पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/४१०

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पोषक ३११९ पोस्टपोन मानियों संतोष । -प्रियादास (शब्द०)। २ अभ्युदय । पोष्यवर्ग-सझा पुं० [स०] माता, पिता, गुरु आदि जिनका पालन उन्नति । ३ आधिक्य । वृद्धि । 'बढ़ती । ४ घन । ५ तुष्टि । करना कर्तव्य है। दे० 'पोष्य" । संतोष । उ०—तेहि को होइ नाद पं पोषा । तव परि हूँकै पोष्यसुत-सञ्ज्ञा पु० [ स०] दे० 'पोष्यपुत्र' [को० । होइ संतोषा। -जायसी (शब्द०)। (ख) कोऊ पावे भाव पोस--सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० पोप] पालने की कृतज्ञता। पालनेवाले के ले कोउ ले पावै प्रभाव । माधु दोऊ को पोष दै, भाव न साथ प्रेम या हेलमेल । जैसे,—कुत्ते बहुत पोस मानते हैं, गिनै प्रभाव । -कबीर (शब्द०)। तोते पोस नही मानते । २ तुष्टि । सतोष । उ०-कोक पावै पोषक-वि०, सज्ञा पु० [सं०] १ पालक । पालनेवाला । २. वर्धक । भाव ले, कोउ ले आवै प्रभाव । साधु दोऊ को पोस दै, भाव बढ़ानेवाला । ३ सहायक । न गिनै प्रभाव ।-कबीर (शब्द॰) । पोषण-सञ्ज्ञा पु० [सं०] [ वि० पोपित, पुष्ट, पोपणीय, पोप्य ] पोसा२-सञ्ज्ञा पु० [सं० पौप] पौष महीना। पूस का मास । उ०- १ पालन । २ वर्षन | बढती। ३ पुष्टि । ४ सहायता। देखी सखी हिव लागे छह पोस ।-बी० रासो, पृ० ६७ । जैसे, पृष्ठपोषण । पोस@3-वि० [ स० पुष्ट ] पुष्ट । श्रेष्ठ । उ०—-बरनत हैं उल्लास पोषध-सञ्चा पुं० [सं० उपवसथ>उपोपध> पोषध ] उपवासवत सो, सकल सुकवि मति पोस । -भूषण ग्र०, पृ० ६१ । (बीब )। पोसg४-सज्ञा पुं० [फा० पोश ] चादर । बिछावन । उ०-- पोषन-वि० [सं० पोपण] पोषण करनेवाला । उ०-पुस्टि म्रजाद लगी मिठाई रासि दुहूँ दिसि दीपक घरे कतारी।। भजन, रस, सेवा, निज जन पोषन भरन । -नद० ग्र०, पलंग पयफेनु मैनु सम पोस परयो रुचिकारी।-भारतेंदु ग्र० पृ० ३२६ । भा०२, पृ० ८५। पोषना-क्रि० स० [सं० पोषण ] पालना । पोषण करना। उ० पोसत-सक्षा पुं० [फा० पोस्त ] अफीम का ढोढ या डोडा (क ) का मैं कीन जो काया पोषी। दोष माँहि आपुनि पोस्त । उ०-पोसत माहिं भफोम है वृक्षन मैं मधु जानि निर्दोषी। —जायसी (शब्द०)। (ख ) माधव जू जो देह माहि यौं मातमा सु दर कहत बखानि ।-सु दर० प्र० जन ते विगरे । तउ कृपालु करुनामय केशव प्रभु नहि जीय भा०२, पु०७८१ । घरै। जैसे जननि जठर अतरगत सूत अपराध करे। तोऊ पोसती-वि० [फा० पोस्ती ] अफीमची । दे० 'पोस्ती'। उ. जतन करे अरु पोसै निकसै न क भरे। -सूर०, १११७ । जैसे काहू पोसती की पाग परी भूमि पर, हाथ लै के कहै ५. (ग) राम सुप्रेमहि पोषत पानी । हरत सकल कलिकलुष पाग मैं तो पाई हो ।-सु दर० स०, भा० २, पृ० ५८३ । गलानी। --तुलसी (शब्द०)। (घ ) अजमेर चित्तोड जु बोलि विप्र पोष्या जाचक सतोख्या। -ह. रासो, पृ०३३ । पोसन-सञ्चा पुं० [सं० पोषण ] पालन । रक्षा । उ०- मयुर पोषयिता-वि० [ स० पोपयितृ ] दे० 'पोपिता' । हूँ तें गए, सखी री! अब हरि काले कोसन । यह है पति मेरे जिय, यह छाँहन वह पोसन ।—सूर (शब्द०) पोषयितु-शा पुं० [सं०] कोकिल । कोयल [को०] । पोसना-क्रि० स० [सं० पोपण] १ पालना । रक्षा करना। उ पोषर-सच्चा पुं० [सं० पुष्कर ] दे० 'पोखर' । उ०-होलत विपुल विहग बन, पियत पोषरनि बारि। -तुलसी ग्र०, राम सुस्वामि कुसेवक मो सो। निज दिसि देखि ८ निषि पोसो। —तुलसी (शब्द०)। २ (पशु को) ह' पृ० १०६. प्रादि देकर अपनी रक्षा में रखना । दाना पानी देकर रखना पोषित-वि० [सं०] पाला हुमा। जैसे, कुत्ता पोसना | ३ प्रावृत करना। पाच्छादित करना पोषिता-वि०, सञ्चा पुं० [स० पोपितृ ] पोषक । पोषण प्रदान ४ पोंछना। करनेवाला । भरणपोषण करनेवाला [को०] । पोसपोन-वि० [अ० पोस्टपोन ] दे० 'पोस्टपोन' । पोषी-वि० [सं० पोपिन् ] पोषक । पालक । भरणपोषण करने- वाला (को०] । पोसाख- सज्ञा स्त्री॰ [हिं० ] दे० 'पोशाक' । उ० प पोष्टा'-वि० [सं० पोट्ट ] पालनेवाला। दीठा फुरे, मत हिय माहिं पयट्ठ। पुरुप तणी पोसाख क बाई माण बयछु ।-वाँकी०प्र०, भा॰ २, पृ०२०। पोष्टा-सक्षा ० कजा । करज । पोस्ट-सचा स्त्री॰ [म.] १ जगह । स्थान । २ पद । ३ नक पोष्य'-वि० [सं०] पालने योग्य । पालनीय । जिसका पालन ४ हाकखाना। ५ स्तभ । पोषण कर्तव्य हो। नोस्टआफिस-सझा पु० [१०] डाकघर । डाकखाना । विशेष-माता, पिता, गुरु, पत्नी, सतान, अभ्यागत, शरणागत पोस्टकार्ड-पक्ष पुं० [भ] एक मोटे कागज का टुकडा जस इत्यादि पोष्य वर्ग में हैं। पोष्य-सचा पुं० भृत्य । नौकर । दास । पत्र लिखकर खुला भेजते हैं । पोस्टपोन-वि० [अ० पोस्टपोन ] जो कुछ समय के लिये र पोष्यपुत्र-सच्चा पुं० [सं०] १. बालक । पुत्र के समान पाला हुमा दिया जाय । जिसका समय बढ़ा दिया जाय । मुलता लरका । २ दत्तक पुत्र । स्थगित । जैसे,-मामला पोस्टपोन हो गया। पर