प्रतिशोध ३१६० प्रतिष्ठापत्र प्रतिशोध-सज्ञा पुं० [ मं० प्रति +शोध ] वह काम जो किसी बात प्रतिपेधाक्षर--राशा पुं० [सं०] प्रतिपध या निषेध करनेवाले शब्द का बदला चुकाने के लिये किया जाय । वदला। या वरणं (को०] । विशेष-सस्कृत मे यह शब्द इस अर्थ मे नहीं मिलता । हिंदी प्रतिपेधोपमा-सश स्त्री० [म. ] उपमा प्रल कार या एा भेद । में बंगला से पाया हुअा जान पड़ता है। निपेघ द्वारा तुनना (101 प्रतिश्या, प्रतिश्यान-सच्चा स्रो० [सं०] " 'प्रतिश्याय' । प्रतिष्क-गा पु० [ 10 ] दून । घर । प्रतिश्याय-सज्ञा पुं० [सं०] १ जुकाम । सरदी। २ पीनस रोग । प्रतिष्कश-सज्ञा पुं० [ मं० १ बुफिया। गुप्तचर । दूत । २ कोडा । चाबुक (को०)। प्रतिश्रम-सज्ञा पुं० [स०] परिश्रम । मेहनत । प्रतिष्प-राजा पुं० [सं० ] चाबुक । चमटे या फोडा [को०] । प्रतिश्रय-सज्ञा पुं० [सं०] १ वह स्थान जहाँ यज्ञ होता है। प्रतिष्कस-समा पु० [म.] पर । दूत (को०) । यज्ञशाला । २ सभा । ३ स्थान । ४ निवास । गृह । घर ५ पासरा। सहारा। प्राथय (को०)। ६ वादा । वचन प्रतिष्टंभ-मज्ञा पुं॰ [ १० प्रतिष्टम्भ ] १ स्तब्ध या निश्चल होने (को०) । ७ सहायता । मदद (को०)। की क्रिया या भाव। २ प्रतिध । गेरु (ोली। प्रतिष्टव्ध-० [सं०] स्तभित । यका या गेका हुमा [को०। प्रतिश्रयण-सझा पुं० [सं०] स्वीकृति । मतगे । प्रतिष्ठ'-० [सं०] प्रसिन । प्रमणात । मशहा । प्रतिश्रव-सचा पु० [१०] १ अगीकार । स्वीकृति । मजूरी। २ प्रतिज्ञा । ३ प्रतिध्वनि [को०] । प्रतिष्ठ'-मज्ञा पु० जैनियो के भनुमार सुपाश्व नामक वृत्ताहंत के पिता का नाम । प्रतिश्रवण-सज्ञा पुं० [म०] १. श्रवण करना । सुनना । २ प्रतिज्ञा । ३ मजूरी देना । स्वीकार करना। ४ वनाए रखना। प्रतिष्ठा -यो मो० [सं०] १. स्थापना । रखा जाना । स्थिति । ठहगव । ३ देवता की प्रतिमा की स्थापना। ४ स्थान । रक्षा करना [को०] । जगह । ५ मानमर्यादा। गौरव । ६. प्रम्याति । प्रसिद्धि । प्रतिश्रुत्-सज्ञा स्त्री॰ [ म०] 70 प्रतिश्रुति' । ७ यश । कीति । ८ प्रादर । सत्कार । इज्जत । मदिरो प्रतिश्रुत-वि० [सं० ] स्वीकार किया हुअा। मजूर किया हुमा । की वृत्ति । प्राधय । ठिकाना । १० यज्ञ को समाप्ति । ११. प्रतिज्ञात । शरीर । १२ पृथ्वी। १३. ग्रत का उद्यापन । १४ एक प्रतिश्रुति-सज्ञा स्त्री॰ [ स०] १. प्रतिध्वनि । २. प्रतिज्ञा । इकरार । ३ रजामदी । मजूरी। स्वीकृति । अनुमति । ४ वसुदेव के प्रकार का छद । १५ चार वर्णो फा वृत्त । १६. वह उपहार जो घर का वटा भाई वयु यो देता है। १७ पर। एक पुत्र का नाम । पाद (ो०)। १८ निवास । घर (को०)। १६ मस्कार प्रतिश्रुत्का-सज्ञा पुं॰ [स०] एक वैदिक देवता। विशेष (को०) । २०. परिघि । सीमा (स.)। प्रतिश्रोता-सझा पुं० [सं० प्रतिश्रोतृ] अनुमति देनेवाला । मजूर प्रतिष्ठाता-वि० [सं० प्रतिष्ठातृ] प्रतिष्ठित करनेवाला । नींव करनेवाला। टालनेवाला। उ०-स्पितन जरथुस्त्र, मज्दा मत का प्रति- प्रतिषिद्ध-वि० [सं०] जिसके विषय में प्रतिपेध किया गया हो । प्ठाता उससे पहले ही हुमा था ।-प्रा० भा०, ५०, पृ०७४ | निपिद्ध । २ खडित (को०)। प्रतिष्ठान-सजा पु० [२०] १ स्थापित या प्रतिष्ठित करने की क्रिया। प्रतिपेद्धा-वि०, सज्ञा पुं० [सं० प्रतिपेस ] प्रतिपेष करनेवाला । रखना । बैठाना। स्यापन । २ देवमूर्ति की स्थापना । ३ प्रतिषेधक (फो०] । जह । नीव । मूल | ४ पदवी । ५. स्थान | जगह । ६. वह प्रतिषेध-सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ निपेष । मनाही । उ०-प्रतिपेष कृत्य जो अत मादिनी समाप्ति पर किया जाय । व्रत आदि आपका भी न सुनगा रण में।-साकेत, पृ० २१६ । २.. का उद्यापन । ७ सस्थान । ८. कोई व्यापारिक सस्था या खडन । ३ एक प्रकार का अर्थाल कार जिसमें किसी प्रसिद्ध सघटन । ६ दे० 'प्रतिष्ठानपुर'। निषेध या प्रतर का इस प्रकार उल्लेख किया जाय जिससे प्रतिष्ठानपुर-सा पुं० [म.] १ प्राचीन काल का एक नगर । उसका कुछ विशेष अथ निकले । जैसे, सिय फकरण को विशेप--यह नगर गगा यमुना के संगम पर वर्तमान झूसी छोरिबो धनुष तोरियो नाहिं'। यहाँ यह तो सिद् ही है नामक स्थान के पास पास था। पहले चद्रवशी राजा पुरूरवा कि धनुष तोड़ना और बात है, और फकरण खोलना और की राजधानी यही थी। यहाँ समुद्रगुप्त मौर हपंगुप्त ने बात । पर इस कथन से यहाँ यह तात्पर्य है कि पाप धनुष एक किला बनवाया था जिसका गिरा पहा अश अबतक तोड़ने में वीर हो सकते हैं, पर यह वीरता ककण खोलने वर्तमान है। में काम न यावेगी। २.गोदावरी के तट पर महाराष्ट्र देश का एक प्राचीन नगर प्रतिषेधक-सज्ञा पुं० [स] प्रतिपेघ करनेवाला । मान फरनेवाला । जो राजा शालिवाहन की राजधानी था। रोकनेवाला। प्रतिष्ठापत्र-सशा पुं० [स०] वह पत्र जो किसी की प्रतिष्ठा का प्रतिपेधन-सज्ञा पुं० [स] प्रतिषेध करने की क्रिया या सूचक हो । प्रतिष्ठा करने के लिये दिया जानेवाला पत्र । स्थिति (को०]। समानपत्र।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/४५१
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