प्रयत्नपक्ष २१६० प्रयाण प्रवृत्ति है, त्याग का व्यापार निवृत्ति । ये दोनों इच्छा भोर इस बात का उल्लेख वाल्मीकि रामायण मे है। वन जाते द्वेपपूर्वक होते हैं। श्वास प्रश्वास आदि व्यापार जो इच्छा समय श्रीगमचद्र प्रयाग में भारद्वाज ऋपि के प्राथम पर और द्वेषपूर्वक नहीं होते जीवनयोनि प्रयत्न कहलाते हैं । होते हुए गए थे। प्रयाग बहुत दिनो तक कोशल राज्य के ३ वर्णो के उच्चारण में होनेवाली क्रिया। मतगत था। अशोक प्रादि बौद्ध राजाप्रो के समय यहाँ बौद्धो के अनेक मठ और विहार थे। अशोक का स्तम विशेष-उच्चारण प्रयत्न दो प्रकार का होता है-पाभ्यतर प्रवतक़ किले के भीतर खडा है जिसमे समुद्रगुप्त की प्रशस्ति पौर बाह्य । ध्वनि उत्पन्न होने के पहले वागिद्रिय की क्रिया खुदी हुई है। फाहियान नामक चीनी यात्री सन् ४१४ ई० में को ग्राम्यतर प्रयत्न कहते हैं और ध्वनि के प्रत की क्रिया को पाया था। उस समय प्रयाग कोशल राज्य में ही लगता था। बाह्य प्रयत्न कहते हैं। प्राभ्यतर प्रयत्न के अनुसार वर्णों के प्रयाग के उस पार ही प्रतिष्ठान नामक प्रसिद्ध दुर्ग था जिसे चार भद हैं-(१) वृित-जिनके उच्चारण मे वागिद्रिय खुली रहती है, जैसे, स्वर । (२) स्पृष्ट-जिनके उच्चारण में समुद्रगुप्त ने बहुत दृढ किया था। प्रयाग का अक्षयवट बहुत प्राचीन काल से प्रसिद्ध चला आता है। चीनी यात्री वागिद्रिय का द्वार बद रहता है, जैसे, 'क' से 'म' तक हुएनसाग ईसा की सातवी शताब्दी मे भारतवर्ष मे आया था। २५ व्यजन । (३) ईपत् विवृत-जिनके उच्चारण मे उसने अक्षयवट का देखा था। आज भी लाखो यात्री प्रयाग यागिद्रिय कुछ खुली रहती है, जैसे य र ल व । (४) ईपत् आकर इस वट का दर्शन करते हैं जो सृष्टि के पादि से स्कृष्ट-शष सह। ब्राह्य प्रश्न के अनुसार दो भेद हैं माना जाता है। वर्तमान रूप में जो पुराण मे मिलते हैं अघोप और घोष। हाघोष वरणों के उच्चारण में केवल दास का उपयोग होता है। कोई नाद नहीं होता, जैसे- उनमे मत्स्यपुराण बहुत प्राचीन और प्रामाणिक माना जाता क ख, च छ, ट ढ, त थ, प फ, श ष और स । घोप वणों है। इस पुराण के १०२ अध्याय से लेकर १०७ अध्याय तक मे इस तीथ के माहात्म्य का वर्णन है। उसमें लिखा है कि उच्चारण मे केवल नाद का उपयोग होता है-शेष व्यजन प्रयाग प्रजापति का क्षेत्र है जहाँ गगा मौर यमुना बहती हैं। और सब स्वर । साठ सहन वीर गगा की और स्वय सूय जमुना की रक्षा प्रयत्नपक्ष-मञा पुं० [सं० प्रयत्न+पक्ष ] प्रयत्न या उद्योग का करते हैं। यहाँ जो वट है उसकी रक्षा स्वय शूलपाणि करते पहलू । लोकरजन के लिये की जानेवाली क्रियानो का हैं। पाच कुछ हैं जिनमें से होकर जाह्नवी वहती है। माघ कलाप । उ०-साधनावस्था या प्रयत्न पक्ष को ग्रहण महीने में यहाँ सब तीर्थ प्राफर वास करते हैं। इससे उस करनेवाले कुछ ऐसे कवि भी होते हैं जिनका मन सिद्धावस्था महीने में इस तीर्थवास का बहुत फल है । सगम पर जो या उपयोग पक्ष की ओर नहीं जाता, जैसे भूषण ।