1 पिपासा ३००० पिप्पलीमल पिपासा--सक्षा सी० [स०] १ पानेच्छा । तृष्णा । तृषा । प्यास । जिनसे यह चीटियो के विल खोदता है। यह उंगलियो के २ लालच । लोभ । जैसे, धन की पिपासा । वल चलता है तलवो के बल नही। इसके कधे मोटे और मद्दे पिपासाति-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० पिपासा+आर्ति ] प्यास अर्थात् तीवेच्छा होते हैं। गरदन से रीढ तक लवे लवे बाल होते हैं। यह को मनोव्यथा । उत्कट कामना की वेदना। उ०-यह वेदना चीटियो के बिलो में अपने थूथन को डालकर उन्हें खीच लेता सक्राति काल के जनसमूह की पिपासाति है। - कुकुम है। चीटी के पाहार के बिना यह जतु नहीं रह सकता। (भू०), पृ० १३॥ पिपीलिकामातृका दोष-मश पुं० [सं०] एक वालरोग जो जन्म पिपासित वि० [सं०] तृषित । प्यासा । के दिन से ग्यारहवें दिन, ग्यारहवें महीने या ग्यारहवें वर्ष होता है। इसमें बालक को ज्वर होता है और उसका प्राहार पिपासी-वि० [सं० पिपासिन् ] तृपित । प्यासा (को०] । छूट जाता है। पिपासु-वि० [ स०] तृषित । पानेच्छु । प्यासा । २ उग्र इच्छा पिपीलिकोद्वाप-सशा श्री० [सं०] बांबी । वल्मीक (को०। रखनेवाला । तीव्र इच्छुक । लालची। जैसे, रक्तपिपासु, पिपीली-सया सी० [सं०] पिपीलिका, चीटी । अर्थपिपासु । पिपियाना'--क्रि० प्र० [हिं० पीप+ इयाना (प्रत्य॰)] पीप पिप्तटा-सरा सी० [सं०] एक प्रकार की मिठाई। पडना । मवाद आना । जैसे, फोडे का पिपियाना। पिप्पल-सशा पुं० [सं०] १ पीपल का पेड । अश्वत्थ । २. एक पिपियाना-क्रि० स० पीप उत्पन्न करना। मवाद पैदा करना । पक्षी। ३ रेवती से उत्पन्न मित्र का एक पुत्र । (भागवत)। ४ नगा श्रादमी । नग्न व्यक्ति । ५ जल । ६. वस्पखड। ७ जैसे,—यह दवा फोसे को पिपिया देगी। अगे आदि की वाह या पास्तीन । ८ गोदा। पीपल का गोदा पिपियाना क्रि० प्र० [हिं० पिनपिनाना ] १ पेंपें करना । (को०)। ६ ऐंद्रिक भोग (को०)। १० स्तनाग्र । चूचुक। अनावश्यक बोलना। बच्चो का रुदन करना। जैसे- कुचाग्र (को०)। ११ कर्मजन्य फल । कर्मफल (को॰) । क्यो पिपियाते हो? पिप्पलक-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ स्तनमुख । चूचुक । २ सिलाई करने पिपिली-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं०] चीटी । पिपीलिका [को०] । का तागा (को०)। पिपोतक--सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० ] भविष्य पुराण के अनुसार एक ग्राह्मण पिप्पलयोग-सज्ञा पुं० [सं०] चीन और जापान में होनेवाला एक जिसने पिपीतकी द्वादशी का व्रत पहले पहल किया था । पौधा। मोमचीना। पिपीतको संज्ञा स्त्री॰ [स०] वैशाख शुक्ल द्वादशी। विशेष-यह अब भारतवर्ष में भी फैल गया है और गढवाल, विशेष-भविष्य पुराण में यह व्रत का दिन कहा गया है। कुमाऊँ और कांगडे की पहाडियो मे पाया जाता है। इसके पहले पहल इस व्रत को पिपीतक नाम के एक ब्राह्मण ने फलो के बीज के ऊपर चरबी या चिकना पदार्थ होता है जिसे किया था जिसकी कथा इस प्रकार है। पिपीतक को यमदूत चीनी मोम कहते हैं। ले गए । यमलोक में उसे बडी प्यास लगी और वह व्याकुल पिप्पला-सा सी० [स०] एक प्राचीन नदी का नाम [को०] । होकर चिल्लाने लगा । मत में उसने यमराज की वही स्तुति पिप्पलाद'-सञ्ज्ञा पु० [सं०] १ एक ऋषि जो अथर्ववेद की एक की जिससे प्रसन्न होकर उन्होने उसे फिर मत्यलोक मे भेजा शाखा के प्रवर्तक थे और जिनका नाम पुराणों में आया है। और वैशाख शुक्ल द्वादशी का व्रत बताया। इस व्रत में ठढे पानी से भरे हुए घरे ब्राह्मण को दिए जाते हैं। पिप्पलाद-वि० [सं०] १ पीपल का गोदा खानेवाला । २ ऐंद्रिक मोगो में लीन । विषय भोग में मासक्त (को०] । पिपील-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] चीटी [को०] । पिप्पलाशन-वि० [सं०] ""पिप्पलाद'२ [को०। पिपीलफ-सशा पुं० [सं०] [खी० अल्पा० पिपीलिका ] 'चोटी। चिउंटा। पिप्पलि-सञ्चा सी० [सं०] एक मोषषि । विशेष द० 'पोपल'२ [को०] । पिपीलिक-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ चीटा। २. सोना जो चींटो द्वारा पिप्पली-सक्षा सी० [सं०] पीपल । एकत्र हो ।को। पिप्पलीका-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] पीपल का छोटा पेष्ठ (को॰] । यौ०--पिपीलिकपुट = वल्मीक । बाँची। पिप्पलीखह-मशा पुं० [स० पिप्पलीखण्ड ] वैद्यक के अनुसार प्रस्तुत एक मौषध। पिपीलिकमध्य-एक प्रकार का प्रत । विशेष-इसकी निर्माणविधि इस प्रकार कही है-पीपल का पिपीलिका-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं०] चिउटी । चीटी । कोहो । चूर्ण ४ पल, घी ६ पल, शतमूली का रस ८ पल, चीनी दो यौ०-पिपीलिकापरिसर्पण-चींटियों का इधर उधर दौडना । सेर, दूध ८ सेर एक साथ पकावे, फिर पाग मे इलायची, पिपीलिकामध्य = मनुस्मृति के अनुसार एक व्रत । मोथा, तेजपत्ता, धनियाँ, सोठ, वशलोचन, जीरा, हड, पिपिलिकामक्षी-सञ्ज्ञा पुं० [स०] दक्षिण अफ्रिका का एक जतु आंवला और मिर्च डाले और ठढे होने पर ३ पल मधु भी जिसे बहुत लबा थूथन और बहुत बडी जीभ होती है। मिला दे। विशेष-इसे दाँत नहीं होते। इसके अगले पजे बहुत दृढ़ होते हैं पिप्पलीमूल-सचा पुं० [सं०] पिपरामूल । पिपलामूल ।
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