पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/४८४

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प्रयोजनीयता ३१३ प्रलंभन कर्तव्य । । प्रयोजनीयता-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'प्रयोज्यता'। प्रलंफन-पञ्चा पुं० [ स० प्रलम्फन ] १ कूदना। २. कूदने की क्रिया प्रयोज्य'- वि० [सं०] १ प्रयोग के योग्य । काम में लाने लायक । या भाव [को०] । बरतने लायक । २ काम में लगाए जाने योग्य । नियुक्त प्रलंच'-वि० [ स० प्रलम्ब ] १ नीचे की पोर दूर तक लटकता करने योग्य । प्रेरित करने योग्य । ३. पाचरण योग्य । हुमा । उ.-अतिहि लचीली अति प्रलब बिन रोग।- प्रेमघन०, भा०१, पृ० ७१। २ लंबा । अधिक लवा। प्रयोन्य-सज्ञा पुं० १ प्रेष्य भृत्य । नौकर । २. वह धन जो विसी उ०-कुद इदु बर गौर सरीरा । भुज प्रलब परिधन मुनि काम मे लगाया जाय । चीरा ।—मानस, १।१०६ । ३ टंगा हुआ। टिका हुआ । ४ निकला हुमा । किसी और को बढा हुमा । ५ काम में प्रयोज्यता-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] प्रयोजनीयता । व्यावहारिवता । ढीला । शिथिल । सम्त । प्ररक्षण-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] रक्षण । रक्षा [को०] । प्रलब-सज्ञा पु०१ लटकाव । मुलाव । २ शाखा । डाल | टहनी । प्ररुदित-वि० [स०] बहुत अधिक रोता हुआ [को०] । ३ लतांकुर । टुनगा। ४ खीरा । ५ रांगा। ६. काम में प्ररुह-सञ्ज्ञा पु० [सं०] ऊपर को बढ़नेवाला (अकुर, वल्ला, शिथिलता या टालट्ल । व्यथ का विलव । ७. पयोधर । पौधा मादि ।) स्तन । ८ एक प्रकार का हार । ६ गाथा (को०)। १० एक प्ररूढ़-व० [सं० प्ररूढ ] १. पूरी तरह उगा हुआ । पूर्ण विकसित । दानव जिसे बल राम ने मारा था। उ०-जय जय जय २ प्रकुरित। उत्पन्न । ३. जिसकी जड गहरी हो। चलभद्र बीर धरी गभौर अविल व प्रलव हारी।-घनानद, बद्धमूल । ४ लबा उगा हुआ, जैसे केश [को०] । पृ० ५५०। प्ररूढ़ि-वि० [सं० प्ररूढि ] बढना । बढाव । बाढ़ । वृद्धि [को०] । विशेष-श्रीमद्भागवत् में कथा है कि एक बार कृष्ण बलराम गोपो के बालकों के साथ खेल रहे थे । प्रलवासुर गोपवेष प्ररूपण-सक्षा पु० [सं०] [संज्ञा स्त्री० प्ररूपणा] १ आज्ञापन (जैन)। मे उनके साथ मिलकर खेलने लगा। लदके यह कहकर कुश्ती २. समझाना (को०)। लडने लगे कि जो हारे वह जीतनेवाले को फधे पर बिठाकर प्ररोचन-सा पु० [सं०] १ रुचि सपादन । रुचि दिलाना। चले । प्रलव हाग और बलराम को कधे पर लेकर भागने चाह पैदा करना । शोक पैदा करना । २ मोहित करना । लगा । पर बलराम का भार इतना अधिक हो गया कि वह ३ उत्तेजित करना। ४. दे० 'प्ररोचना' । मागे न चल सका । अत में उसने अपना रूप प्रकट किया प्ररोचना-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] १ रुचि सपादन । चाह या रुचि और थोडी देर युद्ध करके बलराम के हाथ से मारा गया। उत्पन्न करने की क्रिया। २ उत्तेजना। बढावा । ३. यौ०-प्रलबध्न प्रल बमथन । प्रलवभुज प्रलवबाहु । प्रलबहा = नाटक के अभिनय मे प्रस्तावना के बीच, सूत्रधार, नट, बलराम । नटी आदि का नाटक और नाटककार की प्रशंसा मे कुछ प्रलंधक-सज्ञा पुं॰ [ स० प्रलम्बक ] सुगध तृण । कहना जिससे दर्शको को रुचि उत्पन्न हो। ४ अभिनय के वीच आगे आनेवाली वात का रुचिकर रूप में कथन । प्रलबन-सज्ञा पु० [स० प्रलम्बन ] अवलबन । सहारा लेना। लटकना। प्ररोधन-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स०] चढाना । ऊपर उठाना । प्रलबबाहु-वि० [ स० प्रलम्पयाहु ] जिसकी भुजाएं लबी हो । लबी प्ररोह-सज्ञा पुं० [स०] १ प्रारोह । चढाव । २ ऊपर की ओर बाहोवाला | माजानुबाहु । निकलना। उगना। जमना। ३ उत्पत्ति । ४ अकुर । पंखुमा । फल्ला । ५. नदीवृक्ष । तुन का पेड। ६ प्रकाश प्रलंवमथन-मचा पु० [म० प्रलम्बमथन ] बलराम । किरण (को०)। सतान । सतति (को०)। प्रलं बहा-सशा पु० [ मप्रलम्बहन् ] बलराम [को॰] । अर्बुद (को०)। प्रलंबाह-वि० [भ० प्रलम्याण्ड ] जिसका प्रडकोष लटकता हुमा प्ररोहण-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ प्रारोह । चढ़ाव । २ से हो । वडे अंडकोषवाला [को०] । निकलना। उगना । जमना । ३ उत्पत्ति। ४ पंखुवा। प्रलबित-वि० [सं० प्रलम्बित ] खूब नीचे तक लटकाया हुआ । अकुर (को०)। प्रलंबी-वि० [सं० प्रलम्बिन् ] [वि॰ स्त्री० प्रलविनी ] १, दूर प्ररोहभूमि-सज्ञा स्त्री० [सं०] उर्वरा भूमि। उपजाऊ जमीन । तक लटकनेवाला । लंबा । २. प्रवलवन करनेवाला । सहारा वह भूमि जहाँ घास पौधे उगें । लेनेवाला। प्ररोहशाखी-सज्ञा पुं० [40] वे वृक्ष जिनकी कलम लगाने से प्रलम-सज्ञा पुं॰ [ स० प्रलम्भ ] १. लाभ । प्राप्ति । मिलना । लग जाय। २ छल । घोखा। प्ररोही-वि० [सं० प्ररोहिन्] १ उगने या जमनेवाला । उत्पन्न होने प्रलंभन-सञ्ज्ञा पुं० [स० प्रलम्भन ] [वि० प्रलब्ध ] १. लाभ वाला । २ अभिवर्घनशील । वढ़नेवाला (को०] । होना । प्राप्ति होना । २. छल । घोखा । गह।