वाला। पुरोगामिता २०६० पुर्तगाली पुरोगामिता-सच्चा स्त्री० [स० ] अग्रगामी होने का भाव । आगे १ अग्रभागवाला । २ दोषदर्शी। गुणो को छोड केवल दोषों वढ़ने का भाव । उ०—इस प्रकार हम पुरोगामिता पौर की ओर ध्यान देनेवाला । छिद्रान्वेषी। न्याय को पूर्णतया स्वीकार करते हैं। -प्रा०प्र० रा०, पुरोमारुत-सञ्ज्ञा पुं॰ [ मै० ] पुगेवात । पुरुवा हवा [को०] । पृ० २२। पुरोरवस--मझा पुं० [ सं० ] दे० 'पुरुरवा' । पुरोगामी'-वि० [ म० पुरोगामिन् ] [वि० सी० पुरोगामिनी ] पुरोवात-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] पूर्व दिशा से चलनेवाली हवा । पुरुवा[को०] । अग्रगामी। पुरोवाद-सज्ञा पुं० [सं० ] पहले का कथन । पूर्वकथन (को०]। . पुरोगामी-सज्ञा पुं० १ श्वान । २ अग्रगामी व्यक्ति । २ प्रधान पुरोहित-सञ्ज्ञा पु० [सं०] [ स्त्री० पुरोहितानी ] वह प्रधान याजक व्यक्ति । नायक [कोग। जो राजा या और किसी यजमान के यहां मगुणा बनकर यज्ञादि श्रोतकर्म, गृहकर्म और सस्कार तथा शाति आदि अनुष्ठान पुरोचन-सञ्ज्ञा पुं॰ [ सं० ] दुर्योधन के एक मित्र का नाम । करे कराए। कर्मकाड करनेवाला । कृत्य करनेवाला ब्राह्मण । विशेष-इसे दुर्योधन ने पांडवों को लाक्षागृह में जलाने के लिये विशेष-वैदिक काल में पुरोहित का वडा अधिकार था और नियुक्त किया था। भीमसेन लाक्षागृह से निकल पुरोचन के वह मत्रियो मे गिना जाता था। पहले पुरोहित यज्ञादि के घर आग लगाकर माता और भाइयों समेत चले गए थे। लिये नियुक्त किए जाते थे। आजकल वे फर्मकाह करने के वह अपने घर में जलकर मर गया। अतिरिक्त, यजमान की ओर से देवपूजन आदि भी पुरोजन्मा'-वि० [ म० पुरोजन्मन् ] पहले जनमनेवाला । जिसने करते हैं, यद्यपि स्मृतियो में किसी की भोर मे देवपूजन पहले जन्म लिया हो [को०) । करनेवाले ब्राह्मण का स्थान बहुत नीचा कहा गया है। पुरोजन्मा'-मचा पुं० [सं०] वहा भाई । ज्येष्ठ भ्राता [को०)। पुरोहित का पद कुलपरपरागत चलता है। अत' विशेष पुरोजव'- सशा पुं० [सं० ] पुष्कर द्वीप के सात खडों में से कुलो के पुरोहित भी नियत रहते हैं। उस कुल में जो एक सढ। होगा वह अपना भाग लेगा, चाहे कृत्य कोई दूसरा ग्राह्मण पुरोजव-वि० १ जिसके अग्रभाग मे वेग हो। २. पागे बढ़ने ही क्यो न कराए। उच्च प्राह्मणो में पुरोहित कुल पलग होते हैं जो यजमानों के यहां दान प्रादि लिया करते हैं । पुरोटि-सज्ञा स्त्री॰ [ स० ] १ नदी की धारा या प्रवाह । २ पत्र- पुरोहिताई-सज्ञा भ्मी० [म० पुरोहित +श्राई (प्रत्य॰) ] पुरोहित मर्मर । पत्र शब्द । पत्तियो की खरखराहट (को०)। का काम। पुरोडाश् , पुरोडाश-संशा