पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/४३७

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गरमी। प्रणुत्त प्रतान प्रणुत्तर-वि० [सं०] १. भगाया या हटाया हुमा । २ निकाला प्रतित-सज्ञा स्री० [सं०] १. विस्तार । फैलाव । २. लता। हुआ । निष्कासित (को०) | वल्ली (को०)। प्रणुन्न-वि० [सं०] १ फेंका हमा। प्रेरित । २ प्रेषित । भेजा प्रतन-वि० [ 10 ] पुराना । प्राचीन | हुधा । ३. कापता या हिलता हुआ। ४. जो गति मे लाया प्रतना-मजा पी० [सं० पृतना ] चमू । वाहिनी । पृतना । 30- गया हो। ५. भगाया या हटाया हुआ [को०] । प्रतना ध्वजनी वाहिनी चमू वरूथिनि ऐन। -अनेकार्थ, प्रणेजन-ज्ञा पु० [सं०] १. स्नान करने का जल। नहाने का पृ० १०५ पानी । २ म्नान करना । नहाना। ३ धोना । पखारना । प्रत्तनु-वि० [सं०] १ क्षीण । दुबला। उ०-प्रतनु शरदिंदु वर, प्रक्षालन [को०] । पप जलविदु पर, स्वप्न जागृति सुघर । -परा, पृ० १२ । प्रणेता-सज्ञा पुं० [सं० प्रणेतृ ] [ सी० प्रयोत्री ] १ निर्माण करने २ बारीक । सूक्ष्म । ३ वहुत छोटा । अत्यल्प । ४. तुच्छ । वाला। बनानेवाला। कर्ता । २ रचयिता । लेखक । जैसे, प्रतप-सज्ञा पुं० [सं० ] सूर्य को गर्मी । सूर्य का ताप (को॰] । पुस्तकप्रणेता। ३ नेता । अगुणा (को०)। ४ किसी मत या प्रतपत्र-सा पु० [स०] मातपत्र । छाता । छत्र [को०] । वाद का प्रवर्तक (को०)। ५ वादक (को॰) । प्रतपन-सज्ञा पुं० [म०] १ तपाना । तप्त करना । २ उत्ताप । ताप । प्रणेय-वि० [स०] १ जिसके लौकिक सस्कार हो चुके हो । २ अधीन । वशवर्ती । ३ जिसका नेतृत्व या पथप्रदर्शन किया प्रतपना@-क्रि० प्र० स० प्रतपन] तपना । प्रभुत्व स्थापित होना । जाय (को०)। ४ करने योग्य । अवश्य स पन्न करने योग्य प्रातक फैलना। उ०-हह तर्ण तम्बत छत्रधारी। रायपाल (को०) । ५ ले जाने योग्य । जो ले जाया जाय । प्रापणोय प्रतपै रोसारी।-रा०६०, पृ० १३ । (को०)। प्रणोद-सज्ञा पुं० [ 0] १ प्रेरण । स चालन । निर्देशन । २ प्रतप्त-वि० [स०] १. तपाया हुमा। जो बहुत गरम किया गया प्रेषण । भेजना [को॰] । हो । २ पीडित । जो बहुत सताया गया हो [फा०] । प्रणोदिस--वि० [सं०] १ प्रेरित । प्रोत्साहित । २ निर्देशित । प्रतवव-सचा पु० [सं० प्रतिबिम्ब ] द० 'प्रतिबिंब'। उ०- ३ स चालित। उ०-वीर राजपूत योद्धानों की कहानियो तरणातप टाप बगवरय । प्रतवव चमकत पक्खरय ।