पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/४०२

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पोछना पसिंजर गाड़ी पैसिंजर गाड़ी-संज्ञा स्त्री० [अ० पैसिंजर + हि० गाढ़ी ] मुसाफिरो [रली. अल्पा० पांगी ] १ वास की नली । बांस का पौसला को ले जानेवाली रेलगाडी। यात्री गाडी। पोर । २ टीन मावि की बनी हुई लवी खोखली नली जिसमे फागज पत्र रखते हैं । घोगा 1 ३ पांव की नली। पैसेवाला-मज्ञा पुं० [हिं० पैसा+वाना ( प्रत्य०) ] ! धनवान । मालदार । पनी । २. सराफ। ३ पैमा वेचने- पौगा-वि० १ पोला। २ मूसं। बुद्धिहीन । प्रहगया। उ० वाला । व? पर रेजगी देनेवाला । वट्ट वाला। विमला ने कहा 'हँसी नही' मैं उस ग्राह्मण को पतियाती हैं वह तो पोगा ही है-किंतु वह जाय या न जाय ।---गदाधर पहचानना-त्रि० स० [हिं० पहचानना ] दे० 'पहचानना' । सिंह (शब्द०)। उ०-उपजी प्रोति काम अंतर गत, तव नागर नागरि पहचानी। -पोद्दार पभि० ग्र०, पृ० २३५ । पोंगापंथी'-मुशा सी० [हि० पोगा+मं० पंधी ] मूपों का कार्य पहचाना, पहच्वाना:-क्रि० स० [प्रा०, अप० पहुंच ] ३० मूर्खतापूर्ण कार्य। 'पहुंचाना' । उ०--(क) पयो एक संदेसडउ ढोलइ लग पोंगापंथी-वि० मूर्खतापूर्ण कार्य करनेवाला । पहचाइ । -ढोला०, दू० १२३ । (ख) लग ढोलइ पहच्चाई। पाँगी-सजा सी० [हिं० पांगा+ई (प्रत्य॰)] छोटो पोली नली -ढोला०, दू० १२८ । २ नरकुल की एक नली जिसपर जुलाहे तागा लपेटक पैहम-क्रि० वि० [फा०] अनवरत । लगातार । निरंतर । ताना या भरनी करते हैं। ३ चार या पांच मगुली वां बराबर । उ०—कि चश्मे सू ची से लक्ष्ते दिल पहम की पोली नली जो बांस के बीजने की डांटी में लगी हो निकलते हैं। -भारतेंदु प्र०, भा०२, पृ० ८४८ । है। होकनेवाले इसे पकड़कर बीजने को घुमाते हैं। ४ तुम बजाने की तुमड़ी। ५ ऊँख या वास मादि मे दो गाँठो पेहरनाल-क्रि० स० [हिं० पहिरना ] दे० 'पहनना' । उ०- वीच का प्रदेश या भाग। पहर न पाछी चूनही । -बी० रासो, पृ० ५५ । पाँचना-क्रि० प्र० [प्रा० अप० पहुच्च] दे० 'पहुँचना' । उ० पैहरा-सञ्ज्ञा पुं॰ [देश॰] कपास के खेत में रूई इकट्ठी करनेवाला । अर्जी लिखी फौजदार ले पोंचे जिलिवदार, जाके - पैकर । बनिया । दरवार घोपदार के कहिने ।-दक्खिनी०' पृ० ४६ । पैहरावना -क्रि० स० [हिं० पहिराना ] है, 'पहनाना' । उ०- लेत बलाइ भाइ नव उपजत रीझि रसाल माल पहरावत । पॉछा-सज्ञा स्त्री॰ [ स० पुच्छ ] दे० 'पूछ' । -पोद्दार अभि० म०, पृ० ३६१ । पाँछन-सच्चा पुं० [हिं० पॉछना ] किसी लगी हुई वस्तु का वह व मश जो पोछने से निकले । पैदारी-वि० [सं० पयस + थाहारी ] केवल दूध पीकर रहनेवाला ( साधु)। पालना-क्रि० स० [सं० प्रोन्छन, प्रा० पाछन] लगी हुई गोली को जोर से हाथ या कपड़ा भादि से फेरकर उठाना या हटन पैहेरना-क्रि० स० [हिं० पहिरना ] दे० 'पहनना'। उ०-सोधे म्हाइ बैठी पहेरि पट सु दर, जहाँ फुलवारी तहँ सुखवत काखना । जैसे, पांख से मांसू पोछना, कागज पर पड़ी ५ अलक । -पोद्दार भभि० प्र०, पृ० १९२१ । पोछना, कटोरे में लगा हुआ घी पोंछकर खा जाना, नहाने पौ-सपा सी० [ अनु० ] १ लवी नाल या भोपे को फूकने से वाद गीला बदन पोछना । उ०—(क) सुनि के उतर म निकला हुमा शब्द । २ लबी नाल के आकार का एक वाजा पुनि पोंछे। कौन पंख वांधा बुषि प्रोछे।-जा जिसमें फूंकने से 'पों' शब्द निकलता है । भोपा । ३. मधोवायु (शब्द॰) । (ख) पोंछि डारे मजन मंगोछि डारे प्रगर दूर कीने भूपण, उतारि मंग अंग ते ।-रघुनाथ (शब्द०) निकलने का शब्द। २ पड़ी हुई गर्द, मैल आदि को हाथ या पता जोर मुहा०-पों पोलना%3 (१) हार मानना । पककर बैठ रहना। फेरकर दूर करना। रगडकर साफ करना । जैसे,- (२) दीवाला निकलना । पुरख हो जाना। पर गर्द पडी है पोंछ दो। पर पोंछकर तब फर्श पर । पकिना-क्रि० प्र० [पो से अनु०] १ पतला पाखाना करना। उ.--पानह विधि तन पवि स्वच्छ रायिवे काज । २ पत्यंत भयभीत होना । बहुत डरना। पग पोछन को फिए भूसन पायदाज ।-विहारी (गन्द०) पौफना-सज्ञा पुं० चौपायो को पतला दस्त होने का रोग। संयो० कि०-दालना-देना।-लेना। पॉकना-वि० १. पोषनेवाला। पतला मल करनेवाला । बार बार यो०-झाडू पोछ। पतला मल करनेवाला । २ भयालु । डरपोक । विशेष-जो वस्तु सगी या पड़ी हो तथा जिसपर कोई 4 पौका-सज्ञा पुं॰ [देश॰] वडा फतिंगा जो पौधो पर उडता फिरता सगी या पडी हो, अर्थात् माघार मौर माप दोनों इस कि है। चोका। के कर्म होते हैं । जैसे, कटोरा पोछना, पैर में लगी गदं पो.. पौगरा-सझा पुं० [मे० पृथुक ] वालक । शिशु । वच्चा। फटोरे में सगा पो पोंछना, पैर पोदना । मटके से माफ पोंगली-सया पी० [हिं० पोंगा] १ ३० 'पोगो' । २ वह नरिया को माडना भोर रगहार साफ करने को पोंछना कहते हैं जो दोबारा चाक पर से बनाकर उतारी गई हो (कुम्हार) । पॉछनार-पका . [ प्रो० पोपनी ] पोछने का कपड़ा। यह र पाँगा'-समा पुं० [सं० पुटक (-खोखला परतन ) ] जो पोपने के लिये हो।