पोती पोपलाना पेंदी पर इसलिये चढाया जाता है जिसमें अधिक पांच न महा० -पोदमा सा=बहुत छोटा सा । जरा सा। लगे । २ पानी का वह पुतारा जो मद्य चुवाते समय बरतन' पोदीना-सज्ञा पु० [फा० पोदीनह ] दे० 'पुदीना' । पर फेरा जाता है। इससे भभके से उठी हुई भाप उस वरतन पोद्दार'-सज्ञा पुं० [सं० पोत, हिं० पोद +दार ] १ यह मनुष्य जो में जाकर ठढी हो जाती है और मद्य के रूप में टपकती है। गांजे की जातियां उसके स्त्री० और पु० भेद तथा खेती के ३ पुतारा देने की क्रिया । ढग जानता हो। पोत्तो-सज्ञा स्त्री० [ देशी ] शीशा (को० । पोद्दार-नौ० पु० [फा० फोतदार, हिं० पोतदार ] १ दे० 'पोत- पोत्या-सशा स्त्री० [सं०] नावो का समूह [को०] । दार।' २ मारवाडी वैश्यों का एक वर्ग। पोत्र-संज्ञा पुं० [ स०] १ सूपर का खाँग । २ वच। ३. एक पोना-क्रि० स० [सं० पूप, हिं० पूवा+ना (प्रत्य०) ] गीले पाटे यज्ञपात्र जो पोता नामक याजक के पास रहता है । ४ नाव । की लोई को हाथ से दवा दवाकर घुमाते हुए रोटी के प्राकार पोत । ५ नांव का डाँड । ६ हल की नोक या फाल (को०)। मे बढ़ाना । गीले प्राटे की चपाती गढ़ना । जैसे, प्राटा पोना, ७ वस्त्रखंड । कपडा । वस्त्र (को०) । रोटी पोना। २ रोटी पकाना। उ०—(क) तुमहिं प्रवै पोत्र-सज्ञा पुं० [हिं०] [स्त्री० पोत्री, पोती] दे० 'पौत्र' । उ०-पुत्र जेईय घर पोई। कमल न भेंटहिं, मेंटहिं कोई ।-जायसी घने पौत्रे बहुत अरु दिसै सपरवार । -प्राण०, पृ० २४७ । (गन्द०)। (ख) सूर मांखि मजीठ कीनी निपट कांची पोय । पोत्रायुध-सज्ञा पुं॰ [ सं०] सूपर । -सूर (शब्द०)। पोत्री-सज्ञा पु० [सं० पोनिन् ] सूपर । पोना-क्रि० स० [सं० पोत, प्रा० पोइन हिं. पोय+ना (प्रत्य॰)] पोथ-सज्ञा पुं० [सं०] प्राघात । प्रहार (को०] । पिरोना । गूथना । पोहना । उ०—(क) हरि मोतियन की पोथकी-सज्ञा सी० [सं० ] एक नेत्ररोग जिसमें माख में खुजली माल है पोई काँचे धाग। जतन करो झटका घना ट्टे की कई और पीडा होती है, पानी बहता है और सरसो के बराबर लाग ।-कबीर (शब्द०)। (ल) कंचन को कठुला मनि छोटी छोटी लाल लाल फुसियाँ निकल पाती हैं । मोतिनि विच वधनहें रह्यो पोइ (रो)। देखत वन, कहत पोथा-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं० पुस्तक, प्रा० पुत्थय, पोत्थय हिं० पोथी ] १. नहिं आवै उपमा कौं नहिं कोह (री)।-सूर०, १०।१४८ । कागजों की गड्डी । २ वही पोथी। बडी पुस्तक ( व्यग या (ग) दिनकर कुज मनि निहारि प्रेम मगन प्राम नारि विनोद ) । जैसे,—तुम इतना बडा पोथा लिए क्या फिरते परसपर कहें सखि मनुराग ताग पोऊ । तुलसी यह ध्यान हो। सुधन जा दिन मानि लाभ सघन कृपन ज्यों सनेह सोहिए सुमेह पोथिया'-पञ्चा पु० [ मं० पोतिया ] दे० 'पोतिया' । जोऊ ।