पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/४०६

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पोती पोतदार यौ०-पोतहों के रईस = खानदानी अमीर । पोता--सच्चा पुं० [फा० फोतह ] १ पोत । लगान । भूमिकर । २ प्रडकोष । पोतदार-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० पोत+दार ] १ वह पुरुष जिसके पास लगान कर का रुपया रखा जाय । खजानची। २ पारखी। पोता-मज्ञा पुं० [हिं० ] कलेजा । साहस । पित्ता । दे० 'पोटा'२ । वह पुरुष जो खजाने में रुपया परखने का काम करता हो । उ०-क्यों घरते घर धीर सवे भट होत कछू बल काहू के पोते ।-हनुमान (शब्द०)। -पोतघारी-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० पोतधारिन् ] जहाज का मालिक (को०] । पोवन'-तज्ञा पुं० [सं०] पवित्र । स्वच्छ । शुद्ध । पोवा-सज्ञा पुं॰ [हिं० पोतना] १ पोतने का कपड़ा। कूची जिससे घरो में चूना फेरा जाता है। २ धुली हुई मिट्टी पोतन-वि० पवित्र करनेवाला । जिसका लेप दीवार प्रादि पर करते हैं। पोतनहरी-मञ्चा स्त्री० [ पोतन+हर ( प्रत्य०)] १. वह बरतन जिसमें घर पोतने के लिये मिट्टी घोलकर रखी हो । २ वह मुहा०-पोता फेरना=(१) दीवार आदि पर चूने मिट्टी प्रादि का लेप करके सफाई करना । (२) चौका लगाना। स्त्री जो घर पोते या घर पोतने का काम करती हो। चौपट करना। (३) सफाई कर देना। सब कुछ लूट पोतनहर--सचा स्त्री० [सं० पोत+नाल ] प्रांत । अतड़ी। ले जाना। पोतना-क्रि० स० [सं० प्लुत, प्रा० पुत्त+हिं० ना (प्रत्य०) मथवा ३ मिट्टी के लेप पर गीले कपडे का पुचारा जो भवके से अर्फ स० पोतन ( = पवित्र)J१ किमी गीले पदार्थ को दूसरे पदार्थ उतारने में बरतन के ऊपर दिया जाता है। उ०-नैन नीर पर फैलाकर लगाना। गीली तह चढ़ाना। चुपहना। जैसे, सो पोता किया। तस मद चुवा बरा जस दिया ।—जायसी रोगन पोतना, तेल पोतना, चूना पोतना । संयोक्रि०-देना। लेना। प्र०, पृ०६५। २ किसी गोले या सूखे पदार्थ को किसी वस्तु पर ऐसा लगाना पोता-सचा पुं० [सं० पोत ] १५ या १६ अ गुन लबी एक की मछली जो हिंदुस्तान की प्राय सब नदियो में मिलती है। कि वह उसपर जम जाय । जैसे, कालिख पोतना, प्रबीर पोतना, मिट्टी पोतना, धूल पोतना, रग पोतना । पोताई- सञ्चा स्त्री॰ [हिं० पोतना ] दे० 'पुताई' । सयो क्रि०-देना ।-लेना। पोताच्छादन-सचा पुं० [सं०] तबू । छोलदारी । हेरा। ३ किसी स्थान को मिट्टी, गोबर, चूने प्रादि से लीपना । चूने पोताधान-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] छाँवर । मछलियों के बच्चों का समूह । मिट्टी, गोबर प्रादि का गोला लेप चढाकर किसी स्थान को पोताध्यक्ष-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पोत+अध्यक्ष ] जहाज का स्वामी स्वच्छ करना । जैसे, घर पोतना, प्रांगन पोतना। उ०- १०-किसके लिये ? पोताध्यक्ष मणिभद्र अतल जल ( क ) सोमरूप भल भयो पसारा। धवलसिरी पोतहि होगा नायक । अब इस नौका का स्वामी मैं हूँ।-पाकाश. घर बारा ।—जायसी ( पाब्द०) । (ख) पोता मॅडप अगर पृ०३। प्रो चदन । देव भरा भरगज भी बदन ।-जायसी (शब्द०)। पोतारनाg -क्रि० स० [सं० प्रोत्साहन ] उत्साहित करना सयो० कि०-ढालना ।—देना ।-लेना। प्रोत्साहन देना । उ०-उण बेला उदाहरे, तोले पोतना-सञ्ज्ञा पुं० वह कपड़ा जिससे कोई चीज पोती जाय । पोतने प्रहास । रजपूता पोतारियाँ, मुज धारियाँ प्रकास । --रा का कपडा । पोता। रू०, पृ० २४३ । पोतरी-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'पोत्री'। उ०—परबस मेरी पोतरी, पोतारा-सा पुं० [हिं० पोतना ] दे० 'पुतारा' । मै सिरजोर निदान ।-रा० रू०, पृ० ३३२ । पोवारी-सच्चा स्त्री॰ [हिं• पुतारा ] पोतने का कपड़ा। पोतला-सज्ञा पुं० [हिं० पोतना ] परांठा । तवे पर घो पोतकर पोतास-सचा पुं० [सं० ] एक प्रकार का कपूर । वरास । भीमसे सेंकी हुई चपाती। पोतवाणिक-सज्ञा पुं० [ म० पोतवाणिज्] वह व्यापारी जो समुद्र पोतीg-सज्ञा स्त्री० [हिं० ] ० 'पोत ' । ३०-गर पोति ज कपूर । विशेष-दे० 'कपूर' । से व्यापार करता हो (को०)। विचारि, 'ससि चरन फदय डारि । -पृ० रा०, १४१५० पोववाह-सचा सक्षा पुं० [स०] नाविक । नाव चलानेवाला [को०] । पोतिका-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] १ पोई की वेल । २ वस्त्र । ७ पोतवाहिनी-सच्चा स्त्री० [सं० पोत+चाहिनी ] जहाजों का वेष्ठा । पोतिया-सज्ञा पुं॰ [स० पोत ] १ वह कपडे का टुकडा जिसे स उ०-चलोगी चंपा, पोतवाहिनी पर असंख्य धनराशि लादकर पहनते हैं या जिसे पहनकर लोग नहाते हैं। २ वह छो राजरानी सी जन्मभूमि के पक में ?--भाका०, पृ०१४ । थैमी जिसे लोग पास में लिए रहते और जिसमें चूना, तथा पोता'-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० पौत्र,+प्रा० पोत्त ] बेटे का बेटा। पुत्र का सुपारी प्रारि रखते हैं । छोटा घटुमा । पुत्र । 30-तुम्हारे पोते से हमारी पोती का ब्याह होय तो बडा मानद है। लल्लू (शब्द०)। पोतिया -सज्ञा पुं० [] एक प्रकार का खिलौना। पोता-सशा पुं० [सं० पोतृ>पोता] १ यज्ञ में सोलह प्रधान पोती-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० पोता ] पुत्र की पुत्री। बेटे की बेटी। ऋत्वजो में से एक । २. पवित्र वायु । वायु । ३. विष्णु । पोती-सशा स्त्री० [हिं० पोतना ] १ मिट्टी का लेप जो हँडिया