-रस०, लोग मग्नि द्वारा देह विसर्जित करते हैं वे जितने रोम हैं पृ० ५६ । उतने सहस्र वप स्वर्ग लोक मे वास करते हैं। मत्स्य प्रयत्नवान-वि० [सं० प्रत्यत्नवत् ] [ वि० सी० प्रयत्नवती] प्रयत्न पुराण के उक्त वर्णन में ध्यान देने की बात यह है कि उसमे में लगा हुमा। सरस्वती का कही उल्लेख नहीं है जिसे पीछे से लोगों ने प्रयत्नशील-वि० [सं० ] प्रयत्न में लगा हुमा । प्रयत्नवान् । त्रिवेणी के भ्रम में मिलाया है। वास्तव में गगा और जमुना प्रयत्नशैथिल्य-सज्ञा पुं० [ म०] साधारण लोग जिस प्रकार की दो ओर से प्राई हुई दो घारापो और एक दोनों की श्रासन मारकर बैठते हैं उसे शिथिल अर्थात् दूर करके योग समिलित धारा से ही त्रिवेणी हो जाती है। मे कही हुई रीतियो के अनुसार प्रासन पर जप करना । ३ यज्ञ (को०) । ४ इद्र (को०)। ५. घोडा (को०)। (योग)। प्रयोगमय-सक्षा पुं० [म.] इंद्र [को०] । प्रयसा-संज्ञा स्त्री॰ [ स० ] एक राक्षसी जिसे रावण ने सीता को प्रयागवाल-सज्ञा पु० [सं० प्रयाग + वाला (प्रत्य॰)] प्रयाग तीर्थ समझाने के लिये नियत किया था। का पडा। प्रयस्त -वि० [स०] १ पकाया हुमा। सिझाया हुआ। २ प्रयाचन-सचा पुं० [सं०] १. भिक्षा मांगना । २ प्रार्थना करना। मसालेदार । जिसमें मसाले पड़े हो। ३. उत्सुक । जिज्ञासु । गिडगिडाना [को०)। ४ विखरा हुमा (को०। प्रयाज-सज्ञा पुं० [स०] दर्शपौर्णमास यज्ञ के म तर्गत एक अंग यज्ञ । प्रयाग-सझा पुं० [स०] १ बहुत से यज्ञों का स्थान । २ एक प्रसिद्ध प्रयाण-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ गमन । प्रस्थान । जाना । यात्रा | कूच । तीर्थ जो गगा यमुना के संगम पर है। रवानगी। उ०-जैसी आज्ञा, उठा विभीषण, यह कह उसने विशेष-जान पडता है जिस प्रकार सरस्वती नदी के तट पर किया प्रयाण । जंचा इसी मे तात, मुझे भी निज पुलस्त्य प्राचीन काल में बहुत से यज्ञादि होते थे उसी प्रकार प्रागे कुल का कल्याण ।-साकेत, पृ० ३६१। २ युद्धयात्रा। चलकर गगा जमुना के संगम पर भी हुए थे। इसी लिये चढ़ाई । ३ भारभ । किसी काम का छिडना। ४. ससार से प्रयाग नाम पड़ा। यह तीयं बहुत प्राचीन काल से प्रसिद्ध है विदाई। मृत्यु (को०) ५ घोडे की पीठ (को०)। ६ किसी पौर यहाँ के जल से प्राचीन राजामों का अभिषेक होता था। जानवर का पिछला भाग (को०)।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/४८१
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