प्रत्यभिज्ञान ३१६८ प्रत्यवमर्श ज्ञान विचारों में परमात्मा का प्रकारा होने पर भी जवतक यह ज्ञान न में 'ल', दयालु में 'लु', प्रक्षरश में 'श' विफाऊ में 'मान', हो कि ईश्वर के ईश्वरता यादि गुण हमसे भी हैं, तबतक उठान में 'मान', घुमाव में 'पाव' आदि प्रत्यय हैं। उपसर्ग मुक्ति नहीं हो सकती। यही जीवात्मा पौर परमात्मा के क्रियापदो या शब्दो के श्रादि में घौर प्रत्यय मत में लगता है सवध में इन दर्शन का सिद्धात है। पदार्थनिर्णय के सवध में प्रत इसे परसर्ग भी कहते है। प्रत्यभिज्ञा दर्शन और रसेश्वर दर्शन के मत आपस मे १७ छेद । छिद्र । रध्र (को०)। मिलते जुलते हैं। प्रत्ययकारी-वि० [स० प्रत्ययकारिन् ] विश्वास उत्पन्न करनेवाला । प्रत्यभिज्ञान-सज्ञा पुं० [स०] १ सदृश वस्तु को देखकर किसी पहले समझदारी से युक्त [को०]। देखो हुई वस्तु का स्मरण हो पाना। स्मृति की सहायता प्रत्ययकारिणी-मज्ञा स्त्री॰ [ स०] मुदा । मुहर । विश्वासदायक से होनेवाला ज्ञान । २ पहचान । स्मारक वस्तु या चिह्न। चिह्न [को०] । प्रत्यभिज्ञेय-वि० [स०] पहचान के योग्य । प्रत्यभिज्ञान के योग्य । प्रत्ययत्व-सचा पु० [ सं०] प्रमाणत्व । उ०-जो असत् है उसका जानने योग्य । उ०—किंतु जो भी हो, निजी तुम प्रश्न मेरे, प्रत्ययत्व नहीं है ।-पूर्णानद अमि० प्र०, पृ० ३६१ । प्रेय प्रत्यभिज्ञेय । हरी घास०, पृ० १५ । प्रत्ययन-राज्ञा पु० [स] प्रतीति होना । प्रतीत होना [को०। प्रत्यभियोग-सज्ञा पुं० [स०] कौटिल्य अर्थशास्त्र के अनुसार वह प्रत्ययप्रतिभू-सञ्ज्ञा पुं० [ स०] वह जमानतदार जो किसी को अगियोग जो अभियुक्त अपने वादी अथवा अभियोग लगाने महाजन से यह कहकर कज दिलावे कि मैं इसे जानता हूँ, वाले पर लगावे । किसी के अभियोग लगाने पर उलटे उसपर यह बडी ईमानदार, साधु पोर विश्वास करने के योग्य है । अभियोग लगाना वह अभियोग जो अभियुक्त अभियोग प्रत्ययवाद-सञ्ज्ञा पुं० [ म० प्रत्यय+वाढ ] एक दार्शनिक सिद्वात चलानेवाले पर चलावे । मुद्दालेह का मुद्दई पर भी दावा जिसमें यह माना जाता है कि हमारा सम करना। से उत्पन्न है, भौतिक जगत के पदार्थों से नही । पाइटिय- विशेष-व्यवहार शास्त्र के अनुसार ऐसा करना वजित है । अभि- लिज्म । उ०-यह इशारा जर्मन दार्शनिको के प्रत्ययवाद युक्त जब तक अपने पापको निर्दोष न प्रमाणित कर ले तब से मिला जिसके प्रवर्तक काट थे ।