किया हुमा । प्रदिक् ३१७४ प्रदेशनी थोडे पाश मे होता है। ज्वर प्रादि का प्रदाह सारे शरीर में भय कर यिप जिसे प्रदीपक भी कहते हैं। विशेष और प्रण प्रादि होने से पहले किसी थोड़े से स्थान में होता 'प्रदीपक'। है। शरीर के प्रदर किसी प्रकार का प्राघात या उपद्रव प्रदोन-० १. प्रज्वलित करनेवाला । २ प्रकाशित भारनेवाला । होने, स्नायु में किसी प्रकार की उत्तेजना प्रादि होने अथवा ३ उत्तेजित करनेवाला । उत्तेजक [को०)। और किसी प्रकार का प्राघात होने पर प्रदाह उत्पन्न प्रदीपिका-सा गी० [ मै०] १ छोटा दीपक । २ एफ रागिनी होता है। कभी कभी जहरीले जानवरों के काटने या जो किमी निसी मत से दीपक राग पी रखी है। ३ अधिक गरमी पहुंचने के कारण भी प्रदाह होता है। जिस ध्याग्या । नाप्य (स)। स्थान पर प्रदाह होता है उस स्थान पर कभी कभी सूजन प्रदीप्त-० [सं०] १ जलता हुमा । जगमगाता हुा। जिसमें प्रादि भी हो जाती है, या वहाँ से कुछ तरल पदार्थ नियलने प्रनाश हो । प्रााशवान् । प्रायशित। २.जिसमे दीप्ति हो। लगता है। उज्वल । पमकदार । चमोला। ३ उठाया हुमा । फैलाया २ विनाश । वरवादी । विध्वंस । प्रलय (को॰) । हुग्रा (को०)। ४ उत्तेजित । जगाया हुपा (को०)। प्रदिक्-सञ्ज्ञा सी० [स० प्रदिश् ] ० 'प्रदिशा' [को०)। प्रदीप्तप्रज्ञ-वि० [.] नीषणयुदिन । जिसकी बुद्धि तेज हो । प्रदिग्ध-सा पुं॰ [ म० ] विशेष प्रकार से पका हुप्रा मास | प्रदीप्ति-सा लो [ग] १. रोशनी । प्राश । २. पमक । मामा । प्रदिग्ध-वि० स्निग्ध पिया हुा । तेल या घी से सुगडा । चिकना प्रदीपणाए-T० [हिं०] • 'प्रदक्षिण' । उ०-पन्य दोहा- 6उ घाज नौ । देई प्रदोषणा लागइ दर पाई। -बी० प्रदिव्य-वि० [मं०] दे० 'दिव्य'। उ०-प्रथम प्रदिव्य मुद भजित रामो०, पृ०६६. अभीत छिद्र ध्रुव विक्षामा प्रपन्न गुन प्रतिकर कुंद । -पज- प्रदुमन कु-मना [ स० प्रपुग्न ] *• 'प्रद्युम्न' । उ०—कृष्ण के नेस०, पृ०२४। भयो प्रदुगन वारा। -कवीर सा०, पृ० ४७ । प्रदिशा-सा म्पी० [सं० प्रदिश् ] दो मुरुप दिशाओं के बीच का प्रदुष्ट-वि० [ मं०] १ विगढ़ा हुमा । भ्रष्ट । २ वुरा। दुष्ट । कोना । कोण । विदिशा। पापी । विषयी। कामुक (को०] । प्रदिष्ट-वि० [ स०] १ प्रदर्शित । सकेतित । २ निर्देशित । प्रादेशित । ३ स्थिर किया हुअा। नियत पिया हुमा (को० । प्रदूपरु-२० [सं०] १ नष्ट करनेवाला । २ पूपित करनेवाला। प्रदिष्टाभय-वि० [सं०] जिसे राज्य की घोर से रक्षा का वचन प्रदूषण-सक्षा ० [१०] १. नष्ट करना । पोपट करना । २ दूषित करना । दोषमुक्त करना (को०)। मिला हो । राज्य द्वारा सरक्षित । प्रदूपित-वि० [सं०] प्रष्ट । विगा हुमा । विकृत [को०)। प्रदीप-मशा पुं० [स०] १ धीपक । दीमा । चिराग । २. रोशनी। प्रदृप्ति-नया रो [10] गर्व । अभिमान । प्रदर्प (०) । प्रकाश । ३ वह जिससे प्रकाश हो। ४ संपूर्ण जाति का एक राग जिसे गाने का समय तीसरा पहर है। किसी किसी प्रदेय'--वि० [40] १ जो देने योग्य हो। दान करने योग्य । देने के मत से यह दीपक राग का एक पुत्र है। (या विवाह करने) के योग्य (मन्या)। विशेष-ग्रंथादि के अंत में लगने पर इसका प्रथं व्याख्या करने प्रदेय-सा पुं० वह जो कुछ उपहार में दिया जाय । भेट । नजर । या स्पष्ट करनेवाला और वश या कुलवाचक शब्दो के प्रदेश-मश पुं० [ स०] १ किसी देश का वह बडा विभाग जिसकी साथ लगने पर ज्योतित करनेवाला, रोशन करनेवाला अर्थ भाषा, गैतिव्यवहार, जलवायु, शासनपद्धति मादि उसी देता है। जैसे, फाव्यप्रकाशप्रदीप, काव्यप्रदीप, वराप्रदीप, देश के अन्य विभागों की इन सब बातो से भिन्न हों। कुलप्रदीप। प्रात । सूबा । २ स्पान | जगह । मुकाम । ३ अंगूठे के प्रदीपक-सञ्ज्ञा पु० [सं०] [पी० प्रदीपिका ] १ प्रकाशफ । प्रकाश अगले सिरे से लेकर तर्जनी के अगले सिरे तक की दूरी। में लानेवाला । प्रकाशित करनेवाला । २ उद्दीप्त करनेवाला । छोटा विचा या वालिश्न । ४. मग । मवयव । ५ सुश्रुत उकसानेवाला (को०)। ३ नौ प्रकार के विषो मे से एक के अनुसार एक प्रकार की तंत्र युक्ति । ६ दीवार । प्रकार का भयकर स्थावर विष जिसके सूघने मात्र से मनुष्य ७ सशा । नाम । ८ दिखाना । निर्देश करना (को०) । ६ मर जाता है। व्याकरण मे उदाहरण या निदर्शन । उदाहरण या दृष्टात विशेष-यह विष के एक पौधे की जड है जिसके पत्ते खजूर द्वारा स्पष्टीकरण (को०)। के से होते हैं और जो समुद्र के किनारे बहुतायत से पैदा प्रदेशकारी-सरा पुं० [सं० प्रदेशकारिन् ] योगियो का एक संप्रदाय । होता है। इसे प्रदीपन भी कहते हैं। प्रदेशन-सपा पुं॰ [ म०] १ वह जो कुछ फिसी बहे या राजा को प्रदोपतिg -सञ्ज्ञा स्त्री० [स० प्रदोप्ति ] दे० 'प्रदीप्ति' । उपहार के रूप में दिया जाय । भेंट | नजर । २ परामर्श । प्रदोपन-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १. प्रकाश करने का काम । उजाला उपदेश । सलाह (को०) । ३ दिखलाना । दिखाना (को॰) । करना। २ उज्वल करना। चमकाना। ३ एक प्रकार का प्रदेशनी-संशा सी० [सं०] मंगूठे के पास की उँगली। तर्जनी । 1
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/४६५
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