पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३७६

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पूर्वी ! पावसथ्य। पूर्ववृत्त ३०५५ पूर्ववृत्त 1-सया पुं० [स०] इतिहास । पूर्वाभास-राश पुं० [सं० पूर्व+अाभाम ] वह साधारण ज्ञान जो पूर्वशैल 1-सज्ञा पुं० [सं० ] उदयाचल । पहले ही प्राप्त हो जाय । पूर्वज्ञान । पूर्वसचित-वि० [सं० पूर्वसञ्चित ] पहले या पूर्वजन्म में सचित पूर्वाभिमुत्र-वि० [म०] पूरव की प्रोर मुह किए हुए [को०] । किया हुमा (फो०] । पूर्वाभिपेक-मज्ञा पुं॰ [ स०] १ एक प्रकार का मत्र । २ पूर्व या पहले का स्नान (को०)। पूर्वसध्या-सशा सी० [ स० पूर्वसन्ध्या ] प्रात काल । पूर्वसक्य-पश्चा पुं० [ स० ] जाँघ का ऊपरी जोड [को०] । पूर्वाभ्यास--सा पुं० [सं०] १ पहले का अनुभव या अभ्यास । यह अभ्यास जो किसी कार्य को ध्यावहारिक रूप में परिणत करने पूर्वसर-वि० [सं० ] सामने या आगे जानेवाला (को०) । के पहले किया जाय । जैसे, नाटक का पूर्वाभ्यास (को०] । पूर्वसाहस-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] तीस प्रकार के दंडो मे से प्रथम पूर्वाराम-सज्ञा पु० [१०] एक प्रकार का बौद्ध संघ या मठ । दड । सबसे बडा दड [को०] । पूर्वार्जित-वि० [स०] पहले प्राप्त किया हुमा । पूर्वप्राप्त । पूर्वस्थिति -सज्ञा स्त्री० [०] पहले की दशा । पूर्व की दशा । पूर्वार्जित-मजा पुं० पैतृक स पत्ति [को०] । पूर्वा-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ पूर्व दिशा । पूरब । २. ग्यारहवाँ नक्षत्र । पूर्वार्द्ध -तज्ञा पुं॰ [सं०] १ फिसी पुस्तक का पहला प्राधा भाग । द 'पूर्वाफाल्गुनी'। शुरू का प्राधा हिस्सा । २ शरीर का ऊपरी भाग (को०)। पूर्वाग्नि-संज्ञा सी० [म० ] घर में रखी जानेवाली पवित्र अग्नि । ३ किसी वस्तु का प्रारभिक (श । पूर्वाद्वर्थ-व० [ स०] जो पूर्वाधं से उत्पन्न हुआ हो । पूर्वार्ध पूर्वाचल-गशा पु० [ स० ] उदयाचल । उदयगिरि (फो०] । सवधी । पूर्वार्ध का। पूर्वानुभूत-वि० [सं० पूर्व + अनुभूत ] पूर्व में अनुभूत किया हुमा । पूर्वार्व-सा पु. [ स० ] '" । 'पूर्वाद्ध' । 30-कल्पना के बल से अपने पूर्वानुभूत स स्कारो का सहयोग पूर्वावेदक-सशा पु० [ 10 ] जो अभियोग उपस्थित करे । वादी । लेकर, जीवन मे अदृश्य, अश्रुत एव अननुभूत पदार्थों का मुद्दई। सर्जन करता रहता है।-शेली०, पृ० २१ । पूर्वाश्रम-शा पुं० [०] ब्रह्मचर्य प्राथम (को॰] । पूर्वाद्रि-सक्षा पुं० [सं०] उदयगिरि [को०] । पूर्वापाढ :-सग पुं० [सं०] द० 'पूर्वापाढा । पूर्वानुराग-सज्ञा पुं० [सं०] वह प्रेम जो किसी के गुण सुनकर अथवा पूर्वापाढ़ा-मशा सी० [स० ] नक्षत्रो में बीसवाँ नक्षत्र । उसका चित्र या रूप देखकर उत्पन्न होता है। अनुराग या प्रेम विशेप-इसमे चार तारे हैं तथा इसका आकार सूप का सा और का प्रारंभ । दे० 'पूर्वराग'। अधिष्ठाता देवता जल माना जाता है। विशेष-दे० 'नक्षत्र' । विशेप-साहित्य मे पूर्वानुराग या पूर्वराग उस समय तक माना पूर्वाह्न-सा पुं० [स०] दिन का पहला प्राधा भाग। सवेरे से दोपहर जाता है, जब तक प्रेमी और प्रेमिका का मिलन न हो । मिलने के उपरात उसे प्रेम या प्रीति कहते हैं । पूर्वान्हा- पूर्वाह्नक'-वि• [म०] पूर्वाह्न सबधी । पूर्वाह्न का। -सञ्ज्ञा पु० [सं० पूर्वाह्न ] 20 'पूर्वाह्न' । पूर्वाहरु -सा पुं० १० 'पूर्वाह्न'। पूर्वापर-क्रि० वि० [सं०] आगे पीछे । पूर्वाहिक-ज्ञा पुं० [ स० ] वह प्रत्य जो दिन के पहले भाग मे पूर्वापर---वि० आगे का और पीछे का । अगला और पिछला । किया जाता हो । जैसे, स्नान, सध्या, पूजा आदि । पूर्वापर 1-संशा पु० पूर्व और पश्चिम । पूर्वी-१० [म० पूर्वीय] पूर्व दिशा से सबध रखनेवाला । पूरव का। पूर्वापर्य-सा पु० [सं०] पूर्वापर का भाव । यो०-पूर्वी घाट । पूर्वी द्वीपसमूह = भारतवर्ष के पूरव में स्थित पूर्वाफाल्गुनो-सज्ञा जी० [०] नक्षत्रों मे ग्यारहवा नक्षत्र । टीपो का समूह जिनमे जावा, सुमात्रा और वोनियो प्रादि हैं। विशेप-इसका प्राकार पलंग की तरह माना जाता है और :--T पुं० १ पूरव मे होनेवाला एक प्रकार का चावस । २. इसमे दो तारे हैं। इसके अधिष्ठाता देवता यम कहे गए हैं एक प्रकार का दादरा जो बिहार प्रात में गाया जाता है पौर पोर इसका मुंह नीचे की प्रोर माना जाता है। विशेष-२० जिस भाषा विहारी होती है। ३ स पूर्ण जाति का एक राग जिसके गाने का समय सध्या है। पूर्वाभाद्रपद - सज्ञा पुं० [स०] नक्षत्रो में पचीसवाँ नक्षत्र । विशेष-गुछ लोगो के मन से यह श्री राग की रागिनी है पर विशेप-इसका मुह नीचे की पोर माना गया है और इसमे कुछ लोग इसे भैरवी पोर गौरी घयवा देवगिरि, गोड दो नक्षत्र हैं । विशेष-दे० 'नक्षत्र'। और गौरी से मिलकर बनी हुई सार रागिनी भी मानते पूर्वाभाद्रपदा-सा टोल [म० ] नक्षत्रो मे पचीसवां नक्षत्र । ८० हैं और इसके गाने का समय दिन में २५ द६ से २८५० 'नक्षम'। तक बताते हैं। तक का समय। पूर्वी 'नक्षत्र'।