सफेद रग। पुण्डरीक ३०३३ पुडूंवर्धन पुंडरोक-सञ्ज्ञा पुं० [स० पुण्डरीक] १ श्वेत कमल । २ कमल । वृक्ष । ४ माधवी लता । ५ ह्रस्व प्लक्ष । पाकर । पक्कड । यौ०-पुरीकदलोपम= कमलपत्र के समान | पुंडरीकनयन, ६ श्वेत कमल । ७ चदन केसर यादि की रेखामों से पुंडरीकपालाशान, पुंडरीकलोचन = दे० 'पुडरीकाक्ष'। शरीर पर बनाया हुआ चिह्न या चित्र । तिलक । टीका। पुहरीकप्लव । पुढरीकमुख । जैसे, उध्वपुड़। ८ तिलक वृक्ष । ६ कीडा | कोट । कृमि (को०)। १० भारत के एक भाग का प्राचीन नाम जो ३. रेशम का कीडा । पाट कीट । ४ शेर । बाघ । नाहर । ५ इतिहास पुराणादि मे मिलता है। महाभारत के अनुसार एक प्रकार का सुगधयुक्त पौधा । पुडरिया। ६. सफेद छाता । अग, बग, कलिंग, पुडू और सुहा, बलि के इन पांच पुषी ७ कमब्लु । ८ तिलक । ६ एक यज्ञ । १० एक प्रकार के नाम पर देशो के नाम पडे । ११ एक प्राचीन जाति । का माम। सफेदा। ११. एक प्रकार का धान। १२ सफेद रग का हाथी। १३ एक प्रकार की ईख । पौढ़ा। १४. विशेष-इस जाति का उल्लेख ऐतरेय ब्राह्मण मे इस प्रकार है- चीनी । शर्करा । १५ सफेद रंग का साप। १६ एक प्रकार विश्वामित्र के सौ पुत्रो में से पचास तो नधुच्छदा से वहे और का बाज पक्षी। १७ श्वेत कुष्ट । सफेद कोढ। १८ पचास छोटे थे। विश्वामित्र ने जब शुन शेप का भभिषेक हाथियो का ज्वर । १६ एक नाग का नाम । २० अग्नि किया तव ज्येष्ठ पुत्र बहुत प्रसतुष्ट हुए। इसपर विश्वामित्र कोण के दिग्गज का नाम । २१ क्रौंचद्वीप का एक पर्वत । ने उन्हें शाप दिया कि तुम्हारे पुत्र प्रत्यज होगे। मध, पुड़, २२. महाभारत में वरिणत एक तीर्थ स्थान । २३ अग्नि । शवर, मूतिव इत्यादि उन्ही पुत्रों के वशज हुए जिनकी गिनती आग। २८ वाण। शर (अनेकार्थ०)। २५ भाकाश दस्युप्रो में हुई। महाभारत मे एक स्थान पर यवन, किरात, (अनेकार्थ०) । २६ जैनियो के एक गणधर । २७ कालिदास गाधार, चीन, शवर प्रादि दस्यु जातियो के साथ पौंड्रको का द्वारा (रघुवश) महाकाव्य में उल्लिखित रघुवंशीय एक नाम भी है। पर दूसरे स्थान पर 'पौंड्रको' और सुपु ड्रको में राजा का नाम । २८ दौने का पौधा । २६ श्वेत वर्ण । भेद किया है । पौंड्रको और पुड्रो को तो प्रग, वग, गय आदि के साथ शास्त्रधारी क्षत्रिय लिखा है जिन्होने युधिष्ठिर के लिये बहुत साधन इकट्ठा किया था। उनके जाने पर युधिष्ठिर पुंडरीकपालाशाक्ष-वि० [स० पुण्डरीकपालाशाक्ष ] कमल की के द्वारपाल ने उन्हे नहीं रोका था। पर वग कलिंग, पंखुडियो के समान नयनवाला [को०] । मगध, ताम्रलिप्त प्रादि के साथ सुपुकों का द्वारपाल द्वारा पुडरीकालव-सच्चा पुं० [सं० पुण्डरीकप्लव ] एक प्रकार का रोका जाना लिखा है जिससे वे वृषलत्वप्राप्त क्षत्रिय जान पक्षी [को० ॥ पडते हैं। मनुस्मृति में जिन पौंड्रको का उल्लेख है वे भी पु'हरीकमुख-वि० [सं० पुण्डरीकमुख ] कमलमुख । जिसका मुख सस्कारभ्रष्ट क्षत्रिय थे जो म्लेच्छ हो गए थे। इससे पौद्र या कमल के समान प्रफुल्ल हो [को॰] । पुड सुपु ड्रो से भिन्न और क्षत्रिय प्रतीत होते हैं। महाभारत पुंडरीकमुखी-सच्चा स्त्री० [सं० पुण्डरीकमुखी ] एक प्रकार की कर्णपव मे भी कुरु, पाचाल, शाल्व, मत्स्य, नैमिष, फलिंग, जोंक [को॰] । मागध मादि शाश्वत धर्म जाननेवाले महात्मामो के साथ पौंड्रो पुंडरीकसुतसुताg-रशा स्त्री॰ [सं० पुण्डरीक ( = कमल )+सुत का भी उल्लेख है, प्रादिपवं मे बलि के पांच पुत्रो (मग वग (= ब्रह्मा)+सुता (= पुत्री)] सरस्वती । शारदा । उ०- प्रादि) में जिस पुद्र का नाम है उसी के वशज स भवत ये पु डरीकसुतसुता तासु पदकमल मनाऊँ। विसद वरन बर पुद्र या पौद्द हो । ब्रह्माड और मत्स्य पुराण के अनुसार पुड्र बसन बिसद भूषन हिय ध्याऊँ ।-ह. रासो, पृ० १ । लोग प्राच्य (पूरबी भारत के) थे, पर विष्णु पुराण मे पुडरीकाक्ष-सशा पुं० [सं० पुण्डरीकाक्ष ] १ विष्णु भगवान् । और मार्कंडेय पुराण में उन्हें दाक्षिणात्य लिखा है। नारायण ( जिनके नेत्र कमल के समान हैं ) २ रेशम के पुड्रक-सज्ञा पुं॰ [ स० पुण्डूक ] मागधी लता। २ तिलक । कीडे पालनेवाली एक जाति । टीका । ३ तिलक वृक्ष। ४ एक प्रकार की (लाल) ईस । पुंडरीकाक्ष-वि० जिसके नेत्र कमल के समान हो। पौढ़ा । ५ वह जो रेशम के कीडे पालने का व्यवसाय करता हो (को०)। ६. घोडे के शरीर का एक चिह्न जो रोएँ के रग पुडरीफेक्षण-वि०, सच्चा पुं० [#० पुण्डरीकेक्षण] दे० 'पु डरीकाक्ष' के भेद से होता है । शख, घणः, गदा, पद्म, खड्ग, म कुश (को०] । पुंडरीयक-सञ्ज्ञा पुं० [मं० पुण्डरीयक] १ पुडरी का पौधा । स्थल- पौर घनुप के ऐसे चिह्न को पु ड्रक कहते हैं । पद्म । २ एक लता जो मोषषि में प्रयुक्त होती है (को॰) । पुंड्रकेलि-सज्ञा पुं॰ [ सं० पुगढ फेलि ] हाथी [को०] । पुंडर्य-सज्ञा पुं० [सं० पुएटर्य] १. पुडरी का पौधा । २ पौधा। पुड्रवर्धन-सज्ञा पुं० [सं० पुगर यद्धन ] पुट्र देश की प्राचीन लता । एक बेल (को०)। राजधानी। पुंड्र-सज्ञा पुं० [सं० पुण्] १. एक प्रकार की (विशेषत लाल ) विशेष-यह नगर किसी समय में हिंदुप्रो और बौद्धों दोनो का ईख । पौढ़ा। २ वलि के पुत्र एक दैत्य का नाम जिसके तीर्थ था। स्कदपुराण में यहाँ 'मंदार' नामक शिवमूर्ति का नाम पर देश का नाम पडा । ३. मतिमुक्तक । तिनिश होना लिखा है। देवी भागवत के अनुसार सती के दे।
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