पुं० [सं०] १ यव प्रादि के आटे की पुरोहितानो-संज्ञा सी० [सं० पुरोहित + हिं० पानी (प्रत्य॰)] पुरोहित की स्त्री। बनी हुई टिकिया जो कपाल में पकाई जाती थी। पुरोहितिका-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स०] पुरोहितानी [को०] । विशेष—यह प्राकार में लबाई लिए गोल घोर बीच में कुछ पुरोहितिना-सचा स्त्री० [हिं० पुरोहित +इन (प्रत्य॰)] पुरोहित मोटी होती थी। यज्ञो मे इसमे से टुकसा काटकर देवतामों के की स्त्री । पुरोहितानी। लिये मत्र पढ़कर प्रा ति दी जाती थी। यह यज्ञ का अंग है। पुरोहिती-सज्ञा स्त्री० [सं० पुरोहित + ई (प्रत्य॰)] ३० २ हवि। २ वह हवि या पुरोडाश जो यज्ञ से बच रहे। 'पुरोहिताई। उ०-फंसा पासुरी माया में, हिंसा जगी ४ वह वस्तु जो यज्ञ में होम की जाय। यज्ञभाग। अथवा अपने पुरोहिती के मान की।-करुणा, पृ० २७ । ५ सोमरस । ६ पाटे की चौंसी (चमसी)। ७ वे मंत्र जिनका पाठ पुरोडाश बनाते समय किया जाता है। पुरी-सशा पु० [ हिं० ] पुरवट । पुर । पुरौका-सज्ञा पुं० [सं० पुरोकस् ] नगर में रहनेवाला व्यक्ति । पुरोत्सव-पशा पुं० [ म० ] पूरे नगर में मनाया जानेवाला उत्सव पुरौती-सज्ञा स्त्री० [हिं० पूरना या स० पूति ] पूर्ति करना । (को॰] । पुरौनी-सचा मो० [हिं० पूरना ] १ समाप्त करना । पूर्ण करना पुरोद्भवा-सझा स्री० [सं०] महामेदा । २ समाप्ति । पूर्ति । पुरोद्यान-सशा पुं० [ स० ] नगर के मदर का उपवन [को॰] । पुर्खg+-सज्ञा पुं० [ सं० पुरुप ] दे० 'पुरुष' । उ०—-पुखं प्रदौल वो पुरोध-सञ्ज्ञा पुं० [ म० ] पुरोहित । सत्त सामर्थ सही, कुहन के कीन्ह सभ जक्त जानी । -स० पुरोधा-पज्ञा पुं० [सं० पुरोधस ] पुरोहित । दरिया, पृ० ७७ । पुरोधानीय-मक्षा पुं० [स०] पुरोहित । पुर्जल- -सज्ञा पुं॰ [हिं० पूरना ] एक यत्र जिसपर कलाबत्तू लपेटा जाता है। पुरोधिका-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० ] प्रियतमा भार्या । प्यारी स्त्री। पुर्जा-सझा पुं० [ फा० पुर्जह ] दे० 'पुरजा' । पुरोनुवाक्या-सशा स्त्री० [सं०] १ यज्ञों की तीन प्रकार की पुर्तगाल-सञ्ज्ञा पुं० [अ०] योरप के दक्षिण पश्चिम कोने पर पाहुतियों में एक । २ वह ऋचा जिसे पढ़कर पुरोनुवाक्या पडनेवाला एक छोटा प्रदेश जो स्पेन से लगा हुमा है । नाम की आहुति दी जाती है । पुर्तगालो'-वि० [हिं० पुर्तगाल +ई (प्रत्य॰)] १ पतंगाल सवधी । पुरोभागी-वि० [सं० पुरोभागिन् ] [ वि० सी० पुरोभागिमी ] २. पुर्तगाल का रहनेवाला। 1
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३५१
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