-चिंतामणि, भा० २, तक उसे वादी पर कोई अभियोग लगाने का अधिकार नही है। पृ० ७६। प्रत्यभिवाद-संज्ञा पुं० [सं०] वह आशीर्वाद जो किसी पूज्य या प्रत्ययसर्ग-तज्ञा पु० [सं०] सारूप शास्त्र में महत्त्व या बुद्धि से बडे का अभिवादन करने पर मिले । उत्पन्न सृष्टि । प्रत्यभिवादन-सज्ञा पु० [सं०] दे॰ 'प्रत्यभिवाद' । प्रत्ययाधि-सञ्ज्ञा स्त्री० [स० ] वह गिरवी या रेहन जो रुपया वसूल प्रत्यमित्र-सचा पुं० [सं०] पात्रु । दुश्मन । होने के इतमिनान या साख के लिये रखा जाय । प्रत्यय-सशा पुं० [ स०] १ विश्वास । एतबार । यकीन । उ०- प्रत्ययित-वि० [सं०] १ जिसे विश्वास हुआ हो। विश्वस्त । यदि पूरा प्रत्यय न हो तुम्हे इस जन पर, तो चढ़ सकते हैं २ प्राप्त [को०] । राजदूत तो घन पर ।-साकेत, पृ० २३७ । २. प्रमाण । प्रत्ययी-वि० [स० प्रत्ययिन् ] १ विश्वास करनेवाला । भरोसा सवून । उ०-प्रभु की नाममुद्रिका देकर परिचय, प्रत्यय, धेर्य दिया।-साकेत, पृ० ३८६ । ३ विचार । खयाल । रखनेवाला । २ विश्वास करने योग्य । विश्वसनीय [को०] । भावना। ४ ज्ञान । वुद्धि । समझ । ५. व्याख्या। शरह । प्रत्यरा-सशा सी० [स०] वह नाभि जिसमें चक्र या पहिए की ६ कारण । हेतु । ७. धावश्यकता । जरूरत । ८ प्रख्याति । पराएं तु करने के लिये जही जाती हैं (को०] 1 प्रसिद्धि । ६ चिह्न । लक्षण । १० निर्णय । फैसला । ११ प्रत्यक-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का प्रतिसूर्य । समति । राय । १२ स्वाद । जायका । १३ सहायक । प्रत्यर्थ-वि० [सं०] उपयोगी । लाभकर । मददगार । १४ विष्णु का एक नाम । १५ वह रीति जिसके प्रत्यर्थः-सञ्ज्ञा पुं०१ उत्तर । जवाब । २ विरोध । शत्रुता [को०] । द्वारा छदो के भेद और उनकी संख्या जानी जाय । प्रत्यर्थक, प्रत्यर्थिक-मचा पुं० [सं०] शत्रु । विरोधी को०] । विशेष-छद शाल मे ६ प्रत्यय हैं-(१) प्रस्तार, (२) सूची, प्रत्यर्थी सञ्चा पुं० [ स० प्रत्यर्थिन् ] १ प्रतिवादी । मुद्दालेह । २. (३) पाताल, (४) उद्दिष्ट, (५) नष्ट, (६) मेरु, (७) खड- शत्र । दुश्मन। मेरु, (८) पताका और (6) मकंटी। प्रत्यर्पण-सचा ० [सं०] मिला हुमा धन किसी को देना । दान १६ व्याकरण मे वह अक्षर या प्रक्षरसमूह जो किसी धातु या में पाया हुआ धन फिर दान करना । मूल शब्द के अंत मे, उसके अर्थ में कोई विशेषता उत्पन्न करने के उद्देश्य से लगाया जाय । जैसे, 'बड़ा' (शब्द) प्रत्यर्पित-वि० [सं०] वापस किया हुमा। लौटाया हुमा [को॰] । अथवा 'लडना' के 'लड' (धातु) के मत में जोडा जानेवाला प्रत्यवनेजन-वधा पुं० [सं०] १ पुनः प्रक्षालन । फिर धोना। २. 'आई' शब्दसमूह (जिसके जोडने से 'बडाई' या 'लडाई' पुनराचमन [को०। 'शब्द' बनता है) प्रत्यय है । प्रत्यवमर्श-सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ अनुसंधान करना । पता लगाना । विशेप-इसी प्रकार मुर्खता मे 'ता' लडफपन में 'पन', पीतल अच्छे बुरे का विचार करना।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/४५९
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।