पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/४७६

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प्रमना ३१५ प्रमाण गुजन, पृ०६४। २. सावधान । सजग । उ०-हैं वही मल्लपति, वानरेंद्र सुग्रीव प्रमन |-अपरा, पृ० ४४ । प्रमना-वि० [ स० प्रमनस ] हर्षयुक्त । प्रसन्न । प्रमन्यु'–वि० [स०] १ बहुत ऋद्ध । २. दुखी । सत्रस्त (को॰) । भ्रमन्यु-सञ्ज्ञा पुं० प्रति क्रोध । अत्यत कोप । प्रमय-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ मृत्यु । मौत । २ वध। घातन । हिंसन । ३ पतन । नाश । विनाश [को॰] । प्रमर्दन'-सज्ञा पुं० [स०] १ अच्छी तरह मर्दन । अच्छी तरह मलना दलना । २ खूब कुचलना । रौंदना । ३ दमन करना । नष्ट करना । ४ विष्णु। प्रमर्दन-वि० मर्दन करनेवाला । प्रमर्दित-वि० [ स०] कुचला हुआ । रौंदा हुआ । दलित [को०] । प्रमर्दिता-वि० [सं० प्रमदित ] कुचलनेवाला। रोदनेवाला । दलने वाला [को०) । प्रमर्दी-वि० [स० प्रमर्दिन् ] दे० 'प्रमदिता' । प्रमा-सञ्चा स्त्री॰ [स०] १ चेतना । ज्ञान । बोध । २ शुद्ध बोध । यथार्थ ज्ञान । जहाँ जैसी बात है वहाँ वैसा अनुभव (न्याय) । ३. नीव । ४ माप । प्रमाण'-सशा पु० [सं०] १ वह कारण या मुख्य हेतु जिससे ज्ञान हो । वह बात जिससे किसी दूसरी बात का यथार्थ ज्ञान हो। वह वात जिससे कोई दूसरी बात सिद्ध हो । सबूत । विशेष-प्रमाण न्याय का मुख्य विषय है। गौतम ने चार प्रकार के प्रमाण माने हैं--प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, पोर शब्द । इद्रियो के साथ संबंध होने से किसी वस्तु का जो ज्ञान होता है वह प्रत्यक्ष है। लिंग (लक्षण) और लिंगी दोनों के प्रत्यक्ष ज्ञान से उत्पन्न ज्ञान को अनुमान कहते हैं । (दे० न्याय)। किसी जानी हुई वस्तु के सादृश्य द्वारा दूसरी वस्तु का ज्ञान जिस प्रमाण से होता है वह उपमान कहलाता है। जैसे, गाय के सदृश ही नील गाय होती है। प्राप्त या विश्वासपात्र पुरुष की बात को शब्द प्रमाण कहते हैं । इन चार प्रमाणो के अतिरिक्त मीमासक, वेदाती और पौराणिक चार प्रकार के और प्रमाण मानते हैं-ऐतिह, अर्थापति, सभव और प्रभाव । जो बात केवल परपरा से प्रसिद्ध चली आती है वह जिस प्रमाण से मानी जाती है उसको ऐतिह्य प्रमाण कहते हैं । जिस बात से बिना किसी देखी या सुनी बात के अर्थ में आपत्ति प्राती हो उसके लिये अर्थापत्ति प्रमाण है । जैसे, मोटा देवदत्त दिन को नहीं खाता, यह जानकर यह मानना पड़ता है कि देवदत्त रात को खाता है क्योकि बिना खाए कोई मोटा हो नहीं सकता। व्यापक के भीतर व्याप्य-प्रगी के भीतर अंग-का होना जिस प्रमाण से सिद्ध होता है उसे सभव प्रमाण कहते हैं । जैसे, सेर के भीतर छटोंक का होना। किसी वस्तु का न होना जिससे सिद्ध होता है वह प्रभाव प्रमाण है। जैसे नहे निकलकर बैठे हुए हैं इससे बिल्ली यहाँ नही है। पर नैयायिक इन चारो को अलग प्रमाण नहीं मानते, अपने चार प्रमारणो के अंतर्गत मानते हैं। और किन किन दर्शनी में कौन - प्रमाण गृहीत हुए हैं यह नीचे दिया जाता है।