पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/५२

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पैछना' २७६१ पछिआनी उ०ौल जीवन पुनु पलटि न आयए केवल रहे पछतावे । पछाड़-सञ्चा पु० [हिं० पछाड़ना ] कुश्ती का एक पेंच । विद्यापति, पृ०, १९५॥ विशेष - जब शत्रु सामने रहता है तब एक हाथ उसकी जाँघो के नीचे से निकालकर पीछे की ओर से उसका लंगोट पछना'-सज्ञा पु० [हि० पाछना] १ वह अस्त्र आदि जिससे कोई चीज पाछी जाय । पाछने का औजार । २ वह उस्तरा जो पकडते हैं और दूसरा हाथ उसकी पीठ पर से घुमाकर उसकी सिंगी लगाने से पहले शरीर मे घाव करने के काम प्राता है। बगल मे अडाते हैं और इस प्रकार उसे उठाकर चित फेंक ३ शरीर मे से रक्त निकालने की क्रिया । फसद । देते हैं । इसमे अधिक बल की आवश्यकता होती है। पछनारे-क्रि० प्र० पाछा जाना । पाछने की क्रिया होना। पछाड़ना-क्रि० स० [हिं० पछाड] १ कुश्ती या लडाई मे पछमन-क्रि० वि० [हिं०] पीछे । अगमन या अगुमन का उलटा । पटकना । गिराना। २ वाद विवाद मे हराना। किसी क्रिया है. 'पीछे। या काम में मात करना। पराजित करना । उ०-भारतीय पछरना-क्रि० प्र० हिं०] पिछड जाना। पीछे पड़ना। २ मुसलमानो के बीच, विशेषत सूफियो की परपरा मे, ऐसी पश्चात्पद होना । वापस होना । लौटना । अनेक कहानियाँ चली, जिनमें किसी पीर ने किसी सिद्ध या योगी को करामात मे पछाड दिया । इतिहास, पृ०१५ । पछरा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं०] दे० 'पछाड' । उ०—'हरीचद' पिय बिनु सयो० क्रि०—डालना ।—देना । अति व्याकुल मुरि मुरि पछरा खात । -भारतेंदु ग्र०, भा० २, पृ०४००। पछाड़ना-क्रि० स० [स० प्रक्षालन, प्रा० पक्खालन, पच्छाउन ] पछलगा-मचा पु० [ हिं० पछ+लगना ] दे० 'पिछलगा'। उ०—हौं धोने के लिये कपड़े को जोर से पटकना। पडितन केर पछलगा। किछु कहि चला तवल देइ डगा। सयो कि० डालना ।--देना । जायसी (शब्द०)। पछाडी-राशा मी० [हिं० ] दे॰ 'पिछाडी' । पछलागू-प्रज्ञा पुं० [हिं० ] दे० पिछलागू'। उ०-अगुमा केर पछाना-पञ्चा स्त्री० [हिं०] 'पहचान' । उ०-जो आशिक का रोह पछलागू। —जायसी प्र० (गुप्त), पृ० १३६ । जिसकू अछेगा निशान । तो माशूक कू वाई चलेगा पछान :- पछवत--सज्ञा स्त्री॰ [हिं० पीछे+वत ] वह चीज जो फसिल के अत दविखनी०, पृ० १५२ । में बोई जाय। पछानना-क्रि० स० [हिं० ] २० 'पहचानना' । उ०-यों पछवाँ'-वि० [म० पश्चिम ] पश्चिम की। पश्चिम दिशा की। सपे त्यों विपत्ति पछाने, बेगम महिल लडावै ।-प्राण, पश्चिमी । पश्चिम दिशा सवधी। पृ० ६६ । पछवाँ–सचा स्त्री० [हिं० पाछा ] अंगिया का वह हिस्सा जो पीठ पछाया-पज्ञा पुं० [हिं० पाछा ] किसी वस्तु के पीछे का भाग । की तरफ मोढे के पीछे रहता है। पिछाडी । जैसे, अगिया का पछाया । पछवार-वि० दे० 'पछु । पछा-सशा स्त्री॰ [हिं० ] दे० 'पछाड' । पछाँ-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं०] दे॰ पहचान'। उ०-केतक दिवस कू' पछार'-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० पछारना ] पछारने की क्रिया या भाव । जूहुआ वो जवां । सो वई वाप हंगाम उसका पछाँ। पछारना'-क्रि० स० [ मं० प्रक्षालन, प्रा० पच्छाढन ] कपडे को दक्खिनी०, पृ०७८ । पानी से साफ करना । धोना । पछाँई-वि० [हिं० पछाँह ] पश्चिमी। पश्चिम का। पश्चिम मे पछारना-क्रि० स० [हिं० पछाड] ३० 'पछाहना'। उ०- पैदा होने या रहनेवाला। उ०-वह पछौँई गाय लेगा।- पुनि रिसान गहि चरन फिरायो । महि पछारि निज बल गोदान, पृ०३। देखरायो। —मानस, ६७३ । पहि-सञ्ज्ञा पु० [ म० पश्चात्, प्रा० पच्छा ] पश्चिम मे पडनेवाला पछालना-क्रि० स० [म० प्रक्षालन] पखारना । धोना। उ०- प्रदेश । पश्चिम की ओर का देश । जावक रचि क अंगुरियन मृदुल सुठारी हो। प्रभु कर चरन पछाँ हिया-वि० [हिं० पछाह+इया (प्रत्य०) ] पछाँह का। पछालत अति सुकुमारी हो। तुलसी ग्र०, पृ० ५। पश्चिम प्रदेश का। पछावर, पछावरीि-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [*०] एक प्रकार का पेय । ( मट्ठा, पछाँही-वि० [हिं०] दे० 'पछाई। कढी, कांजी या पना और दूध आदि ) जो रसेदार होता पछाड़-सञ्चा स्त्री० [हिं० पाछा] बहुत अधिक शोक प्रादि के कारण है। पछियावर । उ०—(क) जेइ अघाने जठर पर जल पिय खडे खडे बेसुध होकर गिर पडना । अचेत होकर गिरना । फेरत पानि । तुच्छ खुधा पाछे रही तब लई पछावरि वानि । मूर्थित होकर गिरना। पृ० रा०, ६३।१०३ । (ख) पुनि झारि सो ह्व विधि स्वाद मुहा०-पछाद खाना = खडे खडे अचानक बेसुध होकर गिर बने । विधि दोइ पछावरि सात वने । -केशव (शब्द०)। पहना। उ०-परति पछाड खाइ छिन ही छिन अति आतुर पछाहों-वि० [हिं० पछॉह ] पछाँह का। पश्चिम प्रदेश का। दीन । मानहु सूर काढि है लीनी वारि मध्य ते मीन । जैसे, पछाही पान, पछाही आदमी। -सूर (शब्द०)। पछियाना-क्रि० स० [हिं० पाछे + थाना ] १, पीछे हो लेना।