पोस्टबाक्स ३१२० पोहना पोस्टबाक्स-सज्ञा पुं० [अ० ] डाक रखने की पेटी। गफ रखने है और जो शोभा के लिये बगीचों में लगाया जाता है। का थैला। पूल के बीच में एक घुटी सी होती है जिसमें इघर उघर फी पोस्टबैग-सञ्ज्ञा पुं० [अ० ] दे० 'पोस्ट वाक्स' । किरनो के सिरों पर पुं० पराग होता है। पखडियो के झट्ट पोस्टमार्टम-सञ्ज्ञा पुं० [अ० पोस्टमारटम ] १ मृत्यु का कारण जाने पर घुडी बढ़कर होडे (डेढ ) के रूप में हो जाती है। प्रादि निश्चित करने के लिये मरने के बाद किसी प्राणी के इसी को पोस्ते का डोडा या ढेढ़ कहते है। शारीर की चीरफाड । २ वह परीक्षा जो किसी प्राणी की होटा तीन चार घ गुल का होता है । होहे के कुछ बढ जाने पर लाश को चीर फाडकर की जाय । उसमे लोहे की नहरनी से खडा चौरा या पांछ लगा देते हैं । पोस्टमास्टर- सज्ञा पुं॰ [10] डाकघर का सबसे बडा कर्मचारी । पछि लगने से उसमें से हलके गुलाबी रंग का दूध निकलता डाकघर का अधिकारी। है जो दूसरे दिन लाल रंग का होकर जम जाता है। यही पोस्टमैन-सज्ञा पुं० [40] डाकिया । इधर उधर चिट्ठी बाटने- जमा हुमा दूध अफीम है। एक ढोडे से तीन चार बार दूध पोंछकर निकाला जा सकता है। फूल को पखटियो को भी वाला । चिठ्ठीरसा। लोग मिट्टी के गरम तवे पर इकट्ठा करके गोल रोटी के रूप पोस्टर- सच्चा पुं० [अ० ] छपी हुई वडी नोटिस या विज्ञापन जो में जमाते है जिसे पत्तर कहते हैं । सुगे होही से राई के से दीवारों पर चिपकाया जाता है। प्लक। जैसे,-सेवा- सफेद सफेद बीज निकलते हैं जो पोस्ते के दाने कहलाते हैं समिति ने शरह भर में पोस्टर लगवा दिए थे जिसमें यात्रियो पौर खाए जाते है। पोस्ते को जाति के २५ या २६ पौधे को धूतों से सावधान रहने को कहा गया था। होते है । पर उनमे से मफोम नहीं निकलती। वे शोभा के क्रि० प्र०-चिपकना।-चिपकाना ।-निकालना ।-लगना। लिय बगीचो में लगाए जाते है। -लगाना। पोस्ती-सक्षा पुं० [फा०] १ वह जो नशे के लिये पोस्ते के टोडे पोस्टरइक-सज्ञा सी० [अ० ] एक प्रकार छापे स्याही जो को पीसकर पीता हो । उ०-पोस्ती पठे कुएं मे तो नहीं चैन लकड़ी के प्रक्षर छापने में काम आती है। है। २ पालसो प्रादमी। ३ गुडिया के प्राकार फा कागज पोस्टल-वि० [प] पोस्ट सवधी । डाक सबधी । का एक सिलोना जिसके पेदे में मिट्टी का ठोस गोल दिया पोस्टल आर्डर-सञ्ज्ञा पुं० [अ० ] डाकघर से मिलनेवाला निश्चित सा भरा रहता है। पेंदे से ऊपर की ओर यह गावदुम होता मूल्य का छपा हेपा प्रमाणपत्र या कागज जिसको किसी भी जाता है । यह सदा खडा ही रहता है, लेटाने से या कार से डाकखाने से भुनाया जा सकता है। गिरने से तुरत सडा हो जाता है। इसे गतवाला या खडे खा पोस्टल गाइह-सञ्ज्ञा पुं॰ [ 10 ] वह पुस्तक जिसमे डाक द्वारा भी कहते हैं। चिट्ठी, पारसल प्रादि भेजने के नियम पोर डाकघरो के नाम पोस्तीन-सशा पुं० [फा० ] १. गरम और मुलायम रोएवाले तमूर आदि रहते हैं। मादि कुछ जानवरो की खाल का बना हुपा पहरावा जिसे पोस्टेज-सज्ञा स्त्री० [अ० ] डाक द्वारा चिट्ठी, पारसल प्रादि भेजने पामोर, तुर्किस्तान, मध्य एशिया के लोग पहनते हैं । २ का महसूल । खाल का बना हुमा कोट जिसमें नीचे की ओर बाल होते पोस्त-सचा पुं० [फा०] १ छिलका । वक्कल । चकत्ता । २ खाल । हैं । उ.-सर्द मुल्कवाले सदा नी कपडे और पोस्तीनो में चमहा। ३ अफीम के पौधे का ढोंढ। ४. मफीम का पौधा। लिपटे रहते है।-शिवप्रसाद (शब्द०)। पोस्ता । पोहना-क्रि० स० [ स० प्रोत, प्रा० पोइ हिं. पोय+ना पोस्वा-सचा पुं० [फा० पोस्त ] एक पौधा जिसमें से अफीम (प्रत्य॰)] १ पिरौना । गूपना । उ०-(क) लटकन लटकि निकलती है। रहे मुख ऊपर पंचरग मणिगण पोहे री। मानहुँ गुरु शनि विशेष—यह पौधा दो ढाई हाथ ऊंचा होता है। पत्तियां मांग शुक्र एक ह लाल भाल पर तोहे री।-सुर (शन्द०)। या गांजे की पचियो की तरह कटावदार पर बहुत बड़ी और (ख) जुगुति वेधि पुनि पोहियहि रामचरित वर नाग । सुदर होती हैं। डठलों में रोइयाँ सी होती हैं । फागुन घेत पहिरहिं सज्जन विमल उर सोभा पति भनुराग ।-तुलसी में पौधा फूलने लगता है। पौधे के बीचोबीच से एक लबी (शब्द०)। २ छेदना । उ०-इक एक सिर सरनिकर छेदे पतली नाल (डठी ) ऊपर की ओर जाती है जिसके सिरे नभ उहत इमि सोहही। जनु कोवि दिनकर फरनिकर जहें पर चार पाँच पंखडियो का कटोरे के आकार का बहुत सु दर तह विघु तुद पोहही।—तुलसी (शब्द०)। ३ लगाना। गोल फूल लगता है। फारस और हिंदुस्तान मे जो पोस्ता पोतना । उ०-भरोसो कान्ह को है मोहिं । सुनहि जशोदा घोया जाता है उसका फूल भी सफेद पौर वीज के दाने भी कस तपति भय तू जनि व्याकुल होढ़ि। पहिले पूतना कपट सफेद होते हैं। पर रूम के राज्य में जो पोस्ता होता है रूप फरि प्राइ स्तनवि विष पोहि । वैसी प्रवल सुढे दिन उसके फूल प्याजी रग के और दाने काले होते हैं । बहुत बालक मारि दिखायो तोहि ।-सूर०,१०। २९७६ । ४. चटकीले लाल फूलवाले पौधे को ही 'गुलेलाला' कहते है जड़ना। घुसाना । घुसाना । जमाना। उ०-अव जानी जिसकी सुदरता का फारसी के कवियो ने इतना वर्णन किया पिय बात तुम्हारी। मो सो तुम मुख ही की मिलवत भावति
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/४११
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