिया ।—मानस, १९८ प्रिथिमीgt-सञ्ज्ञा स्त्री० [स० पृथ्वी] पृथ्वी । जमीन । उ०-जो सीस पेम पथ लावा । सो प्रिथिमी मह काहे क पावा।- जायसी (शब्द०)। प्रियंकर-सचा पुं० [सं० प्रियङ्कर] एक दानव का नाम । प्रियंकर-वि०१ दया दिखानेवाला । २ स्नेह करनेवाला। स्नेहवान । ३ अनुकूल [को०] । प्रियंकरी-सञ्चा क्षी० [सं० प्रियङ्करी] १ सफेद कटेरो। २. वही जीवती । ३. मसगध। प्रियंकार-वि० [सं० प्रियङ्कार] दे० 'प्रियंकार' [को०] ।