-रा० से वह सदा प्रणोदित हुए हैं। -प्रेम और गोर्की, पृ० १०३ । रू०, पृ० ८१। प्रतग्यासमा सी० [सं० प्रतिज्ञा ] दे० 'प्रतिज्ञा'। उ०-श्री प्रतमक-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] एक प्रकार का दमा। महराज के काम चाहै प्रतग्या के निबाह । -रा० रू०, प्रतमाली-सशा मा० [देश॰] कटारी। (हि०) । पृ० १५०। प्रतर-सा पु० [ 10 ] पार करना । तरण करना (को०] । प्रतचाgt-सजा श्री० [ स० प्रत्यञ्चा] 'प्रत्यचा। उ० प्रतर्क-सजा पु० [सं०] १ तर्क । वाद विवाद । २ अनुमान । सोचना रहें खुली ही म्यान प्रतचे नहिं उतरें छन ।-भारतेंदु ५०, विचारना । ३ शोधना । खोजना । भा०१, पृ०५२४ । प्रतकण-सचा पुं० [सं०] १ वादविवाद करना। तर्क करना। २ प्रता-प्रव्य० [हिं० ] दे० 'प्रति' । उ०-श्री राजा धृतराष्ट सजे संदेह (को०) । ३ तक शास्त्र (को॰) । प्रत पूछत है। -पोद्दार अभि० ग्र०, पृ०४८३ । प्रतर्फना-सचा सी० [स० प्रतकरण] ऊहापोह । सशय । सदेह । तक । प्रतउत्तर-मज्ञा पुं॰ [ स० प्रति + उत्तर हिं० ] जवाव । प्रत्युत्तर। प्रतयं-वि० [सं०] तकनीय । तर्क करने योग्य । कल्पनीय (को०] । उ०-प्रतउत्तर कर जोर कहि सुनहु पगु महराज ।-५० प्रतदन-सचा पु० [सं०] १ काशी का एक प्रख्यात राजा। रासो, पृ० १७३। विशेष-यह राजा दिवोदास का पुत्र था और इसका विवाह प्रतक्ष-वि० [सं० प्रत्यक्ष ] दे० 'प्रत्यक्ष'। उ.-अमली समली मदालसा के साथ हुमा था। यह राजा रामचद्र जी के समय प्रारती, जाणि प्रतक्ष उगीयो पुर।-बी० रासो०, पृ० १९ । प्रतग्गूg+-सशा पुं० [हिं० ] दे० 'प्रतिज्ञा' । उ०—सूतर खडग्गू २ एक प्रचीन ऋषि का नाम । ३. विष्णु। ४ तादना । सार नग्गू जन प्रतग्गू राख ए।-राम० धर्म०, पृ०-२८१ । ताइन । ५ ताडना करनेवाला। प्रत्तच्छ+-वि० [सं० प्रत्यक्ष ] दे० 'प्रत्यक्ष'। उ०-जान्यौ नहि प्रवल-सझा पुं० [सं०] १ हाथ की हथेली। पजा। २ सप्त अधो- कहि तप किए इह फल होत प्रतच्छ ।-प्रज० ग्रं॰, पृ० ११७१ लोक मे से एक । पाताल के सातवें भाग का नाम । प्रतछिल+-वि० [स० प्रत्यक्ष ] दे० 'प्रत्यक्ष'। उ०-प्रतछि बिरह प्रतष-वि० [सं० प्रत्यक्ष ] दे० 'प्रत्यक्ष'। उ०-प्रण मजिया के सुनि अब लक्षिन । चकित होत वह बडे बिचच्छिन ।- भजिया तणी, दीखै प्रतप दुसाल । -रघु० ६०, पृ०४।। नद० ग्र०, पृ० १६२। प्रतान-सज्ञा पुं० [सं०] १. पपतानक नामक रोग जिसमें वार प्रतत-वि० [ स०] १ तना या फैला हुमा । विस्तृत । षबा चौड़ा। चार मूर्खा पाती है । २ एक प्राचीन ऋषि का नाम । ३ २.श्रावृत । ढका हुमा। बेल । लता । उ०-व्रतती विसनी वल्लरी बल्ली लता प्रतान । में था।