पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/४०९

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पोल पोष फाटक । प्रवेशद्वार । दरवाजा । उ०—(क) पोल जड़े रवि पोलिंद-सज्ञा पुं० [सं० पोलिन्द] जहाज का मस्तूल (को०। पेखतां घोख चढ़िया दीह । मिट न फदल जोधपुर बीयाँ घटे पोलिंग बूथ-सज्ञा पुं॰ [ अ.] वह स्थान जहाँ कौंसिल मादि के न बीह ।-रा० रू०, पृ० २५७ । (ख) रावली पोले प्राविया निर्वाचन या चुनाव के मवसर पर वोट लिए जाते हैं। -बी० रासो, पृ०६१।२ प्रांगन । सहन । मतदानकक्ष। पोल-सज्ञा पुं० [१०] १ लकही या लोहे भादि का बडा लट्ठा पोलिग स्टेशन-सज्ञा पुं० [अ० ] वह स्थान जहाँ पोसिल या या खभा । २ जमीन की एक नाप जो ५ गज की होती है । म्युनिसिपल निर्वाचन के अवसर पर लोगो के वोट लिए ३ वह ५।। गज की जरीव जिससे जमीन नापते है । ४ ध्रुव । और दर्ज किए जाते हैं। मतदान केंद्र। पोलो-सज्ञा सी० [सं० पर्व] दे० 'पोरे'। उ०-पोल पोल अगरा जग लूटी।-प्राण, पृ० ३३० । पोलिका-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] फुलका । रोट । पूरी [को०] । पोलक-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० पूना ] लवे बांस के छोरे पर चरखी में पोलिटिकल-वि० [0] गज्यप्रवध सवधी। शासन सर्वधी। बंधा हुआ पयाल किसे लुक की तरह जलाकर विगहे हाथी राजनीतिक । जैसे, पोलिटिकल काम, पोलिटिकल पाल । को डराते हैं। पोलच-सज्ञा पुं० [हिं० पोल ] १ वह परती भूमि जो पिछले वर्ष पोलिटिकल एजेंट-सशा पुं० [अ० ] वह राजपुरुष जो दूसरे राज्य में अपने राज्य की ओर से उसके स्वत्व और घ्यापारादि की रबी बोने के पहले जोती गई हो। जौनाल । २ वह कसर रक्षा के लिये रहता है । राजप्रतिनिधि । या वजर भूमि जिसे जुते या टूटे तीन वर्ष हो गए हो पोलिया'-मशा सी० [हिं० पोला ] एक पोला गहना जिसे स्त्रियां पोलचा-सचा पुं० [हिं० पोल ] दे० 'पोलच' । पैरो में पहनती हैं। पोला'- वि० [हिं० फूलना या म० पोल ( = फुलका ) ] [ पी० पोलिया -गज्ञा पुं॰ [हिं० पौर, राज० पोल ] दे० 'पौरिया' । पोली]१ जो भीतर से न हो। जिसके भीतर खाली जगह हो । जो ठोस न हो। खोखला। जैसे, पोला बाम, पोलिश-वि० [S ] पोलंड मे सबपित । पोलैंड का। पोली नली। २. प्रत सारशून्य । नि सार | तत्वहीन । पोली'--सक्षा सी० [देश॰] जगली कुसुम या वरें जिसका तेल सुवख । उ०-है प्रभु मेरो ही सब दोस । वेष वचन विराग, अफरीदी मोमजामा बनाने के काम में पाता है। मन अघ पौगुनन को कोस । राम प्रीति प्रतीति पोलो कपट करतब ठोस ।—तुलसी (शब्द०)। ३. जो भीतर से कडा पोलो-सज्ञा पुं० [अ० ] चौगान की तरह का एक अंगरेजी खेल जो पोली-सपा सी० [सं०] एक प्रकार की पूरी । पूपा । फुलका [को०] । न हो । जो दाब पड़ने से नीचे फंस जाय । पुलपुला । उ०- घोडे पर चढ़कर खेला जाता है। पर हाथी बुद्धिमान होते हैं, बहुधा पोला स्थान देखकर चलते हैं। शिवप्रसाद (शब्द॰) । पोवना-क्रि० स० [हिं० पोहना ] दे० 'पोना'। उ०-पहने पोला-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० पूला ] १ सूत का लच्छा जो परेती पर हग कोरनि डोगनि में मन को मनुका मनु पोवतु है । - लपेटने से बन जाता है । २ गट्ठर । पूला । उ०-तव राजा अनुगग वाग (शब्द॰) । और रानी दोनो नगे पांव होकर घास का पोला अपने पोश-प्रत्य० [फा० ] ढकनेवाला । छिपानेवाला जैसे, ऐबपोश । सिर पर धरकर एक मंगौछी अपने अपने गले में डाले पाकर पोशाक-मा पी० [फा०] पहनने के कपडे। वस्त्र । परिधान । सत्य गुरु के चरणों पर गिरे । —कबीर म०, पृ० ५०६ । पहनावा । २०-कीन्हे हैं पोशाक कारी, मंग राग कज्जल पोला-सज्ञा पुं॰ [ देश० ] एक छोटा पेड जो मध्यप्रदेश में बहुत को, लोहे के विभूषण, त्यो दूषण हथ्यार हैं। -रघुराज होता है। (शब्द०)। विशेष-इसको लकही भीतर से बहुत सफेद और नरम निकलती मुहा०-पोशाक पढ़ाना = कपडे उतारना । है जिससे उसपर खुदाई का काम बहुत अच्छा होता है । वजन विशेप-यह शन्द फारस से नहीं पाया है, यहीं हिंदुस्तान में मे भी यह भारी होती है । हल प्रादि खेती के सामान भी उससे बना है। बनाए जाते हैं । इसकी भीतरी छाल में रेशे होते हैं जो रस्सी बनाने के काम पाते हैं । पेस बरसात में बीजों से उगता है। पोशाको-सशा पुं० [फा०] १. एक कपहा जो गाढ़े से बारीक और तनजेब से मोटा होता है। २ भच्छा कपहा । पोशाक । पोलाद-तज्ञा पुं० [फा० फौलाद ] दे॰ 'फौलाद' । पोलारी-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० पोल ] छेनी के प्राकार का एक छोटा पोशिश-सज्ञा ग्नी० [ फा०] लिबास । कपडा । पहनावा । ३० - प्रौजार जिससे सोनार खोरिया, कगन, घुघरूमादि के दानो जिसे तूने अजर जामा पिन्हाना। हवस उसको न पोशिश परनियाँ पर। -कबीर म०, पृ४४४ । को फिरफिरे में रखकर खलते हैं। यह तीन चार घ गुल फा होता है और इसकी नोक पर छोटा सा गोल दाना बना पोशीदगी-संज्ञा स्त्री० [फा०] गुप्ति । छिपाव । रहता है। पोशीदा-वि० [फा० पोशीद ] गुप्त । छिपा हुमा । पोलाव-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० पुलाव ] दे० 'पुलाव' । उ०-फलिया पोष-सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ पोषण । पुष्टि । उ.-पादप ये इदि नान पोलाव पेट भरि खाय के।-पलटु०, पृ०६७ । सीचते, पावै मंग मंग पोष । पूरवजा ज्यो वरणते सब