पुराण' स्थिर रखना उसी एक सहिता को लेकर सूत के चेनों के तीन और सहिताएं बनाई। इन्हीं सहितानो के प्राधार पर अठारह पुराण बने होंगे। मत्स्य, विष्णु, ब्रह्माड मादि सब पुगणो में ब्रह्मपुराण पहला कहा गया है। पर जो ब्रह्मपुराण माजकल प्रचलित है वह वैसा है यह पहले कहा जा चुका है। जो कुछ हो, यह तो ऊपर लिखे प्रमाण से सिद्ध है कि अठारह पुराण वेदव्यास के बनाए नहीं हैं । जो पुराण अाजकल मिलते हैं उनमें विष्णुपुराण और ब्रह्माडपुगरण की रचना औरों से प्राचीन जान पडती है। विष्णुपुराण में 'भविष्य राजवश' के पतर्गत गुप्तवश के राजामो तक का उल्लेख है इससे वह प्रकरण ईसा की छठी शताब्दी के पहले का नहीं हो सकता। जावा के मागे जो वाली टापू है वहाँ के हिंदुषो के पास ब्रह्माडपुराण मिला है। इन हिंदुओं के पूर्वज ईसा की पांचवी शताब्दी में भारतवर्ष से पूर्व के द्वीपो में जाकर बसे थे। चालीवाले ब्रह्माहपुगण में 'भविष्य राजवश प्रकरण' नही है उसमें जनमेजय के प्रपौत्र अधिसीमकृष्ण तक का नाम पाया जाता है। यह बात ध्यान देने की है। इससे पुराणों मे जो भविष्य राजवश है वह पीछे से जोडा हा है। यहाँ पर ब्रह्माडपुराण की जो प्राचीन प्रतियां मिलती हैं देखना चाहिए कि उनमें भूत और वर्तमानकालिक क्रिया का प्रयोग कहाँ तक है। 'भविष्यराजवंश वर्णन' के पूर्व उनमें ये श्लोक मिलते हैं- तस्य पुग्न शतानीको बलवान् सत्यविक्रम । तत सुतं शतानीकं विप्रास्तमभ्यपेचयन् ।। पुम्रोश्यमेधदत्तोऽभूत् शतानीकस्य वीर्यवान् । पुत्रोऽश्वमेधदत्ताद्वै जात परपुरजय ॥ यधिसीमकृष्णो धर्मात्मा साम्प्रतोय महायशा । यस्मिन् प्रशासति महीं युप्माभिरिदमाइतम् ॥ दुराप दीर्घसत्रं वै त्रीणि वर्षाणि पुष्करम् वर्षद्वयं कुरुक्षेत्र पदश्यां द्विजोत्तमा. । अर्थात्-~-उनके पुत्र बलवान और सत्यविक्रम शतानीक हुए। पीछे शतानीक के पुत्र को ब्राह्मणो ने मभिषिक्त किया। शतानीक के अश्वमेघदत्त नाम का एक वीर्यवान् पुत्र उत्पन्न हुआ। अश्वमेघदत्त के पुत्र परपुरजय धर्मात्मा अघिसीमकृष्ण हैं। ये ही महायशा आजकल पृथ्वी का शासन करते हैं। इन्ही के समय मे माप लोगों ने पुष्कर में तीन वर्ष का और पद्वती के किनारे कुरुक्षेत्र में दो वर्ष तक का यज्ञ किया है। उक्त प्रश से प्रक्ट है कि आदि ब्रह्मांडपुराण मषिसीमकृष्ण के समय में बना। इसी प्रकार विष्णुपुराण, मत्स्यपुराण प्रादि की परीक्षा करने से पता चलता है कि मादि विष्णुपुराण परीक्षित के समय में पौर, आदि मत्स्यपुराण जनमेजय के पात्र अघिसीमकृष्ण के समय में सकलित हुआ। तापो से अठारह पुराण बहुत प्राचीन काल में ", थे इसका पता लगता है । मापस्त बधर्मतत्र पुराव ( २१२४१५ ) मे भविष्यपुराण का प्रमाण इस