प्रारभरा प्राचीनत्व अनुसार मन्वादि खाया जाता है वह के के रास्ते बाहर नहीं निकलता, खाया का उत्तर है जिसके उपस्थित होने पर यह विवाद नहीं चल हुप्रा अन्न बहुत अच्छी तरह पचाता है और घल वढाता है । सकता। यह उत्तर उसी समय दिया जा सकता है जब वुड्डों, बालको, स्त्रियो और दुबलो प्रादि के लिये ऐसे ही समय उपस्थित विवाद के सबध में पहले ही न्यायालय में निर्णय दवा खाने का विधान है। हो चुका हो । अर्थात् प्रतिवादी कह सकता है कि पहले इस प्राग्भरा-सञ्ज्ञा स्त्री० [ स०] जैन मतानुसार सिद्घशिला का विवाद का निर्णय हो चुका है, फिर से इसका निर्णय होने एक नाम । की आवश्यकता नहीं। प्राग्भव-सज्ञा पु० [सं०] जम्म (को०] । प्राड मुख-वि० [सं०] जिसका मुह पूर्व दिशा की ओर हो । प्राग्भार-सज्ञा पुं० [स०] १ पर्वत के प्रागे का भाग । २ किसी पूर्वाभिमुख । वस्तु का अगला भाग या सिरा । ३ उत्पति । उत्कएँ । ४. प्राचंडय-सञ्ज्ञा पुं॰ [ मं० प्राचएल्य ] प्रचहता। तीव्रता । उग्रता । राशि । ढेर । बाढ़ (को०। भयकरता [को०] । प्राग्भाव--सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] १ पर्वत के प्रागे का भाग । २ उत्कर्ष । प्राच-वि० [ स०] [स्त्री० प्राची ] पूर्व । उन्नति । ३ पूर्व जन्म प्राचार-ठा पु० [स०] एक प्रकार का कीडा। प्राग्र-सञ्ज्ञा पु० [ स०] चरम बिंदु [को०] । प्राचार-वि० [सं०] प्रचलित परपरा या नियम के विरुद्ध [को०] । प्राग्रसर-वि० [सं०] १. श्रेष्ट । २ प्रथम । पहला । प्राचार्य-सञ्चा पु० [सं०] १ प्राचार्य । गुरु । शिक्षक । २. विद्वान् । प्राग्रहर--सज्ञा पु० [सं०] मुख्य । श्रेष्ठ । पहित । प्राग्राट-सज्ञा पु० [सं०] पतला । दही । मठा । प्राचिका-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ डांस की जाति की एक प्रकार की प्राग्य-वि० [स०] श्रेष्ठ । बडा । जगली मक्खी । २ श्येन । बाज (को॰) । प्राग्वश-सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ यज्ञशाला में वह घर जिसमें यजमानादि प्राची-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] १. पूर्व दिशा । पूरव । उ०-पूरन ससि रहते हैं। यह घर हविगृह के पूर्व पोर होता है । २ विष्णु प्राची उदै विहरनि रुचि कीनी।-घनानद, पृ० ४५५। २. ३ पूर्व वश । पहले का वश । वह दिशा जो देवता के या अपने आगे की पोर हो। ३ जल पाँवला । प्राग्वचन-सज्ञा पु० [सं०] १. महाभारत के महर्षियों के वचन । २. पूर्व का निश्चय । पहले का प्राचीन'-वि० [स०] १ जो पूर्व देश में उत्पन्न हुआ हो । पूरब का। निर्णय (को०) । २. जो पूर्व काल में उत्पन्न हुआ हो। पिछले जमाने का। प्राग्वर्ती-वि० [स० प्राक + वतिन् ] पूर्व का । प्रारभ का। शुरू का। पुराना । पुरातन । ३ वृद्ध । बुट्ठा । प्राग्वाट-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] रामायण के अनुसार प्राचीन काल के यौ०-प्राचीनकल्प = पुरा कल्प । प्राचीनगाथा = पुराना इतिहास । एक नगर का नाम । पुरानी कथा । प्राचीनतिलक । प्राचीनपनस । प्राचीनहिप । विशेष—यह नगर यमुना और गगा के बीच मे था । भरत प्राचीनमत = पुराना विश्वास । पहले से चला पाता मत । जी केकय से अयोध्या माते समय इस नगर में से होकर प्राचीनमूल। पाए थे। प्राचीन-सज्ञा पुं॰ [स] दे० प्राचीर' । प्राग्वृत्त-सज्ञा पुं० [सं०] पहले की घटना । पहले का हालचाल [को०] । प्राचीन काव्यमिन-सचा पु० [स०] वह दृश्य काव्य जिसकी रचना प्राग्वृचात-उज्ञा पु० [स० ] पूर्ववृत्त । प्राग्वृत्त । प्राचीन काल में हुई हो और जिसफा अभिनय भी प्राचीन प्राघात--संज्ञा पुं० [सं०] १. भारी प्राघात । कड़ी चोट । २. युद्ध । फल में होता रहा हो। समर (को०)। विशेष-इसके पांच भेद हैं- (१) नाट्य, (२) नृत्य, (३) नृत्त, (४) प्राधार-प्रज्ञा पुं॰ [सं०] चूना । टपकना । क्षरण [को॰] । तांडव और (५) लास्य । प्राघुण, प्राघूणक, प्राधुणिक-सज्ञा पुं० [ स०] दे॰, 'प्राधूण' [को०] । प्राचीनकुल-भज्ञा पुं० [स०] एक प्राचीन ऋषि का नाम जिन्हे प्राधूण-चशा पुं० [सं०] अतिथि । मेहमान । पाहुना । पायातरनम और प्राचीनगर्भ भी कहते हैं। प्राघूणिक-दे० पुं० [ स०] अतिथि । मेहमान । प्राचीनगर्भ-सच्चा पु० [स०] एक प्राचीन ऋषि का नाम जिनको प्रघूर्ण, , प्राघूर्णफ-सञ्चा पुं० [सं०] दे० 'प्राधूण' या 'प्राणिक' । प्राचीनकुल और पायातरतम भी कहते हैं । प्राणिक-सञ्ज्ञा पुं० [स० ] दे० 'प्राधूर्ण' । प्राचीनता-सञ्चा सी० [स०] प्राचीन होने का भाव । पुरानापन । जैसे-इस पुस्तक की प्राचीनता में कोई सदेह नहीं हो सकता। प्राह न्याय-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] वह विवाद जो पहले किसी न्यायालय में निर्णीत हो चुका हो । किसी विवाद का पहले भी किसी प्राचीनतिलक - सज्ञा पुं० [स०] चंद्रमा । न्यायालय में उपस्थित होकर निर्णीत हो चुकना । प्राचीनत्व-सज्ञा पुं० [सं०] प्राचीन होने का भाव । प्राचीनता । विशेष-व्यवहारशास्त्र के अनुसार यह अभियोग का एक प्रकार पुरानापन ।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/५१०
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