- पूजन करे। पूछाताको २०७३ पूजागृह पूछाताछी-सञ्ज्ञा सी० [हिं० पूछना + अनु० ताछना ] पूछने की पूजनीय-वि० [सं०] १ जिसकी पूजा करना कर्तव्य या उचित क्रिया या भाव। हो। पूजने योग्य । पाराध्य । अर्चनीय । २ अादरणीय । समान योग्य । उ-पूजनीय प्रिय परम जहाँ ते । सब मानि- पूछापाछो-सशा ग्नी० [हिं० पूछना+श्रनु० पाछना ] पूछने की अहिं राम के नाते।-मानस, २०७४ । क्रिया या भाव। पूजमान-वि० [हिं० पूजना+मान या सं० पूज्यमान ] पूज्य । पूछापेखी- मज्ञा सी० [हिं० पूछना+पेखना ] पूछने जांचने की पाराध्य । आदरणीय । पूजनीय । क्रिया या भाव । पूछताछ । उ०-दिग्विजय वाबू ने समझा पूछापेखी करना खामखाह की बात है। -किन्नर, पूजयितव्य-वि० [सं०] पूजनीय । पूजा योग्य [को०) । पूजयिता-सञ्ज्ञा पुं॰ [ म पूजयित ] पूजा करनेवाला । पूजक । पृ० ८२। पूज'-वि० [ स० पूज्य ] पूजने योग्य । पूजनीय । पूजा-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १ ईश्वर या किसी देवी देवता के प्रति श्रद्धा, समान, विनय और समर्पण का भाव प्रकट करनेवाला पूज-सञ्ज्ञा पु० [ स० पूज्य ] देवता। (डि.)। कार्य । अर्चना। आराधन। २ वह धार्मिक कृत्य जो जल, पूज-सज्ञा स्त्री॰ [ स० पूजा ] १ पूजा। अचना। उ०-बिना फूल, फल, अक्षत अथवा इसी प्रकार के और पदार्थ किसी नीव जहें देहरो विना पूज जहँ देव। विन वाती दीपक जहाँ देवी देवता पर चढ़ाकर या उसके निमित्त रखकर किया विन मूरति तहँ सेव ।-राम० धर्म०, पृ० ६१।१२, खत्रियो जाता है। पाराधन । अर्चा। प्रादि मे वह गणेशपूजन जो विवाह यज्ञोपवीत आदि शुभ विशेष-पूजा ससार की प्राय सभी प्रास्तिक और धामिक कमों के पहिले होता है। पूजा । जातियो में किसी न किसी रूप मे हुआ करती है। हिंदू लोग पूजक-सज्ञा पु० [ स०] पूजा करनेवाला। पूजनकर्ता। वह जो स्नान और शिखावदन प्रादि करके बहुत पवित्रता से पूजा करते हैं। इसके पचोपचार, दशोपचार और पोडशोपचार पूजकारो -वि॰ [स० पूजा+हिं० करना] पूजा करनेवाला। अर्चना ये तीन भेद माने जाते हैं। गध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य करनेवाला। पूजक । उ०-आत्माराम तजि जड पूजकारी। से जो पूजा की जाती है उसे पचोपचार, जिसमें इन पांचो -कवीर रे०, पृ०६। के अतिरिक्त पाद्य, मयं, प्राचमनीय, मधुपर्क और पाचमन भी हो वह दशोपचार और जिसमें इन सवफे अतिरिक्त प्रासन, पूजन-मज्ञा पु० [सं०] [वि० पूजक, पूजनीय, पूजितव्य, पूज्य ] १ पूजा की क्रिया। ईश्वर या किसी देवी देवता के प्रति स्वागत, स्नान, वसन, प्राभरण और वदना भी हो वह पोडशोपचार कहलाती है। इसके अतिरिक्त कुछ लोग विशे- श्रद्धा, संमान, विनय और समर्पण प्रकट करनेवाला कार्य । देवता की सेवा और वदना । अर्चन। पाराधन । पत तात्रिक आदि १८, ३६ और ६४ उपचारो से भी पूजा करते हैं । पूजा के सात्विक, राजसिक और तामसिक ये तीन २ श्रादर । समान । खातिरदारी। जैसे, अथितिपूजन । भेद भी माने जाते हैं। जो पूजा निष्काम भाव से, बिना किसी ३ आदर सत्कार की वस्तु । माध्बर के और सच्ची भक्ति से की जाती है वह सात्विक, पूजना'-क्रि० स० [ स० पूजन ] १ किसी देवी देवता को प्रसन्न जो सकाम भाव और समारोह से की जाय वह राजसिक, करने के लिये यथाविधि कोई अनुष्ठान या कर्म करना । और जो बिना विधि, उपचार और भक्ति के केवल लोगो को ईश्वर या किसी देवी देवता के प्रति श्रद्धा, संमान, विनय दिखाने के लिये की जाय वह तामसिक कहलाती है। पूजा और समपण का भाव प्रकट करनेवाला कार्य करना। के नित्य, नैमित्तिक और काम्य के तीन और भेद माने जाते अर्चना करना। भाराधन करना। २ किसी को प्रसन्न हैं। शिव, गणेश, राम, कृष्ण आदि की जो पूजा प्रतिदिन या परितुष्ट करने के लिये कोई कार्य करना । भक्ति या की जाती है वह नित्य, जो पूजा पुत्रजन्म आदि विशिष्ट श्रद्धा के साथ किसी की सेवा करना। श्रादर सत्कार मवसरो पर विशिष्ट कारणो से की जाती है वह नैमित्तिक करना। ३ वदना करना । सिर झुकाना । वडा मानना । और जो पूजा किसी अभीष्ट की सिद्धि के उद्देश्य से की जाती समान करना । ४ घुस देना । रिश्वत देना । ५ नया बदर है वह काम्य कहलाती है। पकहना । (कलदर)। ३ आदर सत्कार । खातिर । पावभगत । पूजना-क्रि० अ० [सं० पूर्यते, प्रा० पुज्जति ] १ पूरा होना। यौ०-पूजा प्रतिष्ठा। भरना । वरावर हो जाना। कमी न रह जाना । जैसे,—यह ४ किसी को प्रसन्न करने के लिये कुछ देना। मेंट। रिश्वत । हानि इस जन्म मे तो नही पूजने की। २ गहाई का भरना जैसे, पुलिस की पूजा करना, कचहरी के अमलो की पूजा या बरावर हो जाना। घासपास के धरातल के समान हो करना । ५ तिरस्कार। दह। ताडना। प्रहार । कुटाई। जाना । जैसे, घाव पूजना, गड्डा पूजना । ३ पटना । चुकता जैसे,-जबतक इस लडके की मच्छी तरह पूजा न होगी होना । जैसे, मरण पूजना। ४ पूरा होना। बीतना। समाप्त तवतक यह नहीं मानेगा। होना । जैसे, वर्ष, अवधि, मिनाद आदि पूजना। पूजाकर-वि० पुं०। ] पूजा करनेवाला [को०)। पूजनी-सशा खी० [स०] मादा गौरेया [को०] । पूजागृह-सधा पुं० [सं०] उपासनागृह । मदिर । देवालय [को॰] ।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३६४
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