प्रकार उद्धृन है-याभूत संप्लवासे स्वर्गजित.। पुनः सर्गे बीजीय भवतीति भविष्यपुराणे। यह अवश्य है कि आजकल पुराण अपने प्रादिम रूप में नहीं मिलते हैं। बहुत से पुराण तो अमल पुराणों के न मिलने पर फिर से नए रचे गए हैं, कुछ में बहुत सी बातें जोड दी गई हैं। प्राय सब पुराण शैव, वैष्णव और सौर संप्रदायों में से किसी न किसी के पोषक हैं, इसमें भी कोई सदेह नहीं। विष्णु, रुद्र, सूर्य प्रादि की उपासना वैदिक काल से ही चली पाती थी, फिर धीरे धीरे कुछ लोग किसी एक देवता को प्रधानता देने लगे, कुछ लोग दूसरे को। इस प्रकार महाभारत के पीछे ही संप्रदायो का सूत्रपात हो चला। पुराणसहिताएं उसी समय में बनी। फिर आगे चलकर प्रादिपुराण वने जिनका बहुत कुछ मंश माजकल पाए जाने- वाले कुछ पुराणो के भीतर है। पुराणो का उद्देश्य पुराने वृत्तों । सग्रह करना, कुछ प्राचीन और कुछ कल्पित कथाप्रो द्वारा उपदेश देना, देवमहिमा- तथा तीर्यमहिमा के वर्णन द्वारा जनमाधारण में धर्मबुद्धि ही था। इसी से व्यास ने सूत्र ( भाट या पथक्कड ) जाति के एक पुरुष को मपनी सर्तित प्रादिपुराणहिता प्रचार करने के लिये दी। पुराणों में वैदिक काल से चले माते हुए सृष्टि प्रादि सवधी विचारों, प्राचीन राजाम्रो मौर पियो के परपरागत वृत्तातों तथा कहानियों आदि के संग्रह के साथ साथ कल्पित कथानों को विचित्रता और रोचक वर्णनों द्वारा सांप्रदायिक या साधारण उपदेश भी मिलते हैं। पुगण उस प्रकार प्रमाण अप नहीं हैं जिस प्रकार श्रुति, स्मृति आदि हैं । हिंदुमो के अनुकरण पर जैन लोगो में भी बहुत से पुराण वने हैं। इनमें से २४ पुराण तो तीर्थकरो के नाम पर हैं, मौर भी बहुत से हैं जिनमें तीर्थकरी के प्रलौकिक चरित्र, सब देवतामो से उनकी श्रेष्ठता, जैनधर्म सवो तत्वों का विस्तार से वर्णन, फलस्तुति, माहात्म्य मादि हैं। अलग पद्मपुराण पौर हरियश ( अरिष्टनेमि पुराण ) भी हैं। इन जैन पुराणो में राम, कृष्ण प्रादि के चरित्र लेकर खुब विकृत किए गए हैं। बौद्ध ग्रथों में कही पुराणो का उल्लेख नहीं है पर तिम्बत मौर नेपाल के बौद्घ ६ पुराण मानते हैं जिन्हें वे नवधर्म कहते हैं-(१) प्रशापारमिता (न्याय का ग्रथ कहना चाहिए। (३) समाधिराज, (४) लकावतार ( रावण का मलयगिरि पर जाना, भौर शाक्यसिंह के उपदेश से वोधिज्ञान लाभ करना वणित है ), (५) तथागतगुह्यक, ( ६ ) सद्धर्मप डरीक, (७) ललितविस्तर (बुद्ध का चरित्र),( ) सुवर्णप्रभा ( लक्ष्मी, सरस्वती, पृथ्वी प्रादि की कथा और उनका शाक्यसिंह का पूजन) (९) दशभूमीश्वर । (२) गडय्यूह, पुराण सहित वन गर
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३४५
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