पीठ पीछो ५ जैसे,—इस आदमी के पीछे मैंने क्या क्या कष्ट न सहा पर यह ऐसा कृतघ्न निकला कि सब भूल गया। ८ कारण । निमित्त । बदौलत । जैसे,—तुम्हारे पीछे हमें भी दस बात सुननी पड़ी। पीछो-मचा पु० [हिं० ] दे० 'पीछा'। उ०-तब वा सर्प की नागिन ने वा वैष्णव को पीछो कियो ।-दो सौ बावन०, भा०१, पृ० ३३२ । पीजन-सञ्ज्ञा पु० [ सं० पिञ्जन ] भेडो के बाल घुनकने की धुनकी । (गडेरिए)। पोजर-मचा पुं० [ स० पिञ्जर ] दे० 'पिंजडा'। उ०-छाज न पखिहि पीजर ठाद।-जायसी ग्र०, पृ०७६ । पीज-सज्ञा पुं० [हिं० पीजर ] दे० 'पिंजडा' । पीटन-सज्ञा पुं० [हिं० ] दे० 'पिटना' । पीटना-क्रि० स० [ स० पीडन ] १. किसी वस्तु पर चोट पहुं- चाना। मारना। संयो कि०-ढालना ।--देना ।-लेना । मुहा०- छाती पीटना=दुख या शोक प्रकट करने के लिये छाती पर हाथ से आघात करना। किसी बात को पीटना = किसी बात या कार्य पर तीव्र दुख प्रकाश करना। किसी बात को सोच सोचकर दुखित होना। हाय हाय करना । सिर धुनना । (सि.)। किसी व्ययित को या के लिये पीटना = किसी व्यक्ति की मृत्यु का शोक करना । किसी के मरने पर छाती पीटना मातम करना। उ०-ख फूटे जो भर नजर देखे । मुझको पीटे अगर इधर देखे ।- एक उर्दू कवि (शब्द०)। २ अघात पहुँचाकर किसी वस्तु को फैलाना या बढ़ाना । चोट से चिपटा या चौडा करना । जैसे, पत्तर पीटना। सयोक्रि०-हालना ।-देना।-लेना। ३ किसी जीवधारी पर आघात करना । किसी के शरीर को चोट अथवा पीडा पहुंचाना । मारना। प्रहार करना । ठोकना । जैसे,—आज तुमने भारी अपराध किया है, तुम्हारे 'बाप तुम्हे अवश्य पीटेंगे। सयो० कि०-ढालना । ४ किसी न किसी प्रकार कर डालना या कर लेना। भले या बुरे प्रकार से कर डालना। येन केन प्रकारेण किसी काम को समाप्त या स पन्न कर लेना । निबटा देना । जैसे,- शाम तक इस काम को अवश्य पीट डालगा। सयो क्रि०-ढालना-देना । ५ विसी न किसी प्रकार प्राप्त कर लेना। येन केन प्रकारेण उपाजित करना। फटकार लेना। जैसे,-शाम तक चार रुपए पीट लेता हूँ। सयो क्रि०-लेना। पीटना-मज्ञा पुं०१ मृत्युशोक । मातम । पिट्टस । जैसे,—यहाँ यह कैसा पीटना पड़ा हुआ है । २ पापद् । मुसीबत । माफत । पीट पठिंगा -संज्ञा पुं० [हिं० पीठ + स० पृष्ठ + अंग] पाश्रय । सहायक । उ०-मुहम्मद जिसका पीटपठिंगा उसकू क्या है डर ।-दक्खिनी०, पृ० ५४ । पीठ'-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] १ लवडी, पत्थर या धातु का बना हुआ बैठने का प्राधार या पासन । पीढ़ा। चौकी । विशेष-दे० 'पीढ़ा' । २ व्रतियों, विद्याथियो प्रादि के बैठने का प्रासन । कुशासन आदि । ३ किसी मूर्ति के नीचे का प्राधारपिंड । मूर्ति का वह आसनवत् भाग जिसके ऊपर वह खडी रहती है। मूर्ति का प्राधार । ४ किसी वस्तु के रहने की जगह । अधिष्ठान । जैसे, विद्यापीठ । ५ सिंहासन । राजासन । तख्त । ६ वेदी। देवपीठ । ७ वह स्थान जहाँ पुराणानुसार दक्षपुत्री सती का कोई प्रग या आभूषण वा । के चक्र से कटकर गिरा है। विशेष-ऐसे स्थान भिन्न भिन्न पुराणो के मत से ५१, ५३, ७ अथवा १०८ हैं। इनमें से कुछ की महापीठ और पु की उपपीठ सज्ञा है। शिवचरित् नामक ग्रथ में जिसमें 3 ७७ पीठ गिनाए गए हैं, ५१ को महापीठ और २६ , उपपीठ कहा है। ये सब स्थान तात्रिक तथा शाक्तधर्म अनुसार प्रति पुनीत और सिद्धिदायक माने गए हैं। स्थानो में जपादि करने से शीघ्र सिद्धि और दान, स्नान आदि करने से अक्षय पुण्य होना माना गया है। ५ स्थानों की उत्पत्ति के सबध मे पुराणो मे यह कथा है शिव से मप्रसन्न होकर उनके ससुर दक्ष ने उनको करने का निश्चय किया। उन्होंने बृहस्पति नामक यज्ञ किया जिसमें त्रिभुवन के यावत् देवी देवतानो को निमत्रि किया पर शिव और अपनी कन्या सती को न पूछा। विना बुलाए भी पिता के समारभ में समिलित होने व तैयार हो गई और शिव ने भी प्रत को उनकी 6 रख ली । सती जब बाप के यज्ञस्थान मे पहुंची तब द ने उनकी आदर अभ्यर्थना तो न की वे भगवान् की जी भरकर निंदा करने लगे । सती को पूज्य पति निंदा सुनना असह्य हुआ। वे यज्ञकुड मे कूद पडी और मरी। उनके साथ शिव के जो अनुचर गए थे उन्होंने लट शिव को यह समाचार सुनाया जिसे सुनकर शिवाजी को से पागल हो उठे और वीरभद्रादि अनुचरो के द्वारा दक्ष मरवा डाला और उनका यज्ञ विध्वस करा दिया। सती विछोह का उनको इतना दुख हुआ कि वे उनकी मृत' को कधे पर रखकर चारो पोर नाचते हुए घूमने लगे । प्र को भगवान् विष्णु ने इस दशा से उनका उद्धार करने अभिप्राय से अपने चक्र द्वारा धीरे धीरे सती के सारे शव काटकर गिरा दिया। जिन जिन स्थानो पर उनका क अग या पासूषण फटकर गिरा उन सबमें एक एक । मौर भैरव भिन्न भिन्न नाम तथा रूप से प्रवस्थान क हैं। जिन स्थानो मे कोई एक अग गिरा वे महापीठ जिनमें किसी प्रग का म श या कोई अलकार मात्र वे उपपीठ हुए । इन महापीठो, उपपीठो और उनमे करनेवाली शक्तियो और भैरवो के नाम सत्र
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३१०
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