पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३४

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पंडितजातीय २७४३ पंथी पडितजातीय-वि० [स० पण्डितजातीय ] अल्प चतुर । कुछ कुशल उ०-ऐसे हरि सो जगत लरतु है। पंडुर कतहूँ गरुड घरतु [को०] । है। कबीर (शब्द॰) । पडितमंडल-सञ्ज्ञा पु० [ स० पण्डितमण्डल ] [स्त्री० पण्डितमंडली] पंहुर२-सज्ञा पु० [म० पण्डुर, प्रा. पंडुर ] पीलापन । ( भय पडितो की गोष्ठी । विद्वानो की मडली [को०] । आदि के कारण ) शरीर का पीला या सुफेद हो जाना। पडितमानिक-वि० [स० पण्डितमानिक ] दे० 'पडितम्मन्य' [को०] । पाडुर । उ०-भेद वचन तन पेद सुतन पहुर चढि पाइय । उण्ट घरद्धर कपि सु तन प्राक्रम जभाइय । -पृ० पढिवमानी-वि० [स० पण्डितमानिन् ] दे० 'पडितम्मन्य' [को०] । रा०,१। २७५। पंडितम्मन्य-वि० [सं० पण्डितम्मन्य ] अपने को विद्वान् मानने- वाला । पाडित्याभिमानी। मूर्ख । पडोहा-सज्ञा ० [हि. पानी + दह] नावदान । परनाला । पनाला। पंडितराज-सज्ञा पुं॰ [ स० पण्डितराज ] १. प्रकाड विद्वान् । बहुत पंडू - सञ्चा पु० [ स० पण्डू, पण्डूक ] वह जो वात रोग से ग्रस्त हो । वडा पडित । २ सस्कृत के प्रसिद्ध अथ 'रसग गाधर' के पगु आदमी। २ हिंजडा [को०] । रचयिना विद्वान जगन्नाथ की उपाधि [को०] । पतो-सञ्चा, पुं० [स० पन्थ ] मार्ग । रास्ता । उ०-जेथ वरफ बरसे पखितवादी-वि० [स० पण्डितवादिन् ] पडित होने का स्वांग या जमै, परवत सिखरां पत ।-बांकी० ग्र०, भा० ३, पृ० ५७ । ढोग करनेवाला [को०] । पंती-सञ्ज्ञा सी० स० पद क्ति, प्रा० पतिय ] श्रेणी। पांत । पडिता-वि० सी० [स० परिहता] विदुषी । उ०--तु तो आप बडी पक्ति । उ०-अग्गै सुदति पतिय विरूर। पलकत अदु मत पडिता है, मैं तुझे क्या समझाऊँगी।-भारतेंदु ग्र०, भा० १, झरत भूर । पृ० रा०, ११६२४ । पृ० ३५। पथ-सञ्ज्ञा पु० [ स० पन्य ] १. मार्ग । रास्ता । राह । उ०-(क) पंडिताइन-सशा स्त्री० [हिं० पडित ] दे० 'पडितानी' । वरनत पथ विविध इतिहासा। विश्वनाथ पहुंचे कैलासा ।- पंडिताई-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० पडित +पाई (प्रत्य॰)] विद्वत्ता । मानस, १२५८ । (ख ) जो न होत अस पुरुष उजारा । पाहित्य । वैदुष्य । सूमि न परत पथ अंधियारा।-जायसी (शब्द०) (ग) पंडिताऊ-वि० [हिं० पढित ] पडितो के ढग का । जैसे, पडि- विरहिन कभी पंथ सिर पथी पूंछ धाय । एक शब्द कहो पीव ताऊ हिंदी। का कव रे मिलेंगे प्राय ।