पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३९६

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५१०५ पैगाम उ०-होते जौ न, शभु रानी | पद वरदानी तेरे तो पै कौन पैकाँ-सज्ञा पुं० [फा०] तीर का नोक । बाण की अनी । उ०- सुनतो कहानी दीनजन की।-चरणचद्रिका (शब्द०)। तीरे मिजगां बरसते है मुझार । प्राबे पैकों का इस तरफ पै२-[हिं० पास, पहया म० प्रति, प्रा० पहि, पह] १ पास । समीप । है ढाल । - कविता कौ०, भा०४, पृ० २० । निकट । उ० (क) परतिज्ञा राखी मनमोहन फिर ता पै पैका-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [फा० पैकार ? ] पैसा। दमडी । उ०-गाठि पठयो।-सूर (शब्द०)। (ख) ता पै कही बहुत बिघि सो मैं न पैका कोऊ भयो रहै साहूकार, वातनि ही मुहर हम नेकु न दीनो कान ।-सूर (शब्द०)। २ प्रति । पोर । रुपैया गनि गाहिए। -सुदर प्र०, भा०२, पृ०४६४ । तरफ । उ०-सरसोरुह लोचन मोचत नीर चितै रघुनायक पैकान-सञ्ज्ञा पुं० [फा०] १ बाण की नोक या अनी । २ बरछी सीय पै है ।—तुलसी (शब्द०) । की नोक [को०) । १३–प्रत्य० [सं० उपरि, हिं० ऊपर ] १ अधिकरण सूचक एक पैकार-सज्ञा पुं० [फा०] १. थोडी पूजी का रोजगारी। छोटा विभक्ति । पर । ऊपर । उ०-(क) चढे अश्व पै वीर धाए व्यापारी । फेरीवाल । फुटकर बेचनेवाला । २ युद्ध । लडाई। सबै (शब्द०)। (ख) कोपि चढे दशकठ पै राम निशाचर सेन उ०-हुआ कैल, आमादा पैकार को। न माना न जाना हिए हहरी। -शकर (शब्द॰) । (ग) बिहारी पै वारोगी जहाँदार को। -कवीर म०, पृ० ६८ । मालती भाँवरी।-हितहरिवश (शब्द॰) । २ कारण सुचक पैकारी-सज्ञा पु० [फा० पैकार ] दे० 'पैकार'। उ०-पूजी नामु विभक्ति । से । द्वारा। उ. दीनदयाल कृपालु कृपानिधि का निरजनु राता। सचु पैकारी सचे माता। -प्राण, पै कह्यो परे ।--सूर (शब्द०)। पृ० १७५। पे-सज्ञा स्त्री० [स० आपति( = दोप, भूल)] दोष । ऐब । नुक्स । पैकी-सञ्ज्ञा पुं॰ [ म० पायिक (= हरकारा, फेरी लगानेवाला ] ) क्रि० प्र०-धरना। -निकालना। मेले तमाशे प्रादि मे घूम घूमकर लोगो को हुक्का पै- सज्ञा पुं० [स० पय ] दे० 'पय'। उ.-तन को तरसाइबो पिलानेवाला। कौने बद्यौ मन तो मिलिगी पै मिले जल जैसो।-ठाकुर०, पैकेट-सा पुं० [4] पुलिंदा । मुट्ठा । छोटी गठरी । पृ०२६। क्रि०प्र०-याँधना। -भेजना। पैं-सचा पु० [सं० पद, पाद, प्रा. पय, पाय या फा०] पाँव । पैर । उ०-सा मग बाल उतकठ करि पै लग्गी परदच्छि फिरि । मुहा०-पैकेट लगाना = डाकघर में बाहर भेजने के लिये कोई पुलिंदा देना -पृ० रा, २५१३५५ । पै-सज्ञा पुं॰ [देश॰] माडी देने की क्रिया । क्लफ चढाना। पैक्ट-सचा पुं० [म.] दो पक्षो में किसी विषय पर होनेवाला कौल करार । प्रण । शतं । जैसे, बगाल का हिंदू मुसलिम पैक्ट । क्रि० प्र०—करना। पैखरी-मज्ञा सी० [हिं० पंखरी ] दे० 'पंखुडी'। उ०-प्रवधू पेकंबरी-मज्ञा पुं॰ [फा० पैग बर ] दे० 'पैगबर'। उ.-पीर सहस दल अब देख । सेत रग जहँ पैखरी छवि अन डोर पैकवर सबै सिधाए, मुहम्मद सिरपे रहा न पाए। -सु दर बिसेख । -चरण वानी, पृ० १२१ । ग्र०, भा०२ पृ० ८४७ । पैखाना-सञ्ज्ञा पुं॰ [फा० पाखानह् ] दे० 'पाखाना' । पैकड़ा-सज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'पैकडा' । उ०-मेरी पग का पैकडा, पैगबर--मज्ञा पुं० [फा० पयगामयर, पैग बर ] मनुष्यो के पास मेरी गल की फाँसी। -कवीर सा०, पृ०७७ । पैकर-मज्ञा पुं० [फा० पैकार (= इकट्ठा करनेवाला ) ] कपास ईश्वर का संदेसा लेकर प्रानेवाला। धर्मप्रवर्तक । जैसे, मूसा, ईसा, मुहम्मद । से रुई इकट्ठी करनेवाला। पैगंबरी-सच्चा स्त्री० [फा० पंग परी] १ पैगबर होने का भाव । पैकर२-सज्ञा ॰ [फा० पैकर ] १ देह । शरीर । जिस्म । २ २ पंगबर का कार्य या पद । ३ एक प्रकार का गेहूँ । आकृति । शक्ल । उ०-उसी मसीह की पैकर की प्रामद, श्रामद है। -भारतेंदु ग्र, भा॰ २, पृ० ७८६ । पैगंबरी-वि० पैगबर सबधी । पैकरमा -सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० परिक्रमा ] दे॰ 'परिक्रमा' । उ०- पैग-सशा पु० [ स० पदक, प्रा० पथक, पग ] डग । कदम । दै पैकरमा सीस नवाऊँ सुनि सुनि बचन प्रधाऊँ जी। फाल। उ०-पैग पैग पर कुया बावरी। साजी बैठक और -चरण० बानी, पृ०६६ । पांवरी। —जायसी प्र०, पृ० ११ । पैकरा-सञ्चा सी० [हिं० पाय+कहा ] पैरी। पांव में पहनने का पैगाम-सबा पुं० [फा० पैगाम ] बात जो कहला भेजें। संदेसा। एक गहना । सदेश। उ०-कासिद् की जबां से उसके आगे। पैगाम पैकहिना-सज्ञा स्त्री॰ [देश॰] दाई। बच्चा उत्पन्न करनेवाली स्त्री। व सलाम कुछ न निकला | -कविता कौ०, भा०४, पृ ४० । उ०-ना महीना जब लागे, सासु सोवै मंगना हो, ललना, २ विवाह सवध बात जो कही या कहलाई जाय । पीरा कव उठ जाय, पैकहिन बुलवायय हो। -शुक्ल. मुहा०-पैगाम डालना = सबध करने का संदेशा भेजना। अभि० प्र०, पृ० १४३ । सबध करने की बातचीत करना ।