न 11 प्रकश प्रकाश प्रकश-सज्ञा पुं० [स०] १ कशाघात । कोहे से मारना । २. पीडा में उत्पन्न होती है और चारो मोर बढती है । जल में यदि देना । कष्ट पहुंचाना । ३ दे० 'प्रकशी' । पत्थर फेंका जाय तो जहाँ पत्थर गिरता है वहाँ जल मे क्षोभ प्रकशो-सज्ञा सी० [स० ] शूक नामक रोग जिसमें पुरुषो को उत्पन्न होता है, जिससे तरगें उठकर चारो ओर बढने लगती मूत्रंद्रिय सूज जाती है और जो इद्रिय को बढ़ानेवाली प्रोष है। ठीक इसी प्रकार ज्योतिष्मान पदार्थ द्वारा ईथर या धियो का प्रयोग करने से होता है । प्राकाशद्रव्य मे जो क्षोभ उत्पन्न होता है वह प्रकाश की तरगों के रूप में चलता है। यह प्राकाशद्रष्य विभु वा प्रकाढ'-सज्ञा पु० [ स० प्रकाण्ड ] १ स्कष । वृक्ष का तना। सर्वव्यापक पदार्थ है, जो जिस प्रकार ग्रहो और नक्षत्रो के २ शाखा। डाल । ३ वृक्ष । पेड । ४ चाह का ऊपरी बीच अतरिक्ष में सर्वत्र भरा है उसी प्रकार ठोस से ठोस भाग । बाँह का ऊपरी हिस्सा । वस्तुओं के परमाणुमो मौर अणुषों के बीच में भी । अत प्रकांड-वि० १ बहुत बडा । २ बहुत विस्तृत । ३. उत्तम । प्रकाश का वाहक यथार्थ मे यही आकाशद्रव्य समझा जाता उत्कृष्ट । प्रशस्त। है। प्रकाशतरगो की गति कल्पनातीत अधिक है। वे एक प्रकांडर-सज्ञा पुं॰ [ स० प्रकाण्डर ] वृक्ष । पेड [को०] । सेकह में १८६२७२ मील या ६३१३६ कोस के हिसाब से प्रकाम-सज्ञा पुं० [सं०] कामना । इच्छा। चलती हैं । प्रकाश की जो किरने निकलती हैं, यद्यपि वे सब प्रकाम-वि०१ यथेष्ट । यथेप्सित । काफी। पूरा। २ काम की सब एक ही गति से गमन करती हैं तथापि तरगो की लत वासनायुक्त । रसिक । कामुक [को०] । के कारण उनमें भेद होता है । तरगें भिन्न भिन्न लवाई की यौ०-प्रकामभुक् = इच्छानुकूल खानेवाला । यथेष्ट भोजन होती हैं। इससे किसी एक प्रकार की तरगो से बनी हुई करनेवाला। किरनें दूसरे प्रकार की तरगों से बनी हुई किरनो से । प्रकामाभिराम-वि० [सं० प्रकाम+ अभिराम ] अत्यत सुंदर। होती हैं । यही भेद रगों के भेद का कारण है । (दे० 'रग') अति मनोहर । उ०- पापफे 'प्रियप्रवास', 'चोखे चौपदे'- जैसे जिस तरग की लबाई ००००१६ इच होती है । रचनामो से प्रकामाभिराम पटुता तो प्रकट हो ही चुकी है। बैगनी रग देती है, जिसकी लबाई ००००२४ इच हत है वह लाल रग देती है। इसी प्रकार प्रनत भेद है, -रस क०, पु०३। से कुछ ही हमारी 'चक्षुरिद्रिय को ग्राह्य हैं । पहले प्रकाम्योद-सञ्ज्ञा पु० [ स०] एक वैदिक देवता । आदि पुराने तत्वविदों ने प्रकाश को कणिकामय वस्तु प्रकार'-सज्ञा पुं॰ [स०] १ भेद । किस्म । जैसे,—(क) मनुष्य फई रूप में माना था, पर पीछे वह विद्युच्चु वकीय