-कवीर (शब्द०)। २. प्राचार- पंडितानो-सज्ञा स्त्री० [हिं० पडित ] १ पडित की स्त्री। २ पद्धति । व्यवहार का क्रम । चाल । रीति । व्यवस्था। ब्राह्मणी। यौ०-कुपथ। उ०-रघुवसिन्ह कर सहज सुभाऊ । मनु कुपथ पडितिमा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ म० पण्डितिमन् ] पाडित्य । विद्वत्ता [को०] । पगु धरै न काऊ ।—मानस, ११२३१। सुपथ । पही-सज्ञा स्त्री॰ [ स० पङक्ति ] दे० 'पक्ति'। उ०-दुती कि मुहा०-पथ गहना = (१) रास्ता पकहना । चलने के लिये नाग चदन । चढत दुद्ध पडिय ।-पृ० रा० २५॥३१० । रास्ते पर होना । चलना । उ०-विछुरत प्रान पयान करेंगे रही पाजु पुनि पथ गहौ। सूर (शब्द०)। (२) चाल पडु-वि० [सं० पण्डु ] १ पीलापन लिए हुए मटमैला । २. श्वेत । सफेद । ३ पीला । ४ पाँच की सख्या का वाचक । -रघु० पकडना । ढग पर चलना । विशेष प्रकार के कर्म मे प्रवृत्त होना । पाचरण ग्रहण करना । पथ करना , 'पथ गहना रू०, पृ०५०। उ०-क्रम क्रम ढोला पथ कर, ढाए म चूके ढाल ।--ढोला०, पंडुक-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० पाण्डु ] [ स्त्री० पडुकी ] कपोत या कबूतर की दू०४४० । पथ दिखाना = (१) रास्ता बताना । (२)धर्म या जाति का एक पक्षी जो ललाई लिए भूरे रंग का होता है। प्राचार की रीति वताना । उपदेश देना। उ०-गुरु सेवा जेइ 30-इस सु दर तथा खेमावार वृक्ष पर शुक, मयूर, पहुक पथ दिखावा । विनु गुरु जगत् को निर्गुन पावा?--जायसी इत्यादि सहस्रो प्रकार के पक्षियों का निवास है। -कबीर (शब्द॰) । पथ देखना या निहारना = रास्ता देखना। बाट म०,१०४६६। जोहना । प्रतीक्षा करना। इतजार करना । उ०-(क) विशेष-यह प्राय जगली झाड़ियो और उजाड स्थानो मे होता तुमरो पथ निहारौं स्वामी, कहि मिलोगे अतर्यामी ।—सूर है। नर की बोली कडी होती है और उसके गले मे कठा सा (शब्द॰) । (ख) माखन खाव लाल मेरे आई। खेलत प्राज होता है जो नीचे की ओर अधिक स्पष्ट दिखाई पडता है पर अबार लगाई। मैं बैठी तुम पथ निहारौं । प्रावो तुम ऊपर साफ नहीं मालूम होता। पडुक दो प्रकार का होता है, पै तन मन वारौ।—सूर (शब्द०)। पथ न सूमना- एक बडा दूसरा छोटा। वडे का रंग भूरा और खुलता रास्ता न दिखाई पडना । उ०-आगे चलो पथ नहिं मूझ होता है। छोटे का रग मटमैला लिए इंट सा लाल होता है। पीछे दोष लगावै ।-कवीर सा० स०, पृ०४६ । पथ में या कबूतर की तरह पढ़क जल्दी पालतू नहीं होता। पडुक और पथ पर पॉव देना = (१) चलना । चलने के लिये पैर उठाना सफेद कबूतर के जोड से कुमरी पैदा होती है । या बढाना। (२) रीति या ढग पर चलना। विशेष प्रकार पर्या-पिडुक । पेड़की । फाख्ता । के कर्मों मे प्रवृत्त होना आचरण ग्रहण करना । जैमे,-भूल पंडुरा'-मचा पुं० [ देश० ] १. पानी मे रहनेवाला सांप । डेढ़हा । कर भी बुरे पथ मे पाँव न देना। पथ पर लगना = (१) .