पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३४२

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पुरहूत पुरवासी , शिव। पुरवासी-सशा पु० [ ० पुरवासिन् ] नगर में रहनेवाला। नगर पुरस्करण-सक्षा पुं० [सं०] १ समक्ष उपस्थित करना। आगे निवासी। रखना । २ पूरा करना । दे० 'परस्कार' [को०] । पुरवास्तु-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] नगर बसाने योग्य भूमि [को०] । पुरस्करणीय - वि० [सं०] जिसका पुरस्करण किया जाय । पुर- पुरवैया -सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं० ] दे० 'पुरवाई'। स्करण योग्य । पूरा करने योग्य [को० । पुरशासन-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० ] ( दैत्यो के त्रिपुर का ध्वस करनेवाले) पुरस्कर्ता-वि० [ सं०] १ पुरस्कृत करनेवाले । पुरस्कार देनेवाले । २. समर्थक । हिमायती। ३. समक्ष या आगे करनेवाला । पुरश्चरण-सज्ञा पुं० [सं० १ किसी कार्य की सिद्धि के लिये उ.-जाहिर है कि नए रूपविधान के पुरस्कर्ता प्रगतिशील पहले से ही उपाय सोचना और मनुष्ठान करना । २ हवन हैं। - इति०, पृ० ५७। आदि के समय किसी विशिष्ट देवता का नाम जप (को०)। पुरस्कार-सञ्ज्ञा पु० [स०] [वि० पुरस्कृत ] १. आगे करने की ३. किसी मत्र स्तोत्र आदि को किसी प्रभीष्ट कार्य की सिद्धि क्रिया। २ अादर । पूजा। ३. प्रधानता । ४ स्वीकार के लिये किसी नियत समय और परिमाण तक नियमपूर्वक ५, पारितोषिक । उपहार । इनाम । जपना या पाठ करना । प्रयोग। उ -मैं अब पुरश्चरण क्रि० प्र०—देना । —पाना । करने जाता हूँ, माप विघ्नो का निषेध कर दीजिए। ६. अाक्रमण । हमला (को०)। ७. अभिषेचन (को०)। ८ भारतेंदु ग्र०, भा॰ २, पृ० ३०३ । अभिशाप (को०)। पुरश्चर्या-सझा पुं० [सं० ] पुरश्चरण (को०] । पुरस्कृत-वि० [स०] १ आगे किया हुा । २ प्राप्त । पूजित पुरश्छद-सज्ञा पुं० [सं०] कुश या डाभ को तरह की एक घास । ३ स्वीकृत । ४ जिसने इनाम पाया हो। जिसे पुरस्का पुरषा- सज्ञा पुं० [ सं० पुरुप ] दे॰ 'पुरुष' । उ०-पुरष जनम कद मिला हो । ५ अभिशप्त (को०)। ६ शत्रु द्वारा प्राक्रमित परिग्रस्त (को०)। ७ सिक्त । सेचित (को॰) । तू पामेला, गुण कद हरिरा गासी ।-रघु० रू०, पृ० १६ । ८ तैयार जो पूरा हो गया हो (को॰) । पुरषा-सज्ञा पुं० [हिं० पुरखा ] दे० 'पुरखा' । पुरस्क्रिया-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० ] दे० 'पुरस्करण', 'पुरस्कार' । पुरषातन -सञ्चा पुं० [ स० पुरुषत्व ] १ पुरुषत्व । पौरुष । साहस । हिम्मत । उ०-इह नष्ट शान सुनिये न कान । पुरस्तात्-प्रव्य [ स० पुरस्तात् ] १. पागे । सामने। २ पूर्व दिश पुरषातन भज्ज किचि हान । -पृ० रा०, १३५१ । २. में । ३ पहले । पूर्वकाल मे। ४ अतीत में (को०) । ५ अ. पुरुषत्व । स्त्रीसमागम की शक्ति । उ०-बढिय काम में । बाद में (को०)। कामना भई पुरुषातन की सिधि । -पृ० रा०, ११४०० । पुरस्वाल्लाभ-[स०] कौटिल्य के अनुसार वह लाभ जो चढ़ा करने पर प्राप्त हो। पुरष-सज्ञा पुं० [सं० पुरुप ] दे० 'पुरुष' । उ०—किय सोक कोप कहाँ वच्छ गोप। हरे ब्रह्म ग्यान, पुरष्ष पुरान ।- पुरस्सर-वि० [सं०] दे० 'पुर सर-३' । उ०-समदु खिनी मिले त पृ० रा०, २।६३ । दुख बंटे, जा, प्रणय पुरस्सर ले प्रा।-साकेत, पृ० २५६ । पुरस-सञ्ज्ञा पुं० [पुरीप] खाद । पास। पुरहत-सा पु० [पुर + अक्षत ] वह अन्न और द्रव्यादि ७ विवाह प्रादि मगल कार्यों मे पुरोहित या प्रजा को किस पुरस२-सज्ञा पुं० [सं० पुरुष ] दे॰ 'पुरुष'। उ०-पूरण पुरस कृत्य के करने के प्रारभ में दिया जाता है। भाखत । पुराण प्रमेसर । सुकवि सघार वार अग्नेस्वर।-रा० रू०, पुरहन् -सञ्चा पु० [सं०] १ विष्णु । २ शिव । पुरसाँइल - सहा पुं० [हिं०] दे० पौरुष' । उ०-नमस्कार सूरा पुरहर-सञ्ज्ञा पु० [ सं० पूर्ण ? ] उ०-अभिनव पल्लव वइस नरों, पूरा सत पुरसहि ।-बांकी० प्र०, भा०१। देल, धवल कयल फुल पुरहर मेल ।-विद्यापति, पृ० १०६ पुरसाहाला-वि० [फा० पुसा + हाल ] हालचाल पूछनेवाला। पुरहा'-सञ्ज्ञा पुं० [सं० हि० पुर ] वह पुरुष जो पर चलते सम खोज खबर लेनेवाला । उ०-चमार पहर रात रहे घास कुएं पर के पानी को गिरान के लिये नियत रहता है। छीलने जाते, मेहतर पहर रात से सफाई करने लगते, कहार पुरहा- सज्ञा पुं० [ देश० ] एक प्रकार की लता जिसकी पत्ति पहर रात से पानी खीचना शुरू करते, मगर कोई उनका गोलाकार पोर ५-६ इच चौडी होती हैं। यह हिमालय पुरसाहाल न था ।-काया०, पृ. १७२ । सब जगह ७००० फुट तक की ऊंचाई पर पाई जाती है । फ पुरसा-मक्षा पुं० [ स० पुरुप ] मेंचाई या गहराई की एक माप कही इसकी जड का व्यवहार प्रोषधि रूप मे भी होता है । जिसका विस्तार हाथ ऊपर उठाकर खड़े हुए मनुष्य के पुरहो-सज्ञा स्त्री॰ [देश॰] हरजे वही नाम की झाही जिसकी पत्ति वराबर होता है। साढे चार या पांच हाय की एक माप । और जड औषध रूप मे काम में पाती हैं । दाख। निरविसी जैसे, चार चार पुरसा गहरा, छह पुरसा मेंचा। पुरहूत-चा पु० [सं० पुरुहूत ] दे॰ 'पुरुहूत' । उ०-भय नग पुरसी-सहा स्त्री॰ [फा०] जानने या पूछने की क्रिया या भाव । देव परहूत सम, कुसुम बरन सागर सुमय । -प० रास जैसे, मिजाजपुरसी । पृ० १५३। पृ०४।