- चार्वाक-केवल प्रत्यक्ष प्रमाण । बौद्ध--प्रत्यक्ष और अनुमान । साख्य-प्रत्यक्ष, अनुमान और पागम । पातमल-प्रत्यक्ष, अनुमान और पागम । वैशेषिक-प्रत्यक्ष और अनुमान । रामानुज पूर्णप्रज्ञ-प्रत्यक्ष, अनुमान और मागम । धर्मशास्त्र में किसी व्यवहार या अभियोग के निर्णय में च प्रमाण माने गए हैं-लिखित ( दस्तावेज ), भुक्ति (कब्जा साक्ष्य (गवाही) और दिव्य । प्रथम तीन प्रकार के मानुष कहलाते हैं। २ एक अलकार जिसमें पाठ प्रमाणो में से किसी एक का प होता है। जैसे अनुमान का उदाहरण-घन गर्जन दा. दमक घुरवागन धावत । प्रायो बरषा काल अब ह्व बिरहिनि प्रत। विशेष-प्राय सब अलकारवालो ने केवल अनुमान प्रल ही माना है, प्रत्यक्ष प्रादि और प्रमाणों को अल कार न माना है। केवल भोज ने पाठ प्रमाणों के अनुसार लकार माना है जिनका अनुकरण अप्पय दीक्षित (कुवलयानद मे) किया है । काव्यप्रकाश प्रादि मे प्रत्यक्ष भ को लेकर प्रमाणालकार नहीं निरूपित हुमा है । ३ सत्यता । सचाई। उ०-कान्ह जू कैसे दया के निधान जानो न काहू के प्रेम प्रमानहिं ।-दास (शब्द०)। ४ प्रतीति । दृढ धारणा । यकीन । उ०-यतरजामी राम । तुम सर्वज्ञ सुजान । जौ फुर कहहै तो नाथ मम कीजिय १ प्रमान । -तुलसी (शब्द॰) । (ख) जो तुम तजहु, आन प्रभु यह प्रमान मन मोरे । मन, वच, कर्म नरक सुर वह जहें रघुवीर निहोरे । —तुलसी (शब्द०)। ५ थाप । साख । मान । प्रादर । ठीक ठिकाना । उ०-1 पुरुषारथ जो बकै ताको फोन प्रमान । करनी जवुक ज्यो गरजन सिंह समान । -दीनदयाल गिरि (शब्द ६. प्रामाणिक बात या वस्तु । मानने की बात । पा. चीज । उ०-रण मारि प्रक्ष कुमार बहु विधि इ द्रजि युद्ध के । अति ब्रह्म शस्त्र प्रमाण मनि: वश्य मो युद्ध के-केशव (शब्द०)। ७ इयत्ता। हद। निर्दिष्ट परिमाण, मात्रा या संख्या। अदाज । जैसे, प्रमाण ही इतना, इतना बडा या यह होता है। उ०- कौन है तू, कित जाति चली, बलि, बीती निसा घि प्रमाने ।-पद्माकर (शब्द०)। (ख) अतल, वितल सुतल तलातल और महातल जान । पाताल और र मिलि के सातो भुवन प्रमान ।-सूर (शब्द०)। ८ ॥ ६. मूलधन । १० प्रमाणपत्र । आदेशपत्र । उ०-२ जू सों वोलि कह्यो कुलपूज्य प्रायो है प्रमान ही तो पै जायही । हनुमान (शब्द०)। ११ विष्णु का एक (को०) । १२. सघटन । एका (को०) । १३. नियम (को०) . या ५