प्रनकाल २१५४ प्रलापहा प्रलकाल-सज्ञा पुं० [सं० प्रलयकाल ] दे॰ 'प्रलयकाल' । उ० फे अनुसार सृष्टि और प्रलय दोनों प्रकृति के परिणाम हैं। जगे प्रलकाल भयानक भूत | इसे दुइ दंति भिरे अदभूत ।- प्रकृति का परिणाम दो प्रकार का होता है-स्वरूप परिणाम पृ० रा०, ६१५८ । और विरूप परिणाम । प्राकृति के उत्तरोत्तर विकार द्वारा जो प्रलपन--सज्ञा पुं॰ [ स०] [ वि० प्रलपित ] १. कहना। कथन । विरूप परिणाम होता है उससे सृष्टि होती है और सृष्टि का २ वकवाद करना । प्रलाप । बकना। ३. विलपना | दुखहा जो फिर उलटा परिणाम प्रकृति के स्वरूप को पोर होने रोना। विलाप (को०)। लगता है उससे प्रलय होता है। नव मत्त मत्व मे, रजम् प्रलपित'-वि० [ स० ] कहा हुमा । कथित [को०] । रजस् तमम् तमस् मे मिल जाता है तत्र प्रलय होता है। स्वरूप परिणाम जप होने लगता है उस समय पहले महाभूत प्रजापित-सज्ञा पु० वार्ता। कथन । वात । प्रलपन [को०] । पचतन्मात्र में विलीन होते हैं, फिर पचतन्मात्र और एकादश प्रलब्ध-वि० [सं०] १ जिसे धोखा दिया गया हो । जो छला इद्रियां पहकार तत्व मे, फिर यह प्रहकार महत्तय में और गया हो । २ पकडा हुा । लिया हुआ [को०) । मत मे महत्तत्व भी प्रकृति में लीन हो जाता है। उस समय प्रलयंकर-वि० [सं० प्रलयदुर] [वि० स्मी० प्रलयकरी] प्रलयकारी। एकमात्र प्रकृति ही रह जाती है। इस प्रकार समार अपने सर्वनाशकारी। मूल कारण प्रकृति में लय को प्राप्त हो जाता है प्रलय-सशा पुं० [सं०] १ लय को प्राप्न होना। विलीन होना । ३ साहित्य में एक सात्विक भाव जिससे किमी बस्तु में तमय न रह जाना । २ भू मादि लोको का न रह जाना । ससार होने से पूर्व स्मृति का लोप हो जाता है । ४. मूर्था । नेहोशी । का तिरोभाव । जगत् के नाना रूपों का प्रकृति में लीन ५ मृत्यु । नाश (को०)। ६ पोकार (को०)। ७ पाक होकर मिट जाना। संहार या विनाश (को०)। विशेष-पुराणो में संसार के नाश का वर्णन कई प्रकार से पाया है । कूर्म पुराण के अनुसार प्रलय चार प्रकार का होता प्रलयकारी --वि० [सं० प्रतयकारिन् ] ३० 'प्रलयकर' । प्रलयकर-वि० [स०] दे० 'प्रलयंकर' । है-नित्य, नैमित्तिक, प्राकृत और प्रात्यतिफ । लोक में जो प्रलयकाल-सहा पुं० [सं०] प्रलय का समय । वह समय जब बराबर क्षय हुमा करता है वह 'नित्य प्रलय' है। कल्प के समस्त स सार का नाश हो। मत मे तीनो लोकों का जो क्षय होता है वह नैमित्तिक या 'ब्राह्म प्रलय' कहलाता है। जिम समय प्रकृति के महदादि प्रलयजलधर-समा पुं० [स०] प्रलय काल के मेघ । प्रलय के समय विशेष तक विलीन हो जाते हैं उस समय 'प्राकृतिक प्रलय' को बादल [को॰] । होता है । शान की पूर्णावस्था प्राप्त होने पर ब्रह्म या चित् प्रलयपयोधि-सञ्ज्ञा पुं० [२०] प्रलय के समय का ममुद्र । में लीन हो जाने का नाम 'प्रात्यतिक प्रलय' है। विष्णु प्रलयागिनि-सया बी० [सं० प्रलय + अग्नि ] प्रलय कर माग । पुराण में 'नित्य प्रलय' का उल्लेख नही है। ब्रह्म मौर मत्यत भयकर मौर विनाशकारी अग्नि | उ०-हकत ज्वाला प्राकृन प्रलयों के वर्णन पुराणो में एक ही प्रकार के हैं । सो महि कैसी। अति दुस्सह प्रलायगिनि जैसी।-वीर अनावृष्टि द्वारा चराचर का नाश, वारह सूर्यों के प्रचड ताप सा० । पृ० ४३६ । से जल का शोषण भोर सब कुछ भस्म होना, फिर लगातार प्रललाट-वि० [सं० ] जिसका ललाट चौड़ा हो । प्रशस्त ललाट- घोर वृष्टि होना और सब जलमय हो जाना, केवल प्रजापति वाला [को०] । का या विष्णु का रह जाना वर्णित है । एक हजार चतुर्युग प्रलव-सज्ञा पुं॰ [म०] १ अच्छी तरह काटना । पूर्ण रूप से छेदन । फा ब्रह्मा का एक दिन और उतने ही की एक रात होती है २ टुकहा । धज्जी । ३. लेश । लव । इसी रात में वह प्रलय होता है जिसे ब्राह्म प्रलय' कहते हैं । प्रलचित्र - राशा पुं० [सं०] काटने का औजार (को०] । प्राकृतिक प्रलय मे, पहले जल पृथ्वी के गघगुण को विलीन करता है जिससे पृथ्वी नही रह जाती, जल रह जाता है । प्रलाप -वज्ञा पुं० [सं०] १ फहना । वकना । कथन । २ दुखपूर्ण फिर जल का गुण जो रस है उसे अग्नि विलीन कर लेती है रुदन । दुखडा रोना (को०)। ३ निरर्थक वाक्य | व्यथ की जिससे जल नहीं रह जाता, अग्नि रह जाती है । फिर वायु बकवाद । अनाप शनाप बात । पागलो की सी बडबड । तेज को भी वितीन कर लेती है और वायु ही रह जाती है, विशेप-ज्वर आदि के वेग में लोग कभी कभी प्रलाप करते हैं। फिर वायु का गुण जो स्पर्श है उसे माकोश विलीन कर वियोगियो की दस दशामो में एक प्रलाप भी है। लेता है और केवल प्राकाश ही रह जाता है जिसका गुण प्रलापक-मया पुं० [०] १ एक प्रकार का सन्निपात जिसमे रोगी पान्द है। फिर यह शब्द भी अहकार तत्व में और अहकार अनाप शनाप बकता है, उसके शरीर मे पीडा और कप होता तत्व महत्तत्व में और पत में महत्त्व भी प्रकृति में लीन हो है । उसका चित्त ठिकाने नहीं रहता । २ प्रलाप करनेवाला। जाता है। बकवादी (को०)। नैयायिक दो प्रकार के प्रलय मानते हैं-खडप्रलय मोर महा प्रलापहा-सञ्चा पुं० [स० प्रनापहन् ] कुलत्यां जन । एक प्रकार का प्रलय । पर नव्य न्यायवाले महाप्रलय नही मानते । सांख्य भजन ।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/४८५
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