-तुलसी (शब्द०)। पोथिया-सहा सी० [स० पुस्तिका, प्रा० पोत्थिश्रा, पोथिया ] दे० पोना-सञ्ज्ञा पुं॰ [हिं०] दे० 'पौना' । पोप-सञ्ज्ञा पुं० [.ईसाइयों के कैथलिक संप्रदाय का प्रधान पोथी'-मन्ना स्त्री॰ [सं० पुस्तिका, प्रा० पोत्थिया ] पुस्तक | उ०- पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुमा पडित भया न कोइ। एकै प्रक्षर धर्मगुरु । विशेष-इसका प्रधान स्थान यूरोप मे इटली राज्य का रोम प्रेम का पद सो पडित होइ। -कवीर (शब्द०)। नगर है। चौदहवी शताब्दी तक ससार के सभी ईसाई यौ०-पोथीखाना= ग्रथागार । पुस्तकालय । जिस स्थान पर धर्मावलंबी राज्यों पर पोप का वड़ा प्रभाव था। पद्रहवी सिर्फ कितावें रखी जायें। उ०-बही कठिनाइयो के बाद शतान्दी में लूथर नामक एक नए संप्रदायस्थापक की शिक्षा राज्य पुस्तकालय के पोथीखाना में सूरसागर की एक प्रति दो खडों में मिली-पोद्दार मभि० ग्र०, पृ० १२० । पोथी से पोप का अधिकार घटने लगा, पर पुराने कैपलिक सप्रदाय के माननेवालो में पोप का अभी वैसा ही पादर है। उनका परित= ऐसा पठित व्यक्ति जिसे केवल पुस्तकीय ज्ञान हो, अभिषेक आदि उसी प्रकार किया जाता है जैसे महाराजापो व्यावहारिक ज्ञान न हो। उ०-पुराने प्राचार्यों से इस प्रकार का होता है। का विनोद कोई बडा उस्ताद ही कर सकता था, निरा पोथीपडित कभी ऐसा करने की हिम्मत न करता -भा० यौ०-पोपलीला-धामिक पाहबर । झूठा प्रदर्शन । ढोंग । इ० रू०, पृ०६८८। पोपला-वि० [हिं० पुलपुजा ] [वि॰ स्त्री० पोपली ] १ जो पोथी--सज्ञा सी० [हिं० पोट ( = गट्ठा) ] लहसुन की गाँठ। भीतर के भराव के कम होने या न रहने के कारण पचक गया पोदा-सदा मी० [हिं० ] दे० 'पौद"। 30-इसकी पोद थोडे दिन हो । पचका और सुकड़ा हुमा। २ बिना दाँत का । जिसमे पहले एक मनोहर वाग से उखाडकर सूरत में लगाई गई दाँत न हो। जैसे, बुद ढी का पोपला मुह । ३ जिसके मुह से दाँत न हों। जैसे पोपला बुड्ढा । थी।-श्रीनिवास ग्र०, पृ० १२ । पोदना-सशा पुं० [मनु० फुदकना ] १ छोटी चिडिया। उ० पोपलाना-क्रि० स० [हिं० पोपमा+ना (प्रत्य॰)] पोपला होना। कुछ लाल चिठे पोदने पिछे ही न खुश थे। पिदड़ी भी सम- उ०हाढी नाक याक मा मिलगै विना दांत मुह प्रस झती थी उसे माख का तारा ।-नजीर (शब्द॰) । २ छोटे पोपलान । डाढिहि पर बहि बहि प्रावति है कवौं तमाकू डील डोल का पुरुष । नाटा प्रादमी। ठिगना प्रादमी। जो फांकन ।-प्रताप (गन्द०)। 'पोथी'।
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