पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/५२०

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प्रादेश-सहा पं० [सं०] १. अंगूठे से प्रारग कर तर्जनी तक की प्रारद- ३२२६ प्राधिकृत प्रातृद-सज्ञा पुं० [स०] एक वैदिक ऋषि का नाम । प्रादुष्कृत-वि० [सं०] १ जिसका प्रादुष्करण हुआ हो। जो प्रकट प्रात्यतिक-सज्ञा पु० [सं० प्रात्यन्तिक] १. वह राज्य जो सीमाप्रात किया गया हो । २ प्रदर्शित । जो दिखलाया गया हो। में हो। ऐसा राज्य जो दो राज्यो की सीमा के मध्य में हो। प्रादुष्कृत्य-वि० [सं०] १ उत्पाद्य । २. प्रकट करने योग्य । जो २. सीमा की रक्षा के लिये नियुक्त पुरुष । दिखलाने के योग्य हो। प्रात्यक्ष-वि० [मं०] प्रत्यक्ष सबधी । प्रादुष्य-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] प्रादुर्भाव । प्रात्यग्रथि-सज्ञा पुं॰ [सं०] प्रतिग्रथ के गोत्र में उत्पन्न पुरुष । प्रात्ययिक'-सज्ञा पुं॰ [ स० ] मिताक्षरा के अनुसार तीन प्रकार के लबाई का एक मान । प्रतिभू में से दूसरा । वह जो किसी की पहचान करके उसका विशेष-यह अंगूठे की नोक से लेकर तर्जनी की नोक तक का प्रतिभू बने। होता था और नापने के काम आता था। प्रात्ययिकर--वि० विश्वासदायक । विश्वस्त [को०) । २ तर्जनी और अंगूठे के बीच का भाग । ३ प्रदेश । स्थान । प्रात्यहिक -वि॰ [ स०] दैनिक । प्रतिदिन का। प्रादेशन-मज्ञा पुं॰ [ स०] दान । भेंट (को०] । प्राथमकल्पिक-सझा पुं० [सं०] १. वह विद्यार्थी जिसने अभी प्रादेशिक'-वि० [स] [वि०स्त्री० प्रादेशिकी] १. प्रदेश सबधी । किसी वेदाध्ययन प्रारंभ ही किया हो । २ वह योगी जिसने अभी एक प्रदेश का। प्रातिक । २ प्रसगगत । प्रसगानुसार । योगाभ्यास शुरू किया हो [को०] । विषयानुसार । ३ सीमित स्थानगत (को॰) । प्राथमिक-वि० [स०] १ पहले का। जो पहले उत्पन्न हुआ हो । प्रादेशिक -सञ्ज्ञा पु० १ सामत । जमीनदार या सरदार आदि । २ प्रारभिक । मादिम । ३ जो पहली बार हुमा हो (को॰) । २ सूबेदार । प्राथम्य-तशा पुं० [सं०] प्रथम का भाव । प्रथमता । पहलापन । प्रादेशिनी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स०] तर्जनी । प्रादक्षिण्य-सञ्चा पुं० [स०] प्रदक्षिण संबंधी। प्रादेशी-वि० [सं० प्रादेशिन् ] प्रादेश मात्र लंबा । वित्ते भर का । प्रादानिक-वि० [सं०] जो दान करने के योग्य हो । जिसकी लबाई एक बित्ता हो [को०] । प्रादीपिक-सञ्ज्ञा पु० [स०] घर या खेत मादि में माग प्रादोष-वि० [सं०] [वि॰ स्त्री० प्रादोषी ] प्रदोष सबधी। प्रदोष लगानेवाला। का। प्रदोष से सबंध रखनेवाला। विशेप-कौटिल्य अर्थशास्त्र के अनुसार जो लोग इस पपराध प्रादोषिक-वि० [स०] [खी प्रादोपिकी ] प्रदोष का (को०] । । में पकडे जाते थे, उनको जीते जी जलाने का दंड दिया प्राधनिक-वि० [स०] लडाका । योद्धा। जाता था। प्राधनिक-सशा पु० युद्ध का उपकरण । लडाई का सामान । प्रादुराक्षि-मचा पुं० [सं०] गोत्र प्रवरकार एक ऋषि का नाम । प्राधा - सञ्चा स्त्री॰ [स०] कश्यप की एक स्त्री और दक्ष की एक प्रादुर्भाव -सञ्ज्ञा पु० [सं०] १ प्राविर्भाव । प्रकट होना। अस्तित्व कन्या का नाम। में माना । तिरोभाव का उलटा। २. विकास । ३ उत्पति । विशेष-पुराणो में इसे गधों और मप्सराओं की माता ४, देवतामो का पाविर्भाव होना (को०)। वतलाया गया है। प्रादुर्भूत-वि० [ म० ] १ प्राविभूत । प्रकटित । जिसका प्रादुर्भाव प्राधानिक-वि० [सं०] [वि० स्त्री० प्राधानिकी ] १ प्रधान । श्रेष्ठ । हुमा हो । २ विकसित । निकला हुआ । ३ उत्पन्न । २ प्रधान संबंधी । ३ मूल प्रकृति से संबद्ध । प्रादुर्भूतमनोभवा-सशा स्त्री० [ स० ] केशव के अनुसार मध्या के प्राधान्य-सज्ञा पुं० [सं०] १ प्रधानता। श्रेष्ठता। २ मुख्यता । चार भेदो में एक । ३ मूल प्रकृति । मूल कारण । निदान । प्राधिकरण-सञ्ज्ञा ० [स० प्र (उप०) +अधिकरण ] विशेष विशेष- इसके मन मे काम का पूरा प्रादुर्भाव होता है और काम- अधिकारप्राप्त व्यक्ति या व्यक्तियो का समूह । कला के समस्त चिह्न प्रकट होते हैं। जैसे,—पातु मैं देखि है गोपसुता इक होइ न ऐसि अहीर की जाई। देखति ही रहिए प्राधिकारी-सज्ञा पुं० [स० प्र (उप०)+अधिकारी ] सचाप्राप्त द्युति देह की देखते पौरन देखि सुहाई । एकहि बंक बिलोकनि व्यक्ति । विशेष अधिकारी। (म० अथारिटी)। . ऊपर वारी विलोक त्रिलोक निकाई। केशवदास कलानिधि प्राधिकृत - वि० [सं० प्र (उप०) + अधिकृत ] अधिकारपूर्ण । सो वरु बूझिहै काम कि मेरो क्न्हाई । साधिकार । उ०-राज्य विधान सभा द्वारा पारित किए प्रादुष्करण-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] १. किसी अप्रकट वस्तु को प्रकट करने जानेवाले विधेयक भौर अन्य बातें राज्य की भाषा मे ही हो का भाव । प्रदर्शन । उत्पादन । प्रकटीकरण। २. दृष्टि किंतु उनके साथ ही प्राधिकृत पौर प्रामाणिक अनुनाद भी गोचरकरण । दिखलाना। रहें।-शुक्ल भमि०प्र०, पृ०७३ ।