तरगों प्रकार के होते हैं। (ख) चार प्रकार के फल । २. तरह । रूप का माना गया, परतु प्रकाश सबधी कुछ घटनाएँ। भांति । जैसे,—इस प्रकार यह काम न होगा। ३ विशेषता । हैं जिनका समाधान विद्युच्चु बकीय तरग सिद्धात वैशिष्टय । भेद (को०)। ४ सदृशता । समानता । बारबरी । नहीं हो सकता है । पत एक दूसरे सिद्धांत 'क्वाटम प्रकार-सज्ञा स्त्री॰ [सं० प्राकार ] चहार दीवारी। परकोटा । का सहारा लेना पड़ा है। इस सिद्धांत में एक नवीन न पोरा। जैसे,—(क) विशद राजमदिर मणिमडित मजुल की कणिका का प्रतिपादन हुपा है। इसे 'फोटॉन' । पाठ प्रकारा।-रघुराज (शब्द॰) । (ख) तीनि प्रकार प्रजा दिया गया है। यह कणिका द्रव्य नहीं है । यह पु जित निवसत चौथे मह रघुकुल वीरा । -रघुराज (शब्द॰) । है। प्रत्येक फोटॉन में ऊर्जा का परिमाण प्रकाशतरग प्रकारांतर-क्रि० वि० [ स० प्रकार + अन्तर ] भिन्न प्रकार से । श्रावृत्ति का अनुपाती होता है । इस फोटॉन सिद्घात से ७ दूसरी तरह से । अन्य रूप में । सभी घटनामो का पूरा पूरा समाधान हो जाता है प्रकारी-वि० [ स० प्रकार + हिं० ई (प्रत्य॰)] प्रकार का। विद्युच्च बकीय तरग सिद्धात से न हो सका था। दू किस्म का। प्रकारवाला। उ०-सु दर भोजन विविध शन्दो में न्यूटन द्वारा प्रतिपादित कणिका सिधात का प्रकारी।-नंद० ग्र०, पृ० २१३ । नवीन कणिकामय रूप है। प्रकाश-सज्ञा पुं० [स०] १ वह जिसके भीतर पडकर चीजें दिखाई २ विकाश । स्फुटन । विस्तार । अभिव्यक्ति । ३ प्रकटन पडती हैं। वह जिसके द्वारा वस्तुओं का रूप नेत्रो को गोचर प्रकट होना । गोचर होना । देखने में माना। ४ प्रति होता है। दीप्ति । प्राभा । आलोक । ज्योति । चमक । तेज । ख्याति । ५. स्पष्ट होना । खुलना । साफ समझ मे विशेष-वैज्ञानिको के अनुसार जिस प्रकार ताप (कष्मा) शक्ति ६ घोड़े की पीठ पर की चमक । ७ हास । हंसी- का एक रूप है उसी प्रकार प्रकाश भी। प्रकाश कोई द्रव्य ८ किसी प्रथ या पुस्तक का विभाग । ६ धूप । नही है जिसमे गुरुत्व हो। प्रकाश पड़ने पर भी किसी वस्तु १०.कास्य धासु (को०)। की उतनी ही तोल रहेगी जितनी अंधेरे में थी। प्रकाश के प्रकाश-वि०१ प्रकाशित । जगमगाता हुमा। दीप्त। २ विकत सवष में इघर वैज्ञानिको का यह सिद्धांत (विद्युच्च बकीय स्फुटित । ३. प्रकट । प्रत्यक्ष । गोचर । ४ प्रति सिद्धात) है कि प्रकाश एक प्रकार की तरगवत् गति है ख्यात । सर्वत्र जाना सुना हुपा । ५ स्पष्ट । समझ में जो किसी ज्योतिष्मान् पदार्थ के द्वारा ईथर या भाकाशद्रव्य हमा। 9 